कुछ तो ‘गड़बड़’ है, विपक्ष ने इस्तीफे की वजह पर लगाए सवालिया निशान
संसद में एक नाटकीय मोड़ आया, जब उप-राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सोमवार देर शाम ‘स्वास्थ्य कारणों’ का हवाला देते हुए इस्तीफ़ा दे दिया। दस जुलाई से लेकर अब तक और उससे भी ज़्यादा गंभीर बात यह है कि शाम 6 बजे के बाद जब कांग्रेसी एमपी अखिलेश प्रसाद सिंह उनसे मिलने वाले आखिरी ज्ञात राजनीतिक व्यक्ति बने, क्या हुआ, इस पर सवाल उठ रहे हैं।
दरअसल अखिलेश, धनखड़ के कार्यालय से निकले थे, उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा, उप-राष्ट्रपति ‘अच्छे स्वास्थ्य और उत्साह से भरे’ थे। नई समिति में शामिल होने को लेकर उत्साहित दिखाई दिए, लेकिन उन्होंने पद छोड़ने का कोई संकेत नहीं दिया। कुछ ही घंटे पहले, धनखड़ ने एक संवेदनशील महाभियोग प्रस्ताव पर चर्चा की अध्यक्षता की थी और अगले दिन के अपने कार्यक्रम के बारे में भी बताया था। जिसमें सुबह 10 बजे होने वाली कार्य मंत्रणा समिति की बैठक भी शामिल थी।
राजनीतिक गलियारों में अटकलों का बाज़ार गर्म है। बिना किसी पूर्व स्वास्थ्य चेतावनी या सार्वजनिक संकेत के अचानक इस्तीफ़ा देने से विपक्ष के वरिष्ठ नेता भी स्तब्ध रह गए। कांग्रेस के जयराम रमेश ने बीती रात लगभग 8 बजे धनखड़ से फ़ोन पर बात की और कहा कि उप-राष्ट्रपति अपने परिवार के साथ थे व सामान्य लग रहे थे। यहां तक कि उन्होंने अगले दिन बातचीत जारी रखने की योजना भी बनाई।
कुछ ही घंटे पहले, धनखड़ ने राज्यसभा की अध्यक्षता की थी और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के ख़िलाफ़ एक बहुप्रतीक्षित महाभियोग प्रस्ताव पर विचार-विमर्श किया था। इस प्रस्ताव पर 63 सांसदों ने हस्ताक्षर किए थे और कथित तौर पर विभिन्न दलों के 100 से ज़्यादा सांसदों ने इसका समर्थन किया था। धनखड़ ने संवैधानिक प्रक्रिया की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की। क़ानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल से परामर्श किया और एक संयुक्त समिति बनाने पर चर्चा की। हालांकि उन्होंने इस्तीफ़े की कोई संभावना नहीं जताई। महाभियोग की कार्यवाही कैसे आगे बढ़ेगी, इसके लिए राज्यसभा के सभापति के रूप में उनकी भूमिका केंद्रीय थी। उनके अचानक इस्तीफे ने विपक्ष की रणनीतिक-गणना को बिगाड़ दिया है।
इसी बीच, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के कार्यालय के बाहर के दृश्यों ने रहस्य को और बढ़ा दिया। जहां भाजपा सांसद बिना कोई टिप्पणी किए अंदर-बाहर आते-जाते देखे गए। अचानक से हड़बड़ाए हुए इंडिया ब्लॉक ने इस अप्रत्याशित सत्ता शून्यता के बीच अपने रुख पर पुनर्विचार करने के लिए मंगलवार सुबह 10 बजे सदन के नेताओं की एक तत्काल बैठक बुलाई। फ़िलहाल, धनखड़ का अचानक, अस्पष्ट और राजनीतिक रूप से दबाव में लिया गया यह कदम संसदीय कार्यवाही को एक पूर्ण राजनीतिक रोमांच में बदल चुका है। कुछ दिन पहले, धनखड़ ने जेएनयू में मज़ाक में कहा था कि वह 2027 में ‘ईश्वरीय कृपा’ से सेवानिवृत्त हो जाएंगे। बीती रात उनका यह ‘डायलॉग’ एक सहज हास्य से ज़्यादा एक रहस्यमय संकेत लगता है।
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