केंद्र सरकार की बहुप्रतीक्षित उपग्रह से टोल टैक्स वसूलने की योजना फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दी गई है। राष्ट्रीय राजमार्गों को टोल प्लाजा मुक्त करने और “जितनी दूरी, उतना टोल” के सिद्धांत पर आधारित जीएनएसएस (सैटेलाइट आधारित टोल प्रणाली) को रोकने का फैसला नागरिकों की गोपनीयता और राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।
योजना के तहत हर वाहन में ऑन-बोर्ड यूनिट (ओबीयू) नामक ट्रैकिंग डिवाइस लगाना अनिवार्य था। यह डिवाइस वाहन की लोकेशन, गति, रूट, स्टॉपेज और गंतव्य जैसी जानकारी लगातार रिकॉर्ड करता। अधिकारियों के अनुसार इस डेटा के दुरुपयोग से आम लोगों की निजता पर गंभीर खतरा पैदा हो सकता था। वहीं वीआईपी मूवमेंट से जुड़ी संवेदनशील सूचनाओं के लीक होने की आशंका भी व्यक्त की गई है, जिसे सरकार ने अत्यंत गंभीर माना।
सूत्रों के अनुसार सैटेलाइट आधारित टोल प्रणाली को अब स्थगित कर दिया गया है। मंत्रालय अब ऑटोमैटिक नंबर प्लेट रिकग्निशन (एएनपीआर) तकनीक पर काम कर रहा है, जिसमें किसी ट्रैकिंग डिवाइस की जरूरत नहीं होगी। हाईवे पर लगे कैमरे वाहनों की नंबर प्लेट पढ़कर मौजूदा फास्टैग वॉलेट से ही टोल राशि काट देंगे। इससे टोल प्लाजा समाप्त करने की दिशा में काम जारी रहेगा, लेकिन नागरिकों की गोपनीयता से समझौता नहीं होगा।
सरकार ने सैटेलाइट आधारित टोल संग्रह तकनीक का ट्रायल पहले बेंगलुरु-मैसूर एक्सप्रेसवे और हरियाणा के कुछ हिस्सों में किया था। योजना के अनुसार हाईवे पर वाहन जितनी दूरी तय करता सैटेलाइट के माध्यम से उतनी ही राशि सीधे बैंक खाते से कटनी थी। हालांकि सुरक्षा व निजता से जुड़े जोखिमों को देखते हुए इस परियोजना को रोक दिया गया है। मंत्रालय की प्राथमिकता अब ऐसी तकनीक को आगे बढ़ाने की है जो टोल भुगतान को सरल बनाए और नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारी को सुरक्षित भी रखे।
