लुधियाना, 29 मई। इस बार पंजाब में भारतीय जनता पार्टी लुधियाना वैस्ट विधानसभा क्षेत्र में उप चुनाव को लेकर धर्म-संकट में नजर आ रही है। दो जून को नामाकंन की अंतिम तारीख है और दो प्रमुख दलों समेत कई उम्मीदवार नॉमिनेश भी कर चुके हैं। इसके बावजूद वीरवार रात तक बीजेपी ने इस सीट पर अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की। ऐसे में भाजपा के परंपरागत मतदाता ही नहीं, पार्टी वर्कर भी रोष-हैरानी जता रहे हैं कि आखिर पार्टी नेतृत्व कौन सा अलादीन का चिराग रगड़ रहा है। जिसमें से कोई ऐसा करिश्माई-उम्मीदवार निकलेगा, जो पूरा सियासी-खेल पलट देगा। बीजेपी वर्कर इस बात से भी चिंतित हैं कि चुनाव प्रचार के लिए अब गिने-चुने दिन ही बचे हैं। आखिर पार्टी नेतृत्व उम्मीदवारी का फैसला कब करेगा ?
कांग्रेसी उम्मीदवार और पार्टी के प्रदेश प्रधान की राहें अलग, वर्कर ‘दोराहे’ पर खड़े आ रहे नजर
पंजाब कांग्रेस एक बार फिर गुटबाजी से जूझती नजर आ रही है, भले ही पार्टी हाईकमान एकजुटता दिखाने की हरचंद कोशिश कर रहा है। लुधियाना वैस्ट विस उप चुनाव में इस बार हालात ज्यादा संगीन हो चुके हैं। पार्टी उम्मीदवार भारत भूषण आशु की जनसभाओं व बैठकों में पंजाब कांग्रेस के प्रदेश प्रधान अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग तो दूर जिला प्रधान संजय तलवाड़ भी नजर नहीं आए। हैरानी वाली बात, गत दिवस लुधियाना के सांसद राजा वड़िंग की अगुवाई में चुनावी तैयारी को मीटिंग रखी गई तो उसमें कांग्रेसी उम्मीदवार आशु ही नहीं थे। खैर, वीरवार को जब आशु ने अपना नामाकंन दाखिल किया तो प्रदेश प्रधान राजा वड़िंग उसमें जरुर हाजिर रहे। जिसे पार्टी हाईकमान की ‘प्रेशर-टैक्टिस’ का नतीजा माना गया। ऐसे हालात में सबसे संकट वाली स्थिति में कांग्रेसी वर्कर नजर आ रहे हैं। जो ‘सियासी-दोराहे’ पर खड़े हैरान-परेशान लगते हैं कि वे उम्मीदवार और प्रदेश प्रधान में से आखिर किसके साथ कदमताल करें ?
विपक्ष के ओछे इलजामों से भी ‘बेलगाम’ नहीं हो रहे अरोड़ा
सूबे की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा लुधियाना वैस्ट विस उप चुनाव में ‘हर फिक्र से बेफिक्र’ नजर आ रहे हैं। दरअसल उप चुनाव में आप उम्मीदवार बनने से पहले भी अरोड़ा का एकसूत्रीय एजेंडा विकास ही रहा। इस चुनाव में पार्टी उम्मीदवार बनते ही डेवलपमेंट-ट्रैक पर उनकी रफ्तार और तेज होने से सियासी माहौल पलटने लगा। चर्चाओं के मुताबिक अरोड़ा के बढ़ते सियासी-ग्राफ से बौखलाए विपक्षियों ने उन पर ओछे-स्तर वाले इलजाम तक लगाने शुरु कर दिए। हालांकि इस सबके बावजूद फिलहाल भी अरोड़ा ‘बेलगाम’ नहीं हुए हैं, हालांकि उनको उकसाने वाले विपक्षियों की यही सियासी-मंशा थी कि वह अपने डेवलपमेंट के ट्रैक से भटक जाएं।
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