आइए जानते हैं होम्योपैथी के संस्थापक डॉ. सैमुअल फ्रेडरिक हैनीमैन के बारे में।
होम्योपैथी दिवस 10 अप्रैल को मनाया जाता है जो डॉ सैमुअल फ्रेडरिक हैनीमैन की जन्म जयंती को समर्पित है।
देशभर में इलाज की तीन प्रमुख पद्धतियां एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेद हैं। प्रत्येक संभावित उपचार नियम का अलग-अलग तरीके से पालन किया जाता है। आजकल लोग इन तीनों के बारे में जागरूक हो गए हैं और इलाज के लिए इन पर भरोसा कर रहे हैं। हालाँकि आजकल एलोपैथी के बाद होम्योपैथी और आयुर्वेदिक पद्धति की चर्चा अधिक होती है। इनमें से कौन सा तरीका बेहतर है, इस बारे में सभी की अलग-अलग राय है।
10 अप्रैल को पूरी दुनिया में ‘विश्व होम्योपैथी दिवस’ मनाया जाता है। यह दिन होम्योपैथिक चिकित्सा प्रणाली के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए मनाया जाता है। डॉ. सैमुअल फ्रेडरिक हैनिमैन ने होम्योपैथिक दवाओं की खोज की। कोरोना काल के बाद कई लोग ऐसे हैं जिनका होम्योपैथी की ओर रुझान पहले से कहीं ज्यादा हुआ है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि एलोपैथिक दवाओं के बहुत ज्यादा दुष्प्रभाव होते हैं जबकि होम्योपैथी में नहीं होते। महामारी के दौरान कई मामलों में एलोपैथिक दवाएं अप्रभावी पाई गईं। इससे पहले होम्योपैथी को एक वैकल्पिक विज्ञान के रूप में लोगों के बीच जागरूक किया गया था।
आइए जानते हैं होम्योपैथी के जनक डॉ. सैमुअल फ्रेडरिक हैनीमैन के बारे में :-
सैमुअल फ्रेडरिक हैनीमैन का जन्म 10 अप्रैल, 1755 को हुआ था। 1796 में उन्होंने दुनिया को होम्योपैथी नामक एक नई चिकित्सा प्रणाली से परिचित कराया। तभी से होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति का अपना विशेष महत्व रहा है। होम्योपैथी दिवस 10 अप्रैल को मनाया जाता है, जो डॉ सैमुअल फ्रेडरिक हैनीमैन की जयंती को समर्पित है।
डॉ सैमुएल फ्रेडरिक हैनीमैन का जन्म जर्मनी के एक गांव मीसेन ड्रेसडेन में एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गाँव के स्कूल से प्राप्त की, लेकिन परिवार की गरीबी के कारण उन्हें बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी और एक स्टोर में नौकरी मिल गई। कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और 1779 में एम.डी. की उपाधि अर्जित की।
सैमुअल फ्रेडरिक हैनिमैन होम्योपैथी के संस्थापक हैं। उन्होंने अपनी प्रैक्टिस छोड़ दी और पुस्तकों का एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद करना शुरू कर दिया। एक दिन एक किताब का अनुवाद करते समय उन्होंने ‘सिनकोना पेड़’ के बारे में पढ़ा कि अगर किसी स्वस्थ व्यक्ति को सिनकोना की पत्तियां खिलाई जाएं तो उसमें मलेरिया के लक्षण प्रकट हो सकते हैं। यह बात डाॅ. सैमुअल फ्रेडरिक हैनीमैन ने सत्य पाया और प्रयोग करना शुरू किया। वास्तव में ऐसा हुआ और इस तरह होम्योपैथी अस्तित्व में आई। भारत में होम्योपैथी 1810 में अस्तित्व में आई।
डॉ. हैनीमैन एलोपैथी के डॉक्टर होने के साथ-साथ कई यूरोपीय भाषाओं के जानकार भी थे। वह रसायन विद्या में निपुण था। आजीविका के लिए चिकित्सा और रसायन विज्ञान करने के अलावा उन्होंने अंग्रेजी भाषा के ग्रंथों का जर्मन और अन्य भाषाओं में अनुवाद भी किया।
एक बार जब “कैलन मटेरिया मेडिका” में डॉ. कैलन द्वारा वर्णित हर्बल कुनैन का अंग्रेजी से जर्मन में अनुवाद किया जा रहा था, तो डॉ. सैमुअल हैनीमैन का ध्यान डॉ. कैलन के विवरण की ओर आकर्षित हुआ, जहां कुनैन के बारे में कहा गया था कि “हालांकि कुनैन मलेरिया को ठीक करता है, लेकिन यह स्वस्थ शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण उत्पन्न भी करता हैं।
