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धूम्रपान न कर स्वस्थ जीवन का आनन्द लें

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धूम्रपान न कर स्वस्थ जीवन का आनन्द लें

डॉ. एस.के. गौड़

रश्मि स्टेशन पर बैठी अपनी आने वाली गाड़ी का इन्तजार कर रही थी कि यकायक उसका जी मिचलाने लगा। इतना ही नहीं उसे उल्टियां व घबराहट भी शुरू हो गयी। यह देख आसपास लोग आने लगे।

 

यह सबकुछ जिस व्यक्ति के कारण हुआ वह अब भी धाराप्रवाह धुआं सिगरेट पीकर उड़ा रहा था। उसे इसकी कतई जानकारी न थी कि उसके इस नादान गलत काम से दूसरे को कितना कष्ट हो रहा है। ऐसे में उस व्यक्ति को शालीनता से सिगरेट पीने की मनाही करनी चाहिए थी। दबाव से या कानून की बात करने पर वह भड़क सकता था।

 

हमारे देश में सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने पर रोक लगा दी गई है, लेकिन बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी है।

 

जिन्हें जानकारी है, वे लापरवाही की वजह या कानून के विपरीत चलने की आदत से इसे नहीं छोड़ पा रहे हैं। कानून का आदर करने वाले दूसरों की परेशानी का भी ध्यान रखते हैं।

 

सरकार ने स्वास्थ्य की दृष्टि से सिगरेट, सिगार की डिब्बियों व अन्य तम्बाकू के पैकेटों पर ‘चेतावनी’ लिखना अनिवार्य कर दिया है। इतना ही नहीं, कानून बनाकर सार्वजनिक स्थानों जैसे- बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेशन, मॉल, सिनेमा घर, स्कूल, अस्पताल, कॉफी घर, डिस्को आदि पर धूम्रपान करने वालों को 200 रुपये जुर्माना देना होगा।

 

वैसे सुरक्षा की दृष्टि से अति ज्वलनशील पदार्थों वाले स्थानों जैसे- पेट्रोल, डीजल, पम्प, गैस सेन्टर (घरेलू व व्यावसायिक) आदि पर पहले से ही धूम्रपान की सख्त मनाही है।

 

क्या केवल कानूनी दबाव से धूम्रपान पर अंकुश लगाया जा सकता है? बुद्धिजीवियों का उत्तर शायद ‘नहीं’ होगा। जब तक जनता में इसके प्रति जागरुकता नहीं आएगी, तब तक इस कदम में आशातीत सफलता नहीं मिल पायेगी।

 

इसके लिये अशासकीय संगठनों (एन.जी.ओ.) स्वास्थ्य केन्द्र, (व्यक्तिगत व शासकीय), सभी धर्म गुरुओं का सहयोग प्रशंसनीय कदम हो सकता है।

 

धूम्रपान करते समय लोगों को बताना चाहिए कि वह जो कर रहे है, उसके दूरगामी परिणाम घातक हो सकते हैं। सोचें व विचारें, जान है तो जहान भी है।

 

स्वार्थी होना इंसानों में ही नहीं, बल्कि जानवरों में भी देखा गया है। जैसे- एक बन्दरिया को बच्चों सहित काफी गहरे ड्रम में छोडऩे के बाद उसमें पानी भरना शुरू किया गया। पानी का स्तर बढऩे के साथ ही बन्दरिया बच्चे को बचाने के लिए अपने कंधे पर बैठा लेती है। जब स्वयं भी डूबने लगती है तो बच्चों को नीचे उतार अपनी जान बचाने के लिए उनके ऊपर चढ़ जाती है। अत: स्वार्थी नहीं बने और स्वास्थ्य के लिए आज ही से तम्बाकू व धूम्रपान का त्याग करें।धूम्रपान करने वाले माता-पिता के शिशुओं की तम्बाकू के धुएं से स्तनपान में अरुचि हो जाती है।

 

तम्बाकू ऐसे तरीकों से लेते हैं-

 

तम्बाकू खाने, पीने, नाक आदि द्वारा लेने के अनेक रूप होते हैं। जैसे- सिगरेट, सिगार, बीड़ी, हुक्का, चिलम आदि से धुएं के रूप में, गुटखा, चूने के साथ रगड़कर खाने तथा मंजन आदि के रूप में।

 

एक छोटी-सी थैली में तम्बाकू की पुडिय़ा व छोटी-सी डिब्बी में चूना रखने की भी प्रथा है, क्योंकि हथेली पर रखकर रगडऩे की अलग कला है।

 

तम्बाकू की आदतें ऐसे पड़ जाती हैं-

 

