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सत्ता की चाह में दिल और दल बदलते दलबदलू !

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संदीप शर्मा

लोकसभा चुनावों के दिनों में अपनी निष्ठाओं को बदलने में बहुत से राजनेता पार्टियां बदलते जा रहे हैं। चुनाव हों और अवसरवादी नेता पाला बदली नहीं करें ऐसा हो ही नहीं सकता। चुनाव और वो भी आम चुनाव तो फिर राजनीति में दल बदल दौर कुछ ज्यादा ही चलन में होता है। आखिरी दौर में पाला बदली का खेल जिस रफ्तार से चलता उससे तो कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि जिधर टिकट मिलने का पक्का वादा उधर सारी निष्ठा और प्रतिबद्धता का इरादा। पुरानी कहावत है कि जिधर गुड़ ज्यादा होता है उधर मक्खियाँ ज्यादा जाती हैं ठीक इसी तरह जिधर कुर्सी के आसार अधिक उधर का रुख करने में कैसी झिझक। ऐसा लगता है दल बदलने वाले नेताओं को दिल बदलने में तनिक भी समय भी नहीं लगता क्योंकि कल तक जिस पार्टी और जिस नेता को ये दल बदलू नेता जुबानी जंग में नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं चूकते थे दल बदलते ही उस पार्टी और उस नेता के पक्ष में कसीदे पढ़ने में ऐसे दलबदलू नेता सबसे पहले होते हैं।
इतिहास गवाह है कि भारतीय राजनीति में अनेकों ऐसे उदाहरण हैं कि जब तीन-चार पीढ़ियां एक ही पार्टी को देने वालों के निष्ठावान नेताओं के वंशजों ने अपने राजनीतिक नफा-नुकसान को ध्यान में रखते हुए पाला बदलनें में बिल्कुल भी सोचा है। भावुकतापूर्ण तरीके से अपनी बात को रखते हुए ये दलबदलू नेता कुछ इस तरह का तर्क देते हैं कि मानों उन्होंने जो दल बदल किया है वह समय,काल और परिस्थितिजन्य है और जनता जनार्दन के हित में हैं। जिस पार्टी को अलविदा कह कर ये राजनेता दूसरी पार्टी में आते हैं तो उस पार्टी को लेकर वो इस तरह की बखानमाला पढ़ते हैं मानों कि जनता को लगे कि पाला बदलने वाले नेता ने पाला बदलने का यह फैसला जनहित में लिया है।
हमने अपने देश में बहुत समय तक सहयोगी दलों के समर्थन पर टिकी हुई सरकारों का दौर देखा है। किस पार्टी को समर्थन देना है और किन-किन बातों और किन-किन शर्तों पर समर्थन देना है इन सब मसलों पर बड़े ही महीन लेंस से नजर रखने वाले नेताओं की आज भी भारी तादाद है।
बहुगुणा से लेकर शरद यादव, रामविलास पासवान और अजित सिंह सरीखे ऐसा कितने ही नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है जिन्हें हवा का रुख भांपने और सत्ता में भागीदारी करने का बहुत अच्छा अनुभव रहता था।
आज के दौर में जिस पार्टी में सबसे ज्यादा दूसरी पार्टियों के नेताओं की आगवानी हो रही है वह पार्टी है भारतीय जनता पार्टी। जिन-जिन पार्टियों से नेता या कार्यकर्ता इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम रहे हैं। उन-उन पार्टी के नेता भाजपा के चाल,चलन और चेहरा को लेकर चुनावी चर्चा और सियासी बयानबाजी कर रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि ऐन लोकसभा चुनावों के वक्त पार्टियों को अलविदा कहना कोई नई बात नहीं है।

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