मुद्दे की बात : देश की संसद में ही ‘टपका’ विकास

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साल भर पहले ही बनी नई संसद की भव्य इमारत 

अयोध्या में निर्मित भव्य राम मंदिर की छत टपकने के बाद इसके मजबूती से किए निर्माण के दावों पर सवालिया निशान लगे थे। खैर, वह धार्मिक स्थल का मामला था और उसका निर्माण करने वाले देशवासियों के प्रति जवाबदेह नहीं थे। अब तो हालात हद से बाहर हो चुके हैं। दिल्ली में बुधवार को जोरदार बारिश के बाद संसद की नई इमारत में भी जलभराव हो गया। जबकि संसद की लॉबी में रिसाव हो गया यानि उसकी छत भी टपकने लगी।

इसे लेकर कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष पिछली एनडीए सरकार द्वारा बनवाए नए संसद भवन के निर्माण को लेकर हमलावर है। इसे मामले में कांग्रेस ने बाकायदा एक नोटिस भी सरकार को दिया है। तमिलनाडु के विरुधुनगर सीट से कांग्रेस के सांसद मणिकम टैगोर बी. ने नोटिस जारी करते हुए लिखा है कि मैं इस सदन की कार्यवाही स्थगित करने के लिए एक प्रस्ताव लाने की अनुमति मांगने के अपने इरादे की सूचना देता हूं। ताकि एक महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा की जा सके। लोकसभा अध्यक्ष को संबोधित करते लिखे इस लेटर में मणिकम टैगोर ने लिखा है कि मैं बुधवार को भारी बारिश के बाद की चिंताओं को बता रहा हूं। कल बारिश के बाद संसद भवन की लॉबी में पानी का रिसाव हुआ और कई जगह पानी भर गया। जिस रास्ते से भारत के राष्ट्रपति नए संसद भवन में प्रवेश करते थे, वहीं पर यह दिक्कत है। यह घटना इमारत में मौजूद दिक्कतों को उजागर करती है, जबकि इसे बने अभी एक साल ही हुआ हैं।

मणिकम ने आगे लिखा है कि इस समस्या से निपटने के लिए, मैं सभी दलों के सांसदों को शामिल करते हुए एक विशेष समिति बनाने का प्रस्ताव रखता हूं। जो इमारत का गहन निरीक्षण करेगी, समिति पानी लीकेज के कारणों पर भी ध्यान केंद्रित करेगी। इसके अलावा इमारत की डिजाइन और सामग्रियों का मूल्यांकन भी किया जाएगा। इसके बाद आवश्यक मरम्मत की सिफारिश की जाएगी। नोटिस के अंत में मणिकम ने लिखा है कि मैं सभी सदस्यों से आग्रह करता हूं कि वे हमारी संसद की सुरक्षा और अखंडता को बनाए रखने के लिए इस पहल का समर्थन करें। इस नोटिस लेटर की कॉपी, लोकसभा अध्यक्ष, मंत्रालय, संसदीय कार्य मंत्रालय को भी भेजी गई है। ऐसे में लगता है कि कांग्रेस ने विपक्ष की सही भूमिका निभाते हुए इस मुद्दे पर तकनीकी तरीके से सत्तापक्ष को घेरने वाला सही कदम उठाया है। जहां तक सरकार यानि सत्ताधारियों का सवाल है तो वे जवाबदेही से बचना चाहेंगे। हालांकि संसद में इस मुद्दे पर वे भले ही बच सकते हैं, लेकिन जनता-अदालत के कटघरे में उनको खड़ा ही होना पड़ेगा।

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