पंजाब, जो 1970 के दशक के अंत से औद्योगिक मंदी, संसाधनों की कमी और बाद के वर्षों में आतंकवाद के प्रभाव से डगमगाता रहा, अब एक नए उद्योगिक पुनर्जागरण की दहलीज़ पर खड़ा दिखाई देता है। मुख्यमंत्री भगवंत मान का हालिया जापान दौरा इसी दिशा में एक रणनीतिक प्रयास है—पंजाब को फिर से एक मजबूत, भरोसेमंद और भविष्य-तैयार इंडस्ट्रियल हब के रूप में स्थापित करने की कोशिश।
दौरे के दौरान स्टील, पैकेजिंग, मैन्युफैक्चरिंग और स्किलिंग जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में जापानी कंपनियों के साथ कई सौ करोड़ रुपये की निवेश डील साइन हुईं। ये समझौते केवल वित्तीय नहीं, बल्कि तकनीकी और औद्योगिक ज्ञान हस्तांतरण की दृष्टि से भी उल्लेखनीय हैं। जापान की एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग क्षमता, इलेक्ट्रॉनिक्स विशेषज्ञता और हाई-टेक इंजीनियरिंग पंजाब के लिए वो कड़ी है जिसकी कमी पिछले कई दशकों से महसूस की जा रही थी।
इस यात्रा का व्यापक उद्देश्य स्पष्ट है—पंजाब को एक बिजनेस-फ्रेंडली, रिफॉर्म-ओरिएंटेड और विदेशी निवेश के लिए तैयार प्रदेश के रूप में ब्रांड करना। राज्य की औद्योगिक नीतियों को ग्लोबल कंपनियों की अपेक्षाओं के अनुरूप ढालने का प्रयास जारी है। उद्योग मंत्री संजीव अरोड़ा भी साफ कहते हैं कि बड़े निवेश आकर्षित करने के लिए बुनियादी ढांचे, लॉजिस्टिक्स और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में निरंतर सुधार अनिवार्य है।
एक महत्वपूर्ण पहलू स्किल डेवलपमेंट है। कुछ जापानी साझेदार आधुनिक स्किल सेंटर स्थापित करने पर सहमत हुए हैं, जो युवाओं को नई पीढ़ी की इंडस्ट्री के अनुरूप तैयार करेंगे। इससे बेरोजगारी, पलायन और सीमित रोजगार विकल्पों जैसी पुरानी चुनौतियों को कम करने में मदद मिल सकती है।
हालांकि चुनौतियाँ अभी भी कम नहीं—सामाजिक मुद्दे, स्किल गैप, और अन्य राज्यों द्वारा दिए जा रहे आक्रामक औद्योगिक प्रोत्साहन पंजाब की राह कठिन बनाते हैं। लेकिन यदि यह ग्लोबल आउटरीच अभियान निरंतर जारी रहा और निवेश डीलें ज़मीन पर उतरीं, तो पंजाब में औद्योगिक विकास की नई लहर देखने को मिल सकती है—नई नौकरियाँ, कृषि से विविधीकरण, और राज्य की वित्तीय स्थिति में आवश्यक सुधार।
पंजाब के लिए यह मोड़ निर्णायक साबित हो सकता है। अब यह देखना होगा कि सरकार सुधारों की गति बनाए रखती है या नहीं—क्योंकि विकास तभी सार्थक होगा जब नीतिगत स्थिरता और ज़मीनी क्रियान्वयन साथ-साथ चलें।
