भारत के नए लेबर कोड आईटी सेक्टर के बेसिक नियम तो नहीं बदलेंगे, लेकिन एक्सपर्ट्स मानते हैं कि इससे कंपनियों पर पेरोल कॉस्ट बढ़ाने और स्ट्रिक्ट कंप्लायंस फॉलो करने का दबाव बढ़ेगा। आईटी कंपनियां पहले ही डॉक्युमेंटेशन, कॉन्ट्रैक्ट और सैलरी के लिए अच्छे प्रोसेस फॉलो करती हैं, लेकिन अब उन्हें कंपनसेशन स्ट्रक्चर, वेंडर गवर्नेंस और वर्कर वेलफेयर में और बड़े बदलाव लाने पड़ेंगे।
48 घंटे की वर्कवीक और नया सैलरी स्ट्रक्चर
सबसे बड़ा बदलाव है नया सैलरी स्ट्रक्चर। अब बेसिक सैलरी का हिस्सा बढ़ाना होगा, जिससे PF और ग्रेच्युटी जैसी देनदारियां भी बढ़ेंगी। दूसरा बड़ा बदलाव है 48 घंटे की वर्कवीक। लेबर कोड की धारा 13 के हिसाब से हफ्ते में 48 घंटे काम की लिमिट तय की गई है। जहां फ्लेक्सिबिलिटी होगी, वहां एक दिन में 12 घंटे तक काम कराया जा सकता है, लेकिन बाकी दिन पेड हॉलिडे माने जाएंगे।
कंपनियों का ऑपरेशनल खर्च बढ़ेगा
नए कोड के अनुसार 40 साल से ऊपर उम्र वाले कर्मचारियों का सालाना हेल्थ चेक-अप ज़रूरी होगा। PF और ESI का दायरा बढ़ने से भी कंपनी का खर्च बढ़ेगा। एक्सपर्ट्स के मुताबिक ये सारे कदम वर्कफोर्स को ज़्यादा फॉर्मल बनाने और सोशल सिक्योरिटी बढ़ाने के लिए लिए गए हैं।
सुरक्षा और कंप्लायंस होंगे और स्ट्रिक्ट
आईटी सेक्टर नियमों का पहले से पालन करता है, लेकिन अब वर्क-ऑवर मॉनिटरिंग, सेफ्टी स्टैंडर्ड्स, नाइट शिफ्ट में महिलाओं की सुरक्षा और कांट्रैक्टर की जिम्मेदारी पर और सख्त नियम लागू होंगे। नए कोड के हिसाब से महिलाओं को समान सैलरी और नाइट शिफ्ट में सुरक्षित माहौल देना कंपनियों की ज़िम्मेदारी होगी।
इसके अलावा फ्रीलांसर, कंसल्टेंट और कांट्रैक्ट स्टाफ को नई तरीके से कैटेगराइज करना होगा, जिससे परमानेंट और नॉन-परमानेंट कर्मचारियों के खर्च का अंतर कम होगा और वेंडर रेट्स बढ़ सकते हैं।
छोटी आईटी कंपनियों पर ज्यादा असर
बड़ी आईटी कंपनियां ज्यादातर नियम पहले से फॉलो करती हैं, लेकिन छोटे और मिड-साइज कंपनियों पर ये बदलाव ज्यादा असर डालेंगे। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि सबसे बड़ा इंपैक्ट ग्रेच्युटी स्ट्रक्चर में दिखेगा, क्योंकि अब इसे नए तरीके से मैनेज करना होगा।