पारिवारिक व आस-पास का वातावरण : बचपन साफ सफेद कागज की तरह होता है। उस पर जो लिखा जाता है, अमिट हो जाता है। बच्चा अपने नजदीकी व्यक्तियों को देख अनुसरण करता है। उसे गलत-सही की जानकारी न के बराबर होती है। वह जिज्ञासावश नई वस्तु, नये काम, नई बातें आसानी से सीख लेता है। ऐसी ही आदत तम्बाकू की पड़ जाती है, जो उम्र बढऩे के साथ गहरी प्रभावकारी होती चली जाती है।

 

आवभगत करने में तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट की पूछना। ऐसा न करना अशिष्टाचार कहलाता है। लोग कह देते हैं, हुक्का-पानी का भी नहीं पूछा।

 

तन्हाई का मौका- ऐसे में अपना समय पास करने के लिए तम्बाकू का आसान साधन ग्रहण कर व्यक्ति तन्हाई को मित्र बना लेता है।

 

तम्बाकू के पदार्थ (सिगरेट, बीड़ी, गुटखा, नसवार आदि) आसानी से व सस्ते मिल जाते हैं। जो गरीब से गरीब व्यक्ति की पहुंच में होते हैं। अत: इसकी आदत आसानी से पड़ जाती है।

 

इसकी आदत इच्छाशक्ति गिरने से ही सम्भव है। ऐसे में न चाहते हुए भी व्यक्ति इसकी गिरफ्त में फंसता चला जाता है। स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक बात जानते हुए भी अपने को रोक पाने में कमजोर पाता है।

 

द्य इच्छा शक्ति मजबूत व अडिग रखने वाले व्यक्तियों पर घर-बाहर व मित्र मण्डली के वातावरण आदि का प्रभाव नहीं पड़ता। लोग बुजदिली में कहते सुने जाते हैं कि क्या करें? छूटती ही नहीं। यह उनका अपनी कमजोरी छिपाने का तकिया कलाम होता है।

 

धूम्रपान करने वाले कहते हुए मिल जायेंगे कि सुबह लैट्रिन नहीं उतरती, पेट में गैस बनने से पेट फूलता है, दर्द भी होने लगता है। बीड़ी-सिगरेट पीने से आराम मिल जाता है।

 

मंजन करने वाले कहते हैं- पायरिया व दांतों के दर्द में राहत मिलती है, जबकि ऐसा कदापि नहीं।

 

नवदुर्गा व्रत या अन्य किसी धार्मिक व्रत में कैसे पूरा दिन बिना तम्बाकू रह जाते है। इससे भी ज्यादा रमजान में चेन स्मोकर (लगातार पीने वाले) सेहरी से इफ्तार तक कैसे रह जाते हैं। यह क्रिया एक-दो दिन नहीं, बल्कि लगातार 29-30 दिनों तक चलती है। यह इच्छाशक्ति दृढ़ होने का परिणाम होता है।

 

तम्बाकू छोडऩा मुश्किल है पर असम्भव नहीं।

 

तम्बाकू-धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए ऐसे हानिकारक हैं- जैसे- कैंसर, टी.बी., जिगर, गुर्दे व दिल की व्याधियों को बढ़ावा देने में धूम्रपान सहयोगी होता है, इसीलिए मेडिकल साइंस भी इस गलत आदतों पर पाबन्दी लगाने व उन्हें छुड़ाने के लिए तत्पर है। इच्छाशक्ति बढ़ाने हेतु मनोवैज्ञानिक ढंग काफी कारगर सिद्ध होता है, क्योंकि यह आदत केवल तलब है, जो दिमाग में पैदा होती है।

 

होम्योपैथी ऐसी आदतों को छुड़ाने में सहयोगी होती है-

 

एक होम्योपैथ कारण जानने के साथ ही आपसी बातचीत (काउन्सिलिंग) भी करता जाता है। जो आदत मिटाने हेतु सोने में सुगंध का काम करती है।

 

जी मिचलाना एवं उल्टियां- इपीकॉक।

तम्बाकू चूसने से आई परेशानियां- आर्सेनिक एल्बम, टैबेकम आदि।

धूम्रपान से दूसरे दिन पेट की खराबी- नक्सवामिका।

दिल की धड़कन बढऩा, लैंगिक कमजोरी (सैक्सुअल वीकनैस) फासफोरस।

तकलीफ देने वालीं हिचकियां, इग्नेशिया।

दांत दर्द- क्लीमेटिस, प्लैंटेगो आदि।

सिरदर्द व चक्कर अधिक धूम्रपान करने पर जैल्सीमियस।

तम्बाकू की आदतें- टैबेकम।

(विनायक फीचर्स)

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