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दंपती में वैवाहिक विवाद के बीच बेटी ने पिता पर लगाया यौन उत्पीड़न का आरोप, पति को जमानत देते हुए दिल्ली ऌउ की अहम टिप्पणी

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नई दिल्ली, यूटर्न/ 03 जून।
पिता पर बेटी द्वारा दुष्कर्म का प्रयास करने का आरोप लगाने के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने बाल पीड़ितों के बयानों की सावधानीपूर्वक जांच करने की आवश्यकता पर बल दिया है। अदालत ने कहा कि ऐसे में जब माता-पिता के बीच वैवाहिक विवाद चल रहा हो तो उनके प्रभावित होने की संभावित रहती है।
पिता को राहत देते हुए न्यायमूर्ति अमित महाजन की पीठ ने कहा घटना और शिकायत दर्ज करने के बीच देरी के साथ ही यह अहम तथ्य है कि पीड़िता की मां व उसके पिता ने एक-दूसरे के खिलाफ मुकदमा किया है। ऐसे में जमानत के आवेदन पर निर्णय लेते समय न्यायालय द्वारा वैवाहिक कटुता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
बच्ची ने पिता पर क्या लगाए आरोप
अदालत ने उक्त टिप्प्णी व आदेश यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम-2012 (पोक्सो) के तहत दायर एक मामले में अग्रिम जमानत की मांग संबंधी पिता की याचिका पर दिया। पीड़िता बच्ची ने आरोप लगाया था कि सोते समय उसके पिता ने उसे आपत्तिजनक तरीके से स्पर्श किया था और उसके कपड़े उतार दिए थे।
मां ने बेटी का किया ब्रेनवॉश
याचिकाकर्ता पिता ने तर्क दिया था कि उसके व पीड़िता की मां के बीच वैवाहिक विवाद चल रहा था और मुकदमे अभी लंबित हैं। यह भी तर्क दिया कि पीड़िता की मां ने उसका ब्रेनवॉश किया था और 24 दिनों की देरी के बाद प्राथमिकी कराई गई थी। यह भी कहा कि पीड़िता ने पहले ही दो बयान दिए थे जो दशार्ते हैं कि आवेदक ने उसके खिलाफ कोई गलत काम नहीं किया है।
वहीं, याचिका का विरोध करते हुए अतिरिक्त लोक अभियोजक प्रदीप गहलोत ने तर्क दिया कि पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा-164 के तहत दर्ज किए गए अपने बयान में कहा कि आवेदक ने उसका यौन उत्पीड़न किया और उसके गुप्तांगों को छुआ था।
दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद अदालत ने माना कि गिरफ्तारी से पहले जमानत नियमित रूप से नहीं दी जानी चाहिए, गिरफ्तारी से पहले जमानत के आदेश नियमित रूप से नहीं दिए जा सकते हैं, लेकिन गिरफ्तारी से लगने वाला कलंक इस बात को रेखांकित करता है कि हिरासत में पूछताछ दंडात्मक उद्देश्यों के बजाय जांच के उद्देश्य से की जाती है।
अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने यह आरोप नहीं लगाया कि अंतरिम सुरक्षा दिए जाने पर आवेदक इसका दुरुपयोग करेगा या जांच को प्रभावित करेगा। अदालत ने यह भी कहा कि ऐसा कोई आरोप नहीं है कि जमानत पर रिहा होने पर याचिकाकर्ता के भागने का खतरा होगा।

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