हरियाना/यूटर्न/18 सितंबर: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट किया है कि आत्महत्या के लिए उकसाने पर दर्ज एफआईआर को रद्द करने पर फैसला सुनाते हुए यह गौर करना जरूरी है कि उत्पीडऩ की घटनाओं का सामना करने पर सामान्य विवेक वाले सामान्य व्यक्ति की प्रतिक्रिया क्या होती है। इसके साथ ही उत्पीडऩ करने वाले व्यक्ति की मंशा क्या थी। फरीदाबाद निवासी सुनील चौहान ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। याची पर आरोप था कि वह उन तीन लोगों में से एक था जो मृतक को धमकी देते थे। मामला पैसे की वसूली से जुड़ा था, पैसा नहीं लौटा पाने पर व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली थी। सुसाइड नोट में भी याची को आत्महत्या का कारण बताया गया था। हाईकोर्ट ने याचिका पर सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुनाते हुए कहा कि घटना और उसके बाद की गई आत्महत्या के बीच एक निकट और जीवंत संबंध होना चाहिए। अभियुक्त के हाथों उकसाना एकमात्र कारक होना चाहिए, जिसके कारण आत्महत्या की गई हो। आत्महत्या के लिए उकसाने की अभियुक्त की मंशा और भागीदारी अनिवार्य है। आत्महत्या में नामजद होने मात्र से ही अभियुक्त की दोषसिद्धि स्थापित नहीं हो जाती, जब तक कि अपराध स्पष्ट न हो जाए। इस मामले में एफआईआर और सुसाइड नोट को लेकर कोर्ट ने पाया कि किसी भी तरह के गंभीर उत्पीडऩ का कोई जिक्र नहीं है। कोर्ट ने कहा कि रिकार्ड पर मौजूद आरोपों से यह साबित नहीं होता है कि याचिकाकर्ताओं का मृतक को ऐसी स्थिति में धकेलने का इरादा था कि वह अंतत आत्महत्या कर ले। स्पष्ट रूप से सामान्य विवेक वाला व्यक्ति ऐसी परिस्थितियों में आत्महत्या नहीं करता, लेकिन मृतक ने अपने अतिसंवेदनशील स्वभाव के कारण ऐसा किया। परिणामस्वरूप, कोर्ट ने एफआईआर और उसके बाद की सभी कार्यवाही को रद्द कर दिया।
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हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी-आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपी की मंशा पर गौर जरूरी, ये था मामला
Kulwant Singh
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