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चुनावों का शंखनाद और आत्मा का आर्त्तनाद

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शीर्षक पढ़कर चौंकिए मत। आज देश में नए आम चुनावों के लिए शंखनाद होने से पहले ही देश के सबसे ज्यादा आत्ममुग्ध प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी का आत्मीय आर्त्तनाद भी इस देश के लोगों ने सुना। देश के सामने हालाँकि उन्हें अपनी कथित उपलब्धियों के आधार पर सिंघनाद करना चाहिए था लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाये । वे मेघनाद जरूर करते आये है । वे जब-जब गरजे तब-तब देश ने एक नयी मुसीबत का सामना किया। लेकिन ये अतीत की बात है।

देश में आम चुनाव करने के लिए जिम्मेदार केंद्रीय चुनाव आयोग को पहले ही केंचुआ बना चुकी हमारी जाती हुई सरकार ने चुनावों की घोषणा के ठीक एक दिन पहले केंचुआ को दो चुनाव आयुक्त दिए है। इनका चयन करने वाली समिति में सरकार का ही बहुमत था । इस समिति में पहले देश के मुख्य न्यायाधीश भी हुआ करते थे ,किन्तु उनके ऊपर सरकार को यकीन नहीं था इसलिए उन्हें चयन समिति से बाहर कर दिया गया। लोकतंत्र को एकतंत्र में बदलने की ये एक छोटी सी कोशिश है ,लेकिन इसे देश की जनता जब समझे तब है। बहरहाल जब आप ये आलेख पढ़ रहे होंगे तब आपके सामने नयी लोकसभा के चुनावों का विस्तृत कार्यक्रम आ चुका होगा। देश में एक आदर्श आचार संहिता [ ? ] लागू हो चुकी होगी। इस संहिता पर प्रश्न चिन्ह इसलिए लगाया की उसका शीलभंग हमेशा से होता आया है और आगे भी होगा ही।

बहरहाल अब गेंद जनता जिसे सम्मान के साथ जनार्दन भी कहा जाता है के पाले में आ गयी है ,लेकिन खेल के नियम उसके अपने नहीं हैं। खेल तो राजनीतिक दलों के बीच ही खेला जाएगा। वैसे इस खेल के पहले ही जो खेला होना था सो हो गया। जाती हुई सरकार को चलने वाली राजनीतिक पार्टी की आती में इस समय असंवैधानिक घोषित किये जा चुके इलेक्टोरल बांड से नंबर एक में कमाया गया 60 अरब

रुपया है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने इस अवैध तरिके से कमाए गए धन को अभी तक जब्त करने का आदेश नहीं दिया है। इस धनबल के बूते कोई भी राजनीतिक दल किसी भी आम चुनाव को उसी तरह जीत सकता है जैसे एक पके आम को चूसा जा सकता है। चुनाव में धनबल,बाहुबल और छलबल चलता है। ये तीनों संयोग से आज की सत्ता के हाथों में अकूत है ,सत्तारूढ़ दल के सामने समूचा विपक्ष विपन्न है ,लेकिन इतना भी विपन्न नहीं की मैदान छोड़कर भाग जाये।

देश की सियासत ‘ बहुचर्चित ‘ गुजरात मॉडल ‘ से होती हुई अब ‘ पुतिन मॉडल ‘ की और अग्रसर है । इसे देश का कोई कानून फिलहाल नहीं रोक सकता,किन्तु आम जनता के हाथों में अब भी मताधिकार का ‘अमोघ ‘ अस्त्र बचा हुआ है । अब ये जनता पर है कि वो देश के मुकुट मणि को खंडित करने वालों को 370 सीटें देकर जिताये या 400 सीटें देकर देश को एक नया मोदी नहीं बल्कि पुतिन दे। ये देश गांधी के रास्ते पर चलने वाला देश है । इस देश में परिवारवाद की जड़ें गहरी हैं ,इन्हीं जड़ों में से अब मोदी परिवार ने जन्म लिया है। इस परिवार के मुखिया वैसे ‘ रणछोड़ ‘ है। उन्होंने अपने परिवार का त्याग किया। उनकी साधना अब इतनी घनीभूत हो गयी है कि वे उन्हें अपने परिवार में शामिल करने वाले संघ परिवार से भी बड़े हो गए है। वे 1975 की ‘ इंदिरा इज इंडिया ‘ की तर्ज पर मोदी इज इंडिया ‘ बन चुके हैं।

