शिक्षा का परिवर्तन एक सरकारी पहल नहीं एक राष्ट्रीय मिशन है
धर्मेंद्र प्रधान
प्रकृति ने प्रत्येक मनुष्य को एक अलग पहचान दी है – हमारी उंगलियों के निशान से लेकर आंखों की पुतलियों तक, हमारे अनुभव से लेकर विचारों तक, हमारी प्रतिभाओं से लेकर उपलब्धियों तक। मानवीय विशिष्टता के बारे में यह गहन सत्य हमारे समाज की विशेषता रही है बच्चे में कुछ जन्मजात प्रतिभा होती है, कुछ शैक्षिक प्रतिभा से चमकते हैं, अन्य रचनात्मकता के लिए तत्पर होते हैं, कई अन्य एथलेटिक और पेशेवर कौशल से युक्त होते हैं। इस विशिष्टता को दर्शाते हुए, स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था, “शिक्षा मनुष्य में पहले से मौजूद पूर्णता की अभिव्यक्ति है।”
प्रधानमंत्री की अभूतपूर्व “परीक्षा पे चर्चा” पहल छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों के मूल्यांकन के तरीके को बदलने की हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। छात्रों और अभिभावकों के साथ प्रधानमंत्री की बातचीत ने परीक्षा की चिंता को राष्ट्रीय संवाद में बदल दिया है। उन्होंने पिछले कई वर्षों से परीक्षाओं को लेकर होने वाली चिंता को दूर करने का प्रयास किया है, जो संवेदनशील दिमाग पर अनावश्यक दबाव डालती है।
एक बच्चे की प्राकृतिक प्रतिभा को निखारना और उसे उसकी पसंद के शैक्षणिक और पाठ्येतर गतिविधियों में रचनात्मक रूप से शामिल करना हमारे शैक्षणिक संस्थानों के सामने कठिन चुनौतियां रही हैं। शिक्षकों और नीति निर्माताओं के रूप में हमारी भूमिका एक बच्चे की अनूठी प्रतिभा को विकसित करना है, जिससे वह चुने हुए लक्ष्य में श्रेष्टता प्राप्त कर सके।
हमारे प्रधानमंत्री के दूरदर्शी नेतृत्व में, हम शिक्षा में संपूर्ण सुधार लागू कर रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बच्चे की शैक्षिक यात्रा हमेशा रोमांचकारी और यादगार बनी रहे। बच्चे पढ़ाई और परीक्षा के दौरान किसी भी तरह के तनाव और दबाव से मुक्त रहें। यह दृष्टिकोण हमारे शैक्षिक सुधारों का केंद्र है, बुनियादी शिक्षा से लेकर शिक्षा और अनुसंधान के उच्चतम स्तरों तक।
प्रधानमंत्री के अपने जीवन और अनुभवों से लिए गए व्यावहारिक सुझावों को परीक्षार्थियों ने खूब सराहा है, जिससे उनका परीक्षा में तनाव मुक्त प्रदर्शन आश्वस्त हुआ है। सच्चे नेतृत्व के एक उदाहरण में, हम भारतीयों की भावी पीढ़ी को बढ़ावा देने के लिए एक दूरदर्शी नेता के समर्पण को देख रहे हैं जो राष्ट्र निर्माण में योगदान देता है और राष्ट्र की प्रगति की ओर निरंतर अग्रसर होना सुनिश्चित करता है। माता-पिता और समाज तथा नागरिक पर ये परिवर्तन केंद्रित है। परीक्षा पे चर्चा मानसिक स्वास्थ्य और शिक्षण सहायक, वातावरण के महत्व को उजागर करने में परिवर्तनकारी रही है। यह एक ऐसी मानसिकता है जिसे केवल 10वीं और 12वीं के छात्रों की बोर्ड की कक्षाओं के अलावा सभी कक्षाओं और सभी उम्र के छात्रों में बढ़ावा दिया जाना चाहिए । परीक्षा के समय दबाव और तनाव को दूर करने के सभी चरणों को सिखाया जाना चाहिए।
रवींद्रनाथ टैगोर के बुद्धिमान शब्दों में, “बच्चे को अपनी शिक्षा तक सीमित न रखें, क्योंकि वह किसी और समय में पैदा हुआ है।” शैक्षिक परिवर्तन के प्रति हमारा दृष्टिकोण इसी ज्ञान से निर्देशित है। यह विचार कि शिक्षा में तनाव अनिवार्य है, इस समझ को बदलने की आवश्यकता है कि वास्तविक शिक्षा पोषण करने वाले वातावरण में पनपती है। जब समुदाय, शिक्षक और परिवार मिलकर ऐसा माहौल बनाते हैं जहां छात्र का विकास हो सकें, तो सफलता अवश्य मिलती है। कक्षा से लेकर खेल के मैदान तक, व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों से लेकर अनुसंधान प्रयोगशालाओं तक, हमें ऐसे स्थान बनाने चाहिए जहां अलग-अलग प्रतिभाएं अपनी चमक पा सकें और विकास कर सकें। जैसे-जैसे हम विकासित भारत की ओर तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं, हमारी शिक्षा प्रणाली राष्ट्रीय परिवर्तन की एक प्रमुख आधारशिला के रूप में खड़ी है।
आज, मैं अपने महान राष्ट्र के प्रत्येक माता-पिता, शिक्षक और नागरिक का आह्वान करता हूं। शिक्षा का परिवर्तन केवल एक सरकारी पहल नहीं है – यह एक राष्ट्रीय मिशन है जो हमारी सामूहिक प्रतिबद्धता और साझा दृष्टिकोण की मांग करता है। हम अपने लक्ष्यों को तब प्राप्त करेंगे जब सरकार और नागरिक समाज के बीच सहयोग और साझेदारी हमारी नीतियों और कार्यों को परिभाषित करेगी।