चक्रव्यूह महाभारत के समय का हो या कलियुग का खतरनाक होता है। कलियुग की बल्कि मोदी युग की सियासत कमलाकार चक्रव्यूह में फंसी है। सोमवार को लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने 45 मिनिट तक मौजूदा सियासी चक्रव्यूह पर जब लगातार बोला तो सत्तापक्ष के हौसले कमजोर होते दिखाई दिए। लोकसभा अध्यक्ष तक राहुल गांधी के सामने असहाय नजर आये।
पिछले एक दशक में लोकसभा का सोमवार का दिन सबसे जायदा मार्मिक था। किसी को अंदाज नहीं था कि बजट भाषण पर बोलते हुए प्रतिपक्ष को इस हिकमत अमली के साथ बेनकाब करेंगे ,की सत्तापक्ष मन मसोस कर रह गया। सत्ता के बचाव में खड़े देश के रक्षा मंत्री और संसदीय कार्यमंत्री तक दांत पीसते नजर आये लेकिन राहुल को बोलने से नहीं रोक पाए।सत्ता पक्ष को भी ये उम्मीद नहीं थे कि विपक्ष के नेता उनके ही तीर से उन्हें ही भेदने में कामयाब हो जायेंगे। देश ने पहली बार देखा की लोकतंत्र की भूमि अभी वीरविहीन नहीं हुई है।
राहुल कि भाषण कि दौरान संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू को सबने बिलबिलाते देखा । किरण ने राहुल पर आरोप लगाया कि वे संसदीय कानूनों को नहीं जानते। किरण ये आरोप लागते हुए भूल जाते हैं कि राहुल उतने ही वरिष्ठ संसद हैं जितने की वे। राहुल गांधी को संसदीय कामकाज का ज्ञान नहीं होगा। राहुल गांधी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से भी वरिष्ठ हैं और प्रधानमंत्री से भी। उन्हें यदि संसदीय प्रक्रिया का ज्ञान न होता तो ओम बिरला राहुल की गिल्लियां उड़ा देते।
राहुल कि भाषण में सच कितना था और झूठ कितना ये संसदीय अभिलेख में दर्ज हो चुका है। सत्तापक्ष चाहे तो उनके झूठ को बिना मशीन कि इस्तेमाल के भी जांचा जा सकता है । राहुल बच्चे नहीं है। उन्होंने अपना भाषण मेहनत से तैयार किया होगा ,तभी तो वे सत्तापक्ष के चक्रव्यूह को भेद सके और लगातार हमलावर रहे। उन्होंने प्रधानमंत्री से लेकर अडानी और अम्बानी को भी निशाने पर लिया। सत्तापक्ष और लोकसभा अध्यक्ष भी राहुल को न रोक पाए और न टोक पाए,क्योंकि राहुल पूरी तैयारी से लोकसभा में आये थे। उन्होंने कराधान से लेकर तमाम दूसरे मुद्दों पर जमकर बोला। उन्होंने चक्रव्यूह का जिक्र करते हुए कलियुग के उन पात्रों का भी उल्लेख कर दिया जो जनता के साथ लगातार गलत बयानी कर रहे हैं।
राहुल के भाषण में मोदी जी के भाषणों जैसे कटाक्ष नहीं थे। घबड़ाहट नहीं थी और न ही खिसियाहट। राहुल सामन्य होकर भाषण दे रहे थे। ये उनका आत्मबल है ,अन्यथा आज के युग में मोदी जी के मुकाबले कौन खड़ा हो सकता है ? राहुल ने देश में और भाजपा में व्याप्त भय को रेखांकित करना नहीं भूले । उन्होंने बार-बार इस बात का जिक्र किया कि भाजपा भय की राजनीति कर रही है। उन्होंने भाजपा और उसके समर्थकों को शिवजी की बारात तक कह दिया। उन्होंने अपने भाषण में कोई भी मुद्दा नहीं छोडा । राहुल ने अग्निवीर,नीट पर्चा लीक हीनहीं बल्कि किसानों और युवाओं के भी मुद्दे उठाये। उन्होंने जातीय जनगणना का मुद्दा भी छोड़ा नहीं है
देश ने देखा की राहुल के भाषण के समय केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती सीतारमण जी भी सदन में मौजूद थीं ,लेकिन वे भी राहुल के बहशें के दौरान अपने दोनों हथेलियों से अपना चेहरा छिपातीं नजर आयी। वे या तो राहुल के भाषण से ऊब रहीं थीं या फिर शर्मसार हो रहीं थीं वित्तमंत्री जी की अकुलाहट देखने लायक थी। राहुल ने किसानों का ही नहीं अपितु पत्रकारों को एक शीशे के पीछे कैद किये जाने का भी जिक्र किया। लोकसभा अध्यक्ष राहुल के आरोपों पर निरुत्तर दिखाई दिए । उन्हें न जानें कितनी बार राहुल को डांटा,डराया,धमकाया लेकिन जब राहुल पर किसी भी बात का कोई असर नहीं हुआ तो खामोश हो गए। राहुल ने जिस हिकमत अमली का मुजाहिरा किया वो अप्रत्याशित था। उन्हें जब लोकसभा अध्यक्ष ने हद में रहने और अडानी तथा अम्बानी पर बोलने से रोका तो राहुल ने एक को ऐ-वन और दूसरे को ऐ-टू के नाम से सम्बोधित करने की अनुमति मांगी।
गौरतलब है कि नयी लोकसभा में चुनकर आये विपक्ष के सदस्य गूंगे-बहरे नहीं है । राहुल से पहले तृण मूल कांग्रेस के अभिजीति बनर्जी ने लोकसभा अध्यक्ष को छकाया था। अभिजीत के भाषण के दौरान सत्ता पक्ष के तमाम सदस्य कसमसाते रह गए। मुझे हैरानी है किलोकसभा अध्यक्ष ने इतना सब कुछ होने के बाद भी अभी तक सदन के किसी सदस्य को निलंबित नहीं किया है। पिछली बार निलंबित सदस्यों की संख्या 150 के आसपास पहुंच गयी थी। लोकसभा अध्यक्ष माननीय ओम बिरला जी को असहाय देखकर मुझे उनसे विशेष सहानुभूति हुई ह। वे भले ही भाजपा से हैं इससे क्या फर्क पड़ता है ?
भाजपा के चक्रव्यूह में देश भी है और राहुल गांधी भी। अब देखना ये है की देश और राहुल भाजपा के इस चक्रव्यूह को भेद पाते हैं या उनकी दशा भी अभिमन्यु की तरह होगी ? आज की पीढ़ी महाभारत के चक्रव्यूह के बारे में यदि नहीं जानती हो तो उसे गूगल खंगाल लेना चाहिए। समझ में आ जाएगा की अभिमन्यु वध में किसने ,क्या किया था। आज की भारतीय राजनीति में राहुल चक्रव्यूह में घिरे भी हैं लेकिन उन्होंने चक्रव्यूह से निकलकर भी दिखा दिया है। राहुल मोदी युग में मोदी के रहते हुए भी अब एक ब्रांड बन गए हैं। यही उनकी उपलब्धि है। याद रखिये की मै न मोदी के पाले में हूँ और न राहुल के पाले में। मै जनता के पाले में हूँ।
@ राकेश अचल
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