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उड़दी-उड़दी : वोटर परेशान, ऊंची दुकान, फीके पकवान

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उड़दी-उड़दी
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वोटर परेशान, ऊंची दुकान, फीके पकवान

अपने पंजाब में लोकसभा चुनाव सिर पर है और इस समय में ही वोटर किंग-मेकर वाली फीलिंग लेते हैं। तय हो चुके काफी उम्मीदवार तो सज-धजकर जनता की अदालत में भी हाजिरी लगा रहे हैं। ऐसे में वोटरों की गर्दन अकड़ी हुई है और वे चश्मे लगाए उम्मीदवारों को कसौटी पर घिसकर चैक कर रहे हैं।
उम्मीदवार भी जानते हैं कि फिलहाल वोटर ही माईबाप हैं, वोटिंग तक सब्र रखना है। इस दौरान जो ज्यादा कमियां निकालेंगे, उनके चुनाव निपटने के बाद ही पेंच टाइट करेंगे। एक बहुत बड़ेवाले पलटीमार नेताजी फिलहाल पंजे वाले कैंप से आकर कमल खिलाने के लिए जनता जनार्दन से मिन्नतें कर रहे हैं। वोटर पिछला रिपोर्ट कार्ड न मांग लें, लिहाजा नेताजी इधर-उधर की जुमलेबाजी करते रहते हैं। उनकी नई पार्टी में वैसे भी जुमेलबाजी की खुली छूट तो है ही। जैसे ही नेताजी अपनी उपलब्धियां गिनवाने की बजाए पंजेवालों को कोसते हैं, झट से वोटर चुटकी लेते गाने लगते हैं, ये जो पब्लिक है, सब जानती है।
एक और नेताजी ने तो ऐसी जोरदार पलटी मारी कि सर्कस के कलाकार भी शर्मा गए। नेताजी कमल फेंककर भागे थे, झाडू पकड़ी, जीते और फिर झाड़ू वाले उम्मीदवार बने। ना जाने क्यों अचानक जोर की पलटी मार फिर कमल वाले कैंप में जा पहुंचे। उनका भी यही हाल है कि वोटर पिछला रिपोर्ट कार्ड मांगते हैं तो मुद्दे से भटकाने के लिए नेताजी झाड़ू वालों को कोसने लग जाते हैं। परेशान-झुंझलाए वोटर दोटूक लहजे में ऐसे पलटीमारों पर तंज कस रहे हैं कि ऊंची दुकान, फीके पकवान।
कमोबेश ऐसी ही हालत पंजेवाले, तकड़ी वाले और झाड़ूवाले कैंप में आए पलटीमारों की है। जो बाकी पलटीमार इन कैंपों से उम्मीदवार बन गए, जनता का सामना करने से घबरा रहे हैं। कई तो नए मुखौटे लगा वोटरों को लुभाने के लिए बेहिसाब वादों का मक्खन लिए बैठे हैं। कमबख्त एक ही कुदरती करिश्मा है कि नेता चाहे जितना दिमाग लगा लें, मगर जनता का दिमाग नहीं पढ़ पाते हैं। इसीलिए तो खुद नेता पब्लिक को जनता-जनार्दन कहते हैं, भले ही मन ही मन कोसते हुए, फिलहाल अपने पंजाब में भी यही कुछ हो रहा है। सारे नेता जानते हैं कि पिछले छोटे वाले चुनाव में जनता ने ऐसी झाड़ू घुमाई थी कि पुराने वाले सब साफ हो गए थे।—-(नदीम अंसारी)
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