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उड़दी-उड़दी : कौन ना मर जाए इन चुनावी-नेताओं की सादगी पे

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उड़दी-उड़दी

कौन ना मर जाए इन चुनावी-नेताओं की सादगी पे

अपने पंजाब में झाड़ू वाली पार्टी के एक नेताजी छोटा चुनाव तो लड़कर हार गए थे। अब खुद मजबूत दावेदार बता इस बड़े वाले चुनाव में टिकट लेने के लिए राजधानी के कई चक्कर काट आए थे। उनकी इस सादगी से झल्लाए हाईकमान ने नेताजी के अरमानों पर ही झाड़ू फेर छोटे चुनाव में कामयाब पार्टी में उनसे जूनियर दावेदार को टिकट थमा दी। अब पुराने वाले नेताजी खफा होकर पंजेवाले कैंप में चक्कर लगा आए। जब चर्चा छिड़ी तो सादगी से बोले-वो तो पंजेवालों के दफ्तर में अपने पुराने दोस्त यानि उस पार्टी के नेताजी की चाय पीने गए थे। दूसरी पार्टी में जाना होगा तो चोरी-चोरी नहीं, डंका बजाकर जाएंगे। अब नेताजी ने जितनी सादगी से ये बात कही, उतनी ही जोर से पब्लिक हंसते हुए सवाल कर रही है कि नेताजी को अपने प्रधानजी दोस्त से चाय पीने की अभी क्यों अचानक याद आ गई। रही बात दूसरी पार्टी में तो सभी डंका बजाते आइमीन घंटा बजाकर ही जाते हैं।

एक और केस में पंजेवाली पार्टी ने एक सीट पर टिकट होल्ड कर लिया। छोटे चुनाव में जीत चुके कई नेता जुटे। इन  टिकट के दावेदार नेताजी और उनके हिमायती बंद कमरे में कई घंटे सिर जोड़कर मीटिंग कर आए। उनमें से एक ने अपनी फोटो सोशल मीडिया में डाली तो अफवाहों का बाजार गर्माया। जिस पर मीटिंग करने वाले एक नेताजी ने सादगी से जवाब दिया कि सब नाश्ता करने को इकट्‌ठे हुए थे। अब पब्लिक ने पूछा कि भइया टिकटों के चक्कर में सारे नेताओं की भूख-प्यास तक बंद है। ऐसे में आपको टिकट के लिए भागदौड़ में जुटने की बजाए तीन-चार घंटे तक बेहद फुर्सत वाला नाश्ता करने की कैसे सूझ गई।

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