देश की जनता अंधभक्त कही जाती है किन्तु वास्तव में है नहीं। ये वो जनता है जिसने दुर्गा बना दी गयी इंदिरा गाँधी को भारत का पर्याय बनने के भ्रम को तोड़ दिया था। इस जनता से उम्मीद की जा सकती है कि वो भारत का पर्याय बनने के इस दूसरे भ्रम को भी तोड़ सकती है। जनता अगर ऐसा नहीं करती तो उसे आने वाले दिनों में सिवाय छल-प्रपंच के कुछ हासिल होने वाला नहीं है। जनता को देखना और समझना होगा कि आज दुनिया की सबसे बड़ी चन्दाखोर पार्टी की अंटी में जो पैसा है वो जनता की अंटी का है । ये पैसा ‘ स्वेच्छाअनुदान ‘ नहीं बल्कि चौथ वसूली का पैसा है। ये पैसा दानदाताओं की गर्दन पार ईडी और सीबीआई की तलवार रखकर वसूल किया गया है। जनता के हिस्से में तो दो रूपये का एक टुकड़ा आया है जबकि उसकी जेब से एक दशक में 35 से 40 रूपये अकेले पेट्रोल -डीजल के दाम बढ़कर निकाल लिए गए है।

बहरहाल अब चुनावी शंखनाद के बाद मेघनाद के आर्त्तनाद पर आते है। हमारे इस दशक के हीरो और आज की रामलीला के मेघनाद ने चुनावों की घोषणा से ठीक एक दिन पहले देश की जनता के नाम एक भावुक पत्र लिखकर कहा है कि देश की जनता जीएसटी लागू करने , धारा 370 समाप्त करने , तीन तलाक पर नया कानून, और संसद में महिलाओं के लिए नारी शक्ति बंदन अधिनियम बनाने के साथ ही नये संसद भवन का निर्माण, आतंकवाद और नक्सलवाद पर कठोर प्रहार जैसे अनेक ऐतिहासिक और बड़े फैसले लेने वाली सरकार को दोबारा चुने।

इस दशक के पहले और आखरी आर्त्तनाद में कहा गया है कि -‘ “विकास और विरासत को साथ लेकर आगे बढ़ते भारत ने बीते एक दशक में जहां बुनियादी ढांचों का अभूतपूर्व निर्माण देखा, तो वहीं हमें अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और राष्ट्रीय धरोहरों के पुनरुत्थान का साक्षी बनने का गौरव भी प्राप्त हुआ। अपनी समृद्ध संस्कृति और परंपरा को सहेजकर आगे बढ़ते देश पर आज हर देशवासी को गर्व है।” निश्चित ही देश ने ये क्षण देखें हैं लेकिन इस देश ने जलता हुआ मणिपुर भी देखा है । सिसकता हुआ जम्मू-कश्मीर और लद्दाख भी देखा है । पुलिस की गोली से मरते हुए 700 से ज्यादा किसान भी देखे है। धनबल से बनती बिगड़ती सरकारें भी देखीं है। 77 सालों में सबसे ज्यादा हुआ दल-बदल और ‘ ऑपरेशन लोट्स ‘ भी देखा है। सड़कों पर बिलखती महिला पहलवान भी देखीं हैं। बिना रोजगार के सरकारी खजाने से मुफ्त का अन्न खाने पर मजबूर 80 करोड़ बेबस लोग भी देखे हैं।

कायदे से फैसला इन्हीं दो तस्वीरों के आधार पर किया जाना है। शर्त यही है कि मेरुदंड विहीन केंचुआ इस जाती हुई सरकार की कठपुतली की तरह काम न करे । जनता का काम जनता को करने दिया जाय। केंचुआ देखे कि इस समय टीवी चैनलों पर माँ से लेकर बाबा तक को मजबूत करने के फर्जी गारंटी देने वाले विज्ञापनों को रोका जाना चाहिए या नहीं ? फिलहाल हम देश में नए लोकतान्त्रिक महासमर की घोषणा का तहेदिल से स्वागत करते हैं और सभी पक्षों के प्रति अपनी शुभकामनायें प्रेषित करते हैं। हमारी शुभकामनायें किसी एक दल के लिए नहीं हैं।

@ राकेश अचल

achalrakesh1959@gmail.com

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