डॉ. कैलन द्वारा कही गई यह बात डॉ. हैनिमैन के मन में बैठ गई। तर्कसंगत विचार करते हुए उन्होंने प्रतिदिन छोटी-छोटी जड़ी-बूटियाँ लेना शुरू कर दिया। लगभग दो सप्ताह के बाद उनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण विकसित हो गए। जड़ी-बूटियाँ लेना बंद करने से मलेरिया अपने आप ठीक हो गया। डॉ. हैनिमैन ने इस प्रयोग को कई बार दोहराया और हर बार उनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण विकसित हो गये। डॉ. हैनीमैन ने अपने एक चिकित्सक मित्र से कुनैन जड़ी-बूटियों के इस प्रकार उपयोग का उल्लेख किया।
इस डॉक्टर मित्र ने भी डॉ. हैनिमैन द्वारा बताई गई जड़ी-बूटी ली और उसमें मलेरिया बुखार जैसे लक्षण विकसित हो गए।
होम्योपैथी का सिद्धांत है ‘जहर जहर को मारता है’। इसका मतलब यह है कि जो रोग हमारे शरीर में है, हमें उसी प्रकार की बीमारी उत्पन्न करने के लिए शरीर में वैसी ही दवा देनी होगी ताकि उस रोग से लड़ा जा सके और रोगी स्वस्थ हो सके। बेशक सृष्टि पांच तत्वों से बनी है, लेकिन फिर भी हर इंसान का काम करने या जीने का तरीका अलग-अलग होता है। डॉ. सैमुअल हैनीमैन ने इसे ‘व्यक्तिकरण’ का नाम दिया है। इसका मतलब यह है कि अगर दो लोगों को बुखार है, तो उन दोनों के लक्षण अलग-अलग होंगे, भले ही बुखार को कोई भी नाम दिया गया हो। होम्योपैथी में बीमारी बनाम दवा नहीं है, बल्कि रोगी बनाम दवा पर जोर दिया जाता है। हालाँकि होम्योपैथी की खोज के साथ डॉ. सैमुअल सैमुअल हैनीमैन का विरोध भी हुआ लेकिन समय के साथ सब कुछ सच हो गया।
विश्व होम्योपैथी दिवस का महत्व:_
विश्व होम्योपैथी दिवस ने होम्योपैथी को सफलतापूर्वक लोगों के ध्यान में सबसे आगे ला दिया है, इसके सिद्धांतों और प्रथाओं में संवाद और रुचि पैदा की है। यह दिन होम्योपैथ, चिकित्सकों, शोधकर्ताओं और वैकल्पिक चिकित्सा में रुचि रखने वाले व्यक्तियों के बीच ज्ञान को बढ़ावा देने और आदान-प्रदान करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है। विश्व होम्योपैथी दिवस क्षेत्र में शिक्षा और नैतिक प्रथाओं के महत्व पर जोर देता है।
विश्व होम्योपैथी दिवस 2024 का विषय:_
विश्व होम्योपैथी दिवस 2024 का विषय है – “होमोफैमिली: एक स्वास्थ्य, एक परिवार”। विशेषज्ञों का कहना है कि होम्योपैथिक दवाएं और इनकी सफलता दर के बारे में जागरूकता बढ़ाकर विभिन्न प्रकार की समस्याओं को ठीक किया जा सकता है।
होम्योपैथी का एक और सिद्धांत जो उन्होंने प्रस्तुत किया वह यह है कि हमारे शरीर को चलाने वाली एक शक्ति है, जिसे उन्होंने ‘जीवन शक्ति’ का नाम दिया। जब रोग पकड़ लेता है तो यह ‘प्राण शक्ति’ कमजोर हो जाती है। जब रोगी को होम्योपैथिक दवा दी जाती है तो सबसे पहले यह ऊर्जा ठीक होती है और रोगी स्वस्थ महसूस करता है। हालांकि उस समय भी काफी विरोध हुआ, लेकिन डॉ. सैमुअल सैमुअल हैनीमैन ने तथ्यों के आधार पर बताया कि एक तरफ स्वस्थ जीवित व्यक्ति है और दूसरी तरफ मृत व्यक्ति है। दोनों में सभी अंग अपनी-अपनी जगह पर स्थिर हैं, लेकिन मृत व्यक्ति चल नहीं सकता, बोल नहीं सकता, लेकिन शरीर के सभी अंग उसमें भी मौजूद हैं। आख़िर क्या कमी है? वह है- ‘प्राण शक्ति’ यानी शरीर की वह शक्ति जो हमें रोगों से लड़ने में सक्षम बनाती है और जब यह अपना काम सही दिशा में करती है तो शरीर स्वस्थ रहता है। इस शक्ति को बनाए रखना आवश्यक है ताकि दुनिया का हर व्यक्ति स्वस्थ महसूस करे। इस महत्वपूर्ण शक्ति का दूसरा नाम प्रतिरक्षा प्रणाली है। आख़िरकार 2 जुलाई 1843 को 88 साल की उम्र में आप ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
लैक्चरर ललित गुप्ता
मण्डी अहमदगढ़।
सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल पखोवाल
9781590500
ईमेल आईडी – sciencemasterlkg@gmail.com