मुद्दे की बात : भारत बनाम पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराने प अमेरिका की भूमिका पर उठे सवाल

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पीएम मोदी को घेर रहा विपक्ष, केंद्र सरकार ‘मौन-स्थिति’ में ट्रंप के बयानों को लेकर

पहलगाम में आतंकी हमले के जवाब में भारत ने पाकिस्तान में एयरस्ट्राइक की तो हालात युद्ध वाले बन गए थे। इस अघोषित-जंग को नाजुक मोड़ पर जाते देख अमेरिका ने दखल देकर एकाएक दोनों मुल्कों के बीच सीजफायर का ऐलान करा दिया। अब देश-दुनिया में यही मुद्दा चर्चा में है कि आखिर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस मसले में ‘पंचायत’ क्यों करने के लिए उतरे और भारत ने संघर्ष-विराम के उनके फैसले को आखिर क्यों मान लिया।

इसे लेकर एक मीडिया रिपोर्ट पर गौर करें। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद 24 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के मधुबनी में कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। तब मोदी ने कहा था जिन्होंने ये हमला किया है, उन आतंकियों को और हमले की साज़िश रचने वालों को उनकी कल्पना से भी बड़ी सज़ा मिलेगी, सज़ा मिलकर रहेगी। इसके बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान और पीओके में बड़ी सैन्य कार्रवाई की थी। तब कांग्रेस समेत लगभग सभी विपक्षी दल केंद्र सरकार और सेना के साथ खड़े थे। भारतीय सेना ने इसे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम दिया था और नौ आतंकी ठिकानों पर हमला की बात कही थी। भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिनों तक चले संघर्ष के बाद शनिवार 10 मई को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने दावा किया कि अमेरिका की मध्यस्थता के बाद भारत और पाकिस्तान संघर्ष विराम के लिए तैयार हो गए। फौरन पाकिस्तान ने भी सीज़फ़ायर की बात कहकर अमेरिका का शुक्रिया अदा किया। भारत ने भी उसी दिन सैन्य कार्रवाई रोकने की बात कही, हालांकि भारत ने यह घोषणा करते हुए अमेरिका का ज़िक्र नहीं किया।

अब तक जो विपक्षी दल सरकार के साथ खड़े थे, वो ट्रंप की घोषणा के बाद सरकार से सवाल करने लगे। कांग्रेस कह रही है कि इस घोषणा का मकसद दोनों देश के मसले का अंतर्राष्ट्रीयकरण करना है। पार्टी ने इस मुद्दे पर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है। ट्रंप ने कश्मीर के मुद्दे को भी सुलझाने की पेशकश की है। इस क़दम का भी पाकिस्तान ने स्वागत किया है, लेकिन भारत ने कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी। सोमवार को ट्रंप ने एक बार फिर से दावा किया कि भारत-पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष रुकवाने में अमेरिका का रोल रहा। हमने दोनों देशों से कहा कि हम आपके साथ बहुत सारा ट्रेड करते हैं, इसलिए इस संघर्ष को बंद करें। अगर आप रुकेंगे तो हम ट्रेड करेंगे, अगर नहीं रुकेंगे तो हम ट्रेड नहीं करेंगे। इसके ही थोड़ी देर बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि पाकिस्तान को सीमा पार आतंकवाद रोकना ही होगा। टेरर और ट्रेड के अलावा टेरर और टॉक एक साथ नहीं चल सकते, पानी और ख़ून एक साथ नहीं बह सकते।

वहीं अमेरिकी-मध्यस्थता पर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखे, इनमें संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग दोहराई। कांग्रेसी नेता सचिन पायलट ने भी प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर ट्रंप की घोषणा आश्चर्यजनक बताई।

यहां गौरतलब है कि जब सीज़फ़ायर की घोषणा सोशल मीडिया के ज़रिए अमेरिकी राष्ट्रपति की तो उस पर भी ध्यान देना चाहिए। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने भी बयान जारी कर सीज़फ़ायर पर विस्तृत जानकारी दी थी। उनके बयान पर कांग्रेसी नेता जयराम रमेश ने आपत्ति जताई।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस के मुताबिक भारत और पाकिस्तान के बीच संवाद के लिए तटस्थ मंच का उल्लेख रुबियो द्वारा करना कई सवाल खड़े करता है। क्या हमने शिमला समझौते को छोड़ दिया ? क्या हमने तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के लिए दरवाजे खोल दिए ?

आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह का कहना है कि ट्रंप की सीज़फ़ायर वाली घोषणा देश के 140 करोड़ लोगों के स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ करने जैसी है। क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत पर अमेरिकी दादागिरी चलेगी ?

सीपीआई के महासचिव डी. राजा ने कहा है कि उनकी पार्टी ने लगातार सीज़फ़ायर की वकालत की है। हमारा मानना ​​है कि भारत और पाकिस्तान में अमेरिकी हस्तक्षेप के बिना द्विपक्षीय मुद्दे  हल करने की परिपक्वता है। यह पीएम मोदी पर निर्भर है कि वे देश और हमारे लोगों को बताएं कि अमेरिका द्वारा की गई ‘मध्यस्थता’ क्या थी ? भारत के सैन्य कार्रवाई रोकने के फ़ैसले के बाद विपक्ष कई मुद्दों पर सरकार पर प्रश्नचिह्न लगा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस पूरी प्रक्रिया में सरकार ने विपक्ष को भरोसे में नहीं लिया ?

वