अल्लामा इकबाल का पैगाम, मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, आज भी नसीहत
वाकई दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश भारत एक गुलदस्ते की तरह है, जिसमें तमाम धर्मों-जातियों को मानने वाले किस्म-किस्म के फूलों की तरह सजे हैं। तभी तो नामवर शायर अल्लामा इकबाल अपने इस मुल्क की खासियत बयां करते हुए भविष्य में सांप्रदायिकता की ज्वलंत समस्या को ध्यान में रखते हुए अपने मशहूर कलाम के जरिए फिरकापरस्तों से होशियार रहने का पैगाम दे गए थे। उनका कौमी-भाईचारे और अमन-चैन की नसीहत देने वाला यही पैगाम ‘मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा’ आज भी सामायिक है। गौरतलब है कि बीते दिनों ही उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के मुखिया यानि सीएम योगी आदित्यनाथ का विवादित बयान मजहबों के बीच खाई पैदा करने का सबब बन सकता था। उनके फरमान के मुताबिक कांवड़ यात्रा के दौरान उस रुट पर पड़ने वाली सभी दुकानों के आगे उनके मालिकों का नाम लिखना जरुरी होगा। इस पर खूब हो-हल्ला मचा और सियासत भी गर्माई यह तो शुक्र रहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इस हिटलरी-फरमान पर रोक लगा दी। अब तस्वीर का एक पहलू जानिए, योगी सरकार, भाजपा और गर्मख्याली नेताओं को शिव भक्तों की धार्मिक भावनाएं आहत होने का डर था, इसलिए धर्म-विशेष के दुकानदारों की पहचान के लिए यह फरमान जारी किया गया था। मगर तस्वीर का दूसरा पहलू इन कथित धर्म-रक्षकों को आइना दिखाने वाला है। जगजाहिर है, भोले के भक्त यानि कांवड़िए तो भक्ति-रस में डूबकर अपनी ही मस्ती में रहते हैं। शायद उनको अपनी इतनी फिक्र नहीं रहती, जितनी फिरकापरस्त कथित तौर पर उनकी चिंता में अनाप-शनाप बयानबाजी करते रहते हैं। कांवड़ यात्रा जारी है और मीडिया भी उस पर पूरी नजर रखे हुए है। इस दौरान बीबीसी ने यूपी के संवेदनशील जिले मुजफ्फर नगर में ग्राउंड रिपोर्टिंग की। अब जरा वहां के हालात और मंजर से जान लीजिए कि शिव-भक्त और उनके कद्रदान क्या कर रहे थे और क्या सोच-बोल रहे थे। मुज़फ़्फ़रनगर में डॉ. मोहम्मद शोएब अंसारी का क्लीनिक कांवड़ यात्रा रुट पर है, लिहाजा उनके छोटे से अस्पताल में कांवड़ियों की भीड़ लगी दिखी। कई दिनों से पैदल चल रहे इन कांवड़ियों में कुछ की तबियत ख़राब है। किसी को पीठ दर्द है तो किसी के पैरों में छाले पड़े हैं। हरिद्वार से पैदल कांवड़ लेकर चले कई कांवड़ियों को हरियाणा में अपने शहर-गांव पहुँचने में लंबा समय लगना था।
कांवड़ यात्रा रूट की दुकानों पर मालिकों के नाम लिखवाने के विवाद के बीच इनको यहां इलाज कराने से कोई गुरेज़ नहीं। पीठ दर्द से जूझ रहे सूर्य दूसरी बार पैदल कांवड़ लेकर जा रहे हैं, वो कहते हैं-अगर हमारे मन में भेदभाव होता तो हम यहां आते ही नहीं, सब एक हैं। अगर हम हिन्दू मुस्लिम देखेंगे तो हमारा दर्द कौन देखगा। भोला किसी से भेदभाव नहीं करता। जो कांवड़ लेकर जा रहा है, वो भी हिंदू-मुसलमान नहीं देखता।
डॉ.शोएब कहते हैं कि काफ़ी भोले-भक्त आ रहे हैं, नाम से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, बस इंसानियत होनी चाहिए। मैं डॉक्टर होने के नाते हिन्दू मुस्लिम नहीं देखता, सबको अच्छा ट्रीटमेंट देता हूं। मेरा फोन नंबर बाकी कांवड़ियों को देने को भोले-भक्त लेकर जाते हैं। यहां काबिलेजिक्र है कि सीएम योगी के सरकारी फरमान से पहले ही मुज़फ़्फ़रनगर प्रशासन ने क़ानून-व्यवस्था का हवाला देकर ढाबों, होटलों और खाने-पीने का सामान बेचने वाली दुकानों पर मालिकों और उसमें काम करने वाले कर्मचारियों का नाम लिखवाने का आदेश दिए थे। दरअसल एक गर्मख्याली महंत ने इसे लेकर शासन-प्रशासन को चेतावनी दी थी। फिर सीएम के फरमान से विवाद बढ़ने के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट गया। सर्वोच्च अदालत ने यूपी सरकार के इस फ़ैसले पर रोक लगा दी।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि कांवड़ यात्रा के शांतिपूर्ण संचालन के लिए ये फ़ैसला लिया गया था। वहीं कई लोगों ने आशंका ज़ाहिर की कि नाम लिखवाने को लेकर उपजा यही विवाद कहीं सांप्रदायिक तनाव की शक्ल ना ले ले। खैर, ताजा हालात ये हैं कि मुज़फ़्फ़रनगर के मुस्लिम बहुल बझेड़ी गांव में क़रीब 12 हज़ार की आबादी है। जिसमें गिने-चुने ही हिन्दू परिवार हैं। हर साल लाखों कांवड़िए इस गांव से होकर गुज़रते हैं।
