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मुद्दे की बात : हरियाणा चुनाव में महिलाओं की कम आबादी पर चर्चा तक नहीं

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देश की राजधानी दिल्ली के सटे राज्य हरियाणा में कुछ ही दिनों में विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। इस कृषि प्रधान  राज्य में हरियाली से खुशहाली तो सबको नजर आती है। जबकि इसी सूबे में लिंगानुपात यानि पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं की कम तादाद पर अलग-अलग मंचों से अक्सर चर्चा होती रहती है। हालांकि गंभीर पहलू है कि यही मुद्दा चुनाव में कहीं नज़र नहीं आता है।

गौरतलब है कि भारत सरकार ने अपनी ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना की शुरुआत भी इसी राज्य से की थी। यहां काबिलेजिक्र है कि हरियाणा में अविवाहित पुरुषों को राज्य सरकार की तरफ़ से पेंशन भी दी जाती है। राज्य में युवाओं की शादी के लिए लड़कियों की कमी भी एक बड़ी समस्या है।

इसे लेकर बीबीसी तक ने हाल में ही रिपोर्ट प्रकाशित की थी। जिसके मुताबिक यहां कई इलाक़ों में शादी के लिए लड़कियों की तलाश झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में की जाती है। इस सबके बावजूद हरियाणा के विधानसभा चुनाव में लिंगानुपात के चुनौतीपूर्ण मुद्दे पर कोई भी राजनीतिक दल चर्चा नहीं कर रहा है। जबकि देश के प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस, बीजेपी, आम आदमी पार्टी, जेजेपी और अन्य कई दल चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। यहां चुनाव में बेशक अग्निवीर योजना, किसान आंदोलन और महिला खिलाड़ियों का मुद्दा राजनीतिक दलों के बीच काफ़ी अहम नज़र आ रहे हैं। चुनाव प्रचार के दौरान इन मुद्दों पर तो  बहुत कुछ सुनने को मिल रहा है। जबकि महिलाओं की कम तादाद को मुद्दा बनाना तो दूर कोई भी राजनीतिक दल चर्चा तक करने को राजी नहीं है। इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री के मुताबिक हरियाणा कई मामलों में देश के बाक़ी राज्यों आगे है। जबकि लिंगानुपात के मामले में यही सूबा काफी पीछे है। हकीकत में यही हरियाणा का एक बड़ा विरोधाभास है, लेकिन अफसोस चुनाव में यह कोई मुद्दा नहीं बन पाता है।

यहां आकंड़ों पर नजर डालें तो साल 2011 की जनगणना के मुताबिक़ हरियाणा में तब एक हज़ार पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं की आबादी महज़ 877 रही है। वहीं केरल में 1000 पुरुषों की तुलना में 1084 महिलाएं हैं। जबकि पूरे भारत में राष्ट्रीय स्तर पर एक हज़ार पुरुषों के मुक़ाबले 940 महिलाएं हैं। भारत में साल 2011 में हुई पिछली जनगणना में 0 से 6 साल के बच्चों में एक हज़ार लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या हरियाणा में सबसे कम 830 थी। गौर करें कि  हरियाणा में युवाओं की शादी के लिए लड़कियों की कमी की समस्या पुरानी है। पिछले साल जुलाई में राज्य सरकार ने 45 से 60 साल तक के अविवाहित पुरुषों के लिए पेंशन की घोषणा तक कर दी थी। हरियाणा भारत का ऐसा पहला राज्य है, जिसने इस तरह की पेंशन योजना शुरू की है। हरियाणा में लड़के और लड़कियों को अनुपात के हिसाब से देखें तो राज्य में प्रति एक हज़ार युवाओं में 100 से ज़्यादा युवाओं की शादी नहीं हो सकती है। ज़ाहिर है कि लड़कों और लड़कियों की आबादी का संतुलन बिगड़ रहा है। वैसे तो युवाओं के अविवाहित रहने की वजह आबादी का बिगड़ता संतुलन तो है ही, लेकिन बढ़ती बेरोज़गारी भी है।

भारत सरकार के श्रम और रोज़गार मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक़ राज्य में साल 2022-23 में बेरोज़गारी दर 6.1% रही है। यह भारत के राष्ट्रीय दर 3.2% से क़रीब दोगुनी है।

सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के मुताबिक़ बेरोज़गारी दर के मामले में हरियाणा देश के शीर्ष राज्यों में शामिल है। विपक्ष के नेता अक्सर केंद्र से लेकर राज्य सरकार पर इस मामले में निशाना साधते नज़र आते हैं। हालांकि सियासी जानकर इसे लेकर विपक्ष पर भी कटाक्ष करते हैं कि उनके सत्ता में रहने के दौरान भी इस समस्या को हल करने के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किए गए। जिसके चलते यह गंभीर चुनौती अब भी बरकरार है, बल्कि कहें तो और गंभीर होती जा रही है।

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