भारत में डेटा सेंटर उद्योग अब एक नए फेज में पहुंच चुकी है। इसी वजह से रियल एस्टेट सेक्टर में भी बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। इस समय हाइपरस्केलर्स, क्लाउड ऑपरेटर और एआई वर्कलोड की डिमांड काफी तेजी से बढ़ रही है। पहले सिर्फ जमीन काफी होती थी, लेकिन अब कंपनियों को ऐसी इंटीग्रेटेड और प्लग एंड प्ले साइट्स चाहिए, जहां पावर, कूलिंग, फाइबर और सस्टेनेबिलिटी इंफ्रास्ट्रक्चर पहले से त्यार हो। डिजिटल सर्विसेज, क्लाउड और एआई ने डेटा सेंटर बनाने का पुराना तरीका बदल दिया है। पहले कंपनियां इंडस्ट्रियल लैंड लेकर खुद इंफ्रास्ट्रक्चर बनाती थीं। लेकिन अब टाइम कम है और ग्लोबल क्लाउड प्लेयर्स तेजी से एक्सपैंड करना चाहते हैं, इसलिए डेवलपर्स अब रेडी तू यूज़ पॉवरेद शेल्स और प्लग-एंड-प्ले कैंपस ऑफर कर रहे हैं। एक डेवलपर ने बताया, “क्लाइंट्स को आज स्पीड , सकलाबिलिटी और पॉवर गारंटी चाहिए। खाली जमीन पर शुरू करना अब पुरानी बात हो चुकी है।” अनंत राज लिमिटेड के एम्दी अमित सारिन के मुताबिक, अब भारत में इंटीग्रेटेड पार्क मॉडल तेजी से बढ़ रहा है, जिससे हाइपरस्केल और क्लाउड ऑपरेटर्स जल्दी अपना इंफ़्रा इनस्टॉल कर पा रहे हैं। डेटा सेंटर डेवलपर्स चार मॉडल से जमीन लेते हैं:
सीधी खरीद
लॉन्ग -टर्म लीज
सरकारी इंडस्ट्रियल प्लॉट्स
जॉइंट डेवलपमेंट
बड़ी हाइपरस्केल कंपनियों को 10–50 एकड़, जबकि कोलोकशन सेंटर्स को 2–5 एकड़ जमीन चाहिए। वहीं एज सेंटर्स 0.5–2 एकड़ में बन जाते हैं। नवी मुंबई, चेन्नई, नोएडा और हैदराबाद इस सेक्टर के हॉटस्पॉट्स बन रहे हैं। पावर अवेलेबिलिटी , फ़ास्ट फाइबर और बेटर रेगुलेशंस की वजह से डिमांड लगातार बढ़ रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की इन्सटाल्ड कैपेसिटी 350 मेगावाट से बढ़कर 1.2 गीगा वाट हो चुकी है, और 2028 तक ये करीब 3 गीगा वाट तक पहुंच सकती है।
