सियासी-तस्वीर अभी पूरी तरह साफ नहीं भाजपा प्रत्याशी की घोषणा ना होने से
लुधियाना, 28 मई। औद्योगिक नगरी लुधियाना में फिलहाल राजनीतिक-तनाव चरम पर है। दरअसल लुधियाना वैस्ट विधानसभा क्षेत्र में होने वाले उप चुनाव को लेकर एक जबर्दस्त सस्पेंस अभी तक बना है। इस उप चुनाव के लिए नामाकंन पत्र दाखिल करने की अंतिम तारीख 2 जून है। जबकि भारतीय जनता पार्टी ने अभी तक इस सीट पर अपने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है। जबकि सबसे पहले चुनाव मैदान में उतरने वाले आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार व राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा प्रचार अभियान में अव्वल साबित हुए। उनके बाद इसी विस क्षेत्र से दो बार विधायक बने पूर्व मंत्री भारत भूषण आशु भी लगातार प्रचार मुहिम में ताकत झोंक रहे हैं। वहीं, तीसरे नंबर पर शिरोमणि अकाली दल-बादल ने सीनियर एडवोकेट परउपकार सिंह घुम्मन को चुनाव मैदान में उतारा था। वह भी अपने प्रचार अभियान में जुटे हैं। कुल मिलाकर सभी प्रमुख उम्मीदवारों, उनके समर्थकों व मतदाताओं में अब यही चर्चा जारी है कि आखिर बीजेपी ने अभी तक अपना प्रत्याशी घोषित क्यों नहीं किया। साथ ही अहम सवाल है कि आखिर क्या भाजपा कोई बड़ा सियासी-धमाका करने वाली है या प्रत्याशी को लेकर धर्म-संकट में फंसी है ?
अरोड़ा की खींची सियासी-लकीर, बाकी के लिए चुनौती !
राजनीतिक माहिरों और मतदाताओं के बीच जारी चर्चाओं के मुताबिक राज्यसभा सांसद बनने के बाद से ही अरोड़ा का फोकस लगातार डेवलपमेंट पर रहा। अब लुधियाना वैस्ट से आप उम्मीदवार बनने के बाद उन्होंने इस विस क्षेत्र में भी विकास कार्यों पर फोकस किया। विरोधियों के आरोपों के नकारात्मक-पलटवार की बजाए उन्होंने सकारात्मक राजनीति की नई परंपरा कायम की। उनके द्वारा खींची यह सियासी-लकीर बाकी विपक्षी राजनेताओं के लिए चुनौती साबित हो रही है और भविष्य में भी राजनीतिक-संकट खड़ा कर सकती है।
आशु के तीखे तेवर, पसंद कर रहे फॉलोवर :
पंजाब में कांग्रेस शासन में दो बार कैबिनेट मंत्री रहे भारत भूषण आशु कौंसलर से मंत्री बनने के सियासी-सफर में हमेशा चर्चित रहे। वह अपने तीखे तेवरों के चलते कई बार विवादों में भी घिरे, हालांकि समर्थकों को उनका यही ‘अंदाज’ पसंद रहा है। कानूनी-संकट में घिरने के दौरान एक-तरह से अकेले नजर आए आशु के तेवर नरम नहीं पड़े। वह अब इस उप चुनाव के सियासी-दंगल भी कांग्रेस की गुटबाजी से बेपरवाह अपने समर्थक नेताओं-इलाका निवासियों के बलबूते ताल ठोक रहे हैं।
एडवोकेट घुम्मन की अलग इमेज ही पहचान :
पंजाब के सीनियर एडवोकेट परउपकार सिंह घुम्मन शिअद उम्मीदवार हैं। पार्टी की सियासी-हालत बेहतर ना होने के बावजूद उनकी छवि निजी तौर पर अलग पहचान वाली है। जनहित के मुद्दों पर हमेशा से ही वह बतौर वकील या राजनेता मजबूत स्टैंड लेते रहे हैं। लिहाजा राजनीतिक-जानकारों का मानना है कि शिअद के परंपरागत वोट-बैंक के अलावा एडवोकेट घुम्मन के प्रशंसकों का एक खास वर्ग भी उनके साथ है।
भाजपा का कांग्रेसीकरण होने से बढ़ा संकट !
राजनीतिक-जानकारों व बीजेपी वर्करों में जारी चर्चाओं पर भरोसा करें तो फिलहाल इस उप चुनाव को लेकर भाजपा पसोपेश में है। पिछले विधानसभा व लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा ने बड़ी तादाद में खासकर कांग्रेस के तमाम छोटे-बड़े नेता अपनी पार्टी में शामिल किए। नतीजतन पंजाब भाजपा में ऊपरी स्तर पर भी कांग्रेस के पूर्व दिग्गज नेताओं का दबदबा है। ऐसे हालात में उनकी रजामंदी के बिना इस उप चुनाव में पार्टी प्रत्याशी उतारना आसान नहीं है, ऐसा सियासी-जानकार मान रहे हैं।
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