आप सुप्रीमो केजरीवाल की अग्नि परीक्षा है राजधानी के विधानसभा चुनाव
दिल्ली विधानसभा चुनाव में वोटिंग के बाद जब एग्ज़िट पोल आए तो बीजेपी, आम आदमी पार्टी से आगे दिखी। आप के सामने सत्ता बचाने की चुनौती है, लेकिन एग्ज़िट पोल के आंकड़े आप के उलट हैं। हालांकि एग्ज़िट पोल के अनुमान हर बार सही साबित नहीं होते, लेकिन इस बार दिल्ली में एग्ज़िट पोल के नतीजे सही साबित हुए तो बीजेपी यहां लगभग 27 साल बाद सत्ता में वापसी कर लेगी।
सियासी माहिरों और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अगर आप हारती है तो ये पार्टी के लिए एक बड़ी हार साबित होगी। बीबीसी ने भी इस मुद्दे पर ताजा रिपोर्ट की। जिसके अनुसार बीते एक दशक में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के साथ पंजाब में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के साथ राष्ट्रीय पार्टी बनने की यात्रा पूरी की।
इस सफर के दौरान दिल्ली में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर कथित शराब घोटाले के आरोप लगे, कई नेताओं को जेल जाना पड़ा। इस घटना का असर पार्टी की रणनीति पर भी दिखी। आमतौर पर आक्रामक रहने वाली आप भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद कई मौक़ों पर डिफ़ेंसिव मोड में दिखी। जेल से आने के बाद आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर कहा था कि वो ‘जनता की अदालत’ में ख़ुद को साबित करेंगे। पीछे जाएं तो वो साल 2011 था, लोगों का हुजूम दिल्ली के रामलीला मैदान में जुटा था। केजरीवाल के सिर पर सफ़ेद रंग की ‘आइ एम अन्ना’ लिखी टोपी और जुबां पर भ्रष्टाचार विरोधी नारे। लोगों के सामने एक बड़ा सा मंच था. मंच पर अन्ना हजारे अपने सहयोगियों संग अनशन पर बैठे थे. इनमें से एक केजरीवाल भी थे। दिसंबर जाते-जाते अन्ना हज़ारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन ख़त्म हो चुका था। केजरीवाल ने इसके बाद अगले साल राजनीति में जाने की ठानी और 26 नवंबर, 2012 को आम आदमी पार्टी के गठन की घोषणा की। तब उन्होंने कहा था कि मजबूरी में हम लोगों को राजनीति में उतरना पड़ा, हमें राजनीति नहीं आती है। इस देश के आम आदमी भ्रष्टाचार और महंगाई से दुखी हैं।
केजरीवाल जिस पार्टी को मजबूरी में शुरू करने की बात करते थे, उस पार्टी ने महज दस साल में दिल्ली के भीतर अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराई। आप ने दिल्ली में तीन बार विधानसभा और दो नगर निगम के चुनाव लड़े। विधानसभा में दो बार पार्टी ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया और एक बार दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी। वहीं 2017 में पार्टी को नगर निगम चुनाव में हार मिली, लेकिन 2022 में एमसीडी में भी जीत मिली। केजरीवाल ने 2013 में 28 सीटों के साथ दिल्ली की राजनीति शुरू की थी। इसके बाद 2015 में आप ने 70 में से 67 सीटें जीतीं और दिल्ली में सारे रिकॉर्ड तोड़कर नया इतिहास बना दिया। साल 2020 में सीटों की संख्या कम होकर 62 हुईं, लेकिन कोई भी दल केजरीवाल को चुनौती देते हुए नहीं दिखा। राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे के मुताबिक आप केवल दो राज्यों- दिल्ली और पंजाब की पार्टी है, अगर एक राज्य हार जाएगी तो उसके ऊपर बहुत बड़ा प्रहार होगा। दिल्ली आप का मुख्यालय है, यहीं से पार्टी लॉन्च हुई थी। इसलिए यहां पर चुनाव जीतना उसके लिए ज़रूरी है। हालांकि लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी दिल्ली में अब तक खाता नहीं खोल पाई। आप ने तीन लोकसभा चुनाव लड़े और तीनों में हार मिली। सितंबर, 2024 में केजरीवाल कथित शराब घोटाले में सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिलने के बाद तिहाड़ जेल से बाहर आए। उनका कहना था कि मैं तब तक सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा, जब तक जनता अपना फ़ैसला ना सुना दे।
केजरीवाल ने ज़ोर देकर कहा था कि मैंने तय किया कि मैं जनता की अदालत में जाऊंगा। जनता से पूछूंगा कि जनता मुझे बताए कि मैं बेईमान हूं या नहीं। इसके बाद दिल्ली में केजरीवाल ने अलग-अलग जगहों पर जनता की अदालत लगाई और ईमानदारी पर वोट देने की बात दोहराई। अगर एग्ज़िट पोल सही साबित होते हैं तो निश्चित रूप से यह केजरीवाल के लिए किसी झटके से कम नहीं होगा।
इसके अलावा यह चुनाव अरविंद केजरीवाल की मुफ़्त वाली योजनाओं का लिटमस टेस्ट भी है। विश्लेषकों का कहना है कि अन्ना हजारे के आंदोलन से जन्मी पार्टी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। पार्टी भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आंदोलन से जनता के बीच आई थी और अब उस पर कथित भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग चुके हैं।
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