शुभांशु शुक्ला की हालिया भागीदारी, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर अहम कदम
भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम एक परिवर्तनकारी दौर में प्रवेश कर चुका है। साल 2035 तक भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन होने की घोषणा के साथ देश ने मानव अंतरिक्ष उड़ान, पृथ्वी की निचली कक्षा अनुसंधान और वैश्विक अंतरिक्ष कूटनीति के प्रति दीर्घकालिक प्रतिबद्धता का संकेत दिया है। प्रस्तावित भारत अंतरिक्ष स्टेशन केवल एक तकनीकी मील का पत्थर नहीं, यह वैश्विक अंतरिक्ष पदानुक्रम में भारत की स्थिति को मज़बूत करने की दिशा में एक रणनीतिक कदम है।
भारत अंतरिक्ष स्टेशन के लिए 2035 की समय-सीमा भारत की बढ़ती अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं और अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसे अंतर्राष्ट्रीय प्लेटफार्मों पर निर्भरता कम करने की उसकी इच्छा के अनुरूप है। जिसे 2030 के दशक की शुरुआत तक बंद किया जा सकता है। अपना स्वयं का कक्षीय प्लेटफ़ॉर्म स्थापित करने से भारत को ये सुविधाएं मिलेंगी। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए एक भू-राजनीतिक उपकरण, जिसमें विकासशील देशों को अंतरिक्ष तक पहुंच प्रदान करना भी शामिल है। यह कदम एक परिपक्व अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र को भी दर्शाता है, जहां भारत वैश्विक मिशनों में भागीदार से मेजबान बनने की ओर अग्रसर है। एक्सिओम-4 मिशन में शुभांशु शुक्ला की हालिया भागीदारी – अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर भारत के पहला अंतरिक्ष यात्री को इसके तात्कालिक परिप्रेक्ष्य से परे भी समझा जाना चाहिए। यद्यपि यह मिशन अमेरिका स्थित एक निजी अंतरिक्ष कंपनी, एक्सिओम स्पेस के साथ संचालित किया गया था, फिर भी इस मिशन ने भारत को कई उपलब्धियां हासिल कराईं।
हालांकि आलोचकों का तर्क है कि 550 करोड़ की लागत मूर्त परिणामों से अधिक हो सकती हैं, लेकिन दीर्घकालिक ज्ञान हस्तांतरण और प्राप्त तकनीकी जानकारी अपरिहार्य है। मंत्री जितेंद्र सिंह ने मिशन की वैज्ञानिक योग्यता का स्पष्ट रूप से बचाव किया और शुक्ला को अधिकांश प्रयोग करने वाले पायलट के रूप में वर्णित किया। जो भारत की सक्रिय भूमिका को दर्शाता है, ना कि निष्क्रिय भागीदारी को।
आगामी गगनयान मिशन, जिसकी 2027 में उम्मीद है, भारत का पहला पूर्णतः स्वदेशी मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन होगा। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर निर्भर पिछले प्रयासों के विपरीत, इस मिशन को कई तरह उपयोग किया जाएगा। यह मिशन भारत के लिए उन विशिष्ट देशों के समूह में शामिल होने का टिकट होगा, जो वर्तमान में अमेरिका, रूस और चीन तक सीमित हैं। जिन्होंने स्वतंत्र मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमताओं का प्रदर्शन किया है। भारत की घोषणा को तकनीकी राष्ट्रवाद के व्यापक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। अंतरिक्ष उपलब्धियों का उपयोग भू-राजनीतिक शक्ति और राष्ट्रीय गौरव का दावा करने के लिए होगा। चीन का तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन पहले से ही चालू है और अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन अपने जीवनचक्र के अंत के करीब है। भारत वैश्विक दक्षिण के लिए लीयो पहुच में तीसरे ध्रुव के रूप में अपनी स्थिति बना रहा है। भारत सरकार का यह ज़ोर कि हमारा देश विदेशी अंतरिक्ष यात्रियों और प्रयोगों की मेजबानी के लिए खुला है। अंतर्मुखी विकास से अंतरिक्ष कूटनीति की ओर बदलाव को दर्शाता है, जहां भारत का बुनियादी ढांचा अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान और रणनीतिक गठबंधनों के लिए एक मंच बन सकता है। केंद्र सरकार ने भारत के अंतरिक्ष भविष्य में निजी उद्यम की भूमिका पर भी ज़ोर दिया। 2020 में इस क्षेत्र को निजी खिलाड़ियों के लिए खोल दिए जाने के साथ, अनुमानों के अनुसार भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 2033 तक 8.4 अरब डॉलर से बढ़कर 44 अरब डॉलर हो जाएगी। स्टार्टअप, तकनीकी कंपनियों और निजी प्रक्षेपण सेवा प्रदाताओं से नवाचार और लागत में कमी लाने की उम्मीद है, जो भारत अंतरिक्ष स्टेशन जैसी बड़े पैमाने की पहलों को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
फिर भी भारत का दृष्टिकोण व्यावहारिक है। लंबी अवधि के मानव अंतरिक्ष यान या गहरे अंतरिक्ष मिशनों में जल्दबाजी करने के बजाए वह चरण-दर-चरण निर्माण कर रहा है। संयुक्त मिशन जैसे एक्सिओम-4 से शुरुआत करके, फिर एक स्वदेशी कक्षीय मिशन (गगनयान) और अंत में एक राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना। स्वायत्तता और अंतर्राष्ट्रीय खुलेपन के साथ भारत को ना केवल अंतरिक्ष में आत्मनिर्भर बना सकता है, बल्कि पहुंच, विशेषज्ञता और नेतृत्व का वैश्विक प्रदाता भी बना सकता है। संक्षेप में, अंतरिक्ष स्टेशन के लिए 2035 का लक्ष्य सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है, यह अंतरिक्ष में भारत के अगले दो दशकों के लिए एक रणनीतिक खाका है।
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