यहां मोहम्मद इक़बाल के परिवार ने घर के बाहर कांवड़ यात्रा को ध्यान में रखकर एक ठंडे पानी का कूलर लगाया हुआ है। ठंडा पानी पीने के लिए रुके कांवड़ यात्री ओमवीर ने कहा कि हम जानते हैं कि ये घर मुसलमान का है, लेकिन हमें कोई दिक़्क़त नहीं है। हमारी कांवड़ भी तो यही लोग बना रहे हैं। इसी गांव से गुजरते हुए एक अन्य कांवड़िए ने कहा-जहां पानी मिल जाता है, वहीं पीने लग जाते हैं। इंसान तो सब एक ही हैं। इस ‘नाम लिखवाने’ के विवाद पर मो. इक़बाल कहते हैं कि दुकानों पर मज़हबी पहचान ज़ाहिर करने के प्रशासन के आदेश के बाद ऐसा नहीं कि हम भी कांवड़ियों से भेदभाव शुरू कर देंगे। थोड़ी देर पहले कांवड़ियों ने मेरे घर पर लगे अमरूद के पेड़ से फल खाए, पानी भी पिया। हर साल कांवड़िए हमारे यहां आंगन में आकर बैठते हैं, आराम करते हैं। हम लोग गप-शप भी करते हैं। इसी गांव में एक घर मांगेराम का भी है, जो दशकों से यहां रह रहे हैं। वे कहते हैं कि मुसलमानों के बीच मेरा अकेला घर है, मुझे कभी कोई परेशानी नहीं हुई। नेमप्लेट विवाद से शहर के हिंदू-मुसलमान पर कोई असर नहीं पड़ा, कांवड़ यात्रा के बाद फिर सब एक हो जाएंगे।
शहर में पेंट की दुकान के मालिक मनोज जैन कहते हैं कि आज कांवड़ यात्रा है, मुसलमान सपोर्ट कर रहे हैं। एक दूसरे से व्यापार है हमारा, मैं जो फल ख़रीदता हूँ, वो मुस्लिम से ही ख़रीदता हूं और ख़रीदते रहेंगे। नेमप्लेट विवाद पर मनोज कहते हैं कि ये राजनीतिक बातें हैं, जो यहां नहीं चलेंगी। ये तो यहां का मुद्दा ही नहीं है, बेवजह उछाला जा रहा है। चाट दुकान के मालिक महेंद्र गोयल कहते हैं कि शहर का माहौल जैसा था, वैसा ही रहेगा। मेरी दुकान पर 60 प्रतिशत ग्राहक मुसलमान हैं, इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है। हालांकि सरकारी आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद अब भी कई होटलों, दुकानों और फलों के ठेलों पर दुकान मालिकों के नाम और फ़ोन नंबर भी लिखे हैं। कई दुकानदार नाम ना बताने की शर्त पर कहते हैं कि प्रशासन से उन्हें डर है, इस वजह से उन्होंने नाम वाले बैनर नहीं हटाए। शिव मंदिर के पास सलमान की किराने की दुकान पर कांवड़ियों की अच्छी-ख़ासी भीड़ थी। हालांकि दुकान के सामने की सड़क के किनारे कांवड़ियों का ग्रुप अपने लिए पूरियां तल रहा था। इस ग्रुप के प्रमोद कुमार के लिए दुकानदारों की मज़हबी पहचान बहुत मायने रखती है। वो कहते हैं कि हमने रुड़की में खाना नहीं खाया, क्योंकि वहाँ ज़्यादातर मुसलमान दुकानदार हैं। वो उल्टे तवे पर रोटी बना रहे थे, तो हमने खाना छोड़ दिया। दुकानों पर नाम लिखवाने से पहचान करने में आसानी होती है। वैसे तो हम भेदभाव नहीं करते, हम पैकिंग वाला सामान तो मुसलमानों ले लेते हैं। कांवड़ रूट पर चाय की दुकान और फलों के ठेले वाले मुसलमान भी कहते नजर आए कि इस नाम वाले विवाद से असर तो पड़ा है। बहुत सारे कांवड़ियों ने उनसे सामान लेना बंद कर दिया। सारे मामले पर स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार अरविंद भारद्वाज कहते हैं कि पहले मुज़फ़्फ़रनगर को मोहब्बत नगर कहते थे। साल 2013 के दंगों से दोनों समुदायों के बीच में दूरी आ गई थी। पांच सालों से योगी सरकार आने पर कांवड़ यात्रा के दौरान प्रशासन मुस्लिम होटल वालों को बस मांसाहारी खाना बंद करने को कहता था। इस बार नाम-विवाद से माहौल तो बदला। फ़िलहाल लोग कांवड़ यात्रियों की सेवा में लगे हैं। नाम प्रकरण पर आगे क्या होगा, सरकार पर निर्भर है।
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….आ अब लौट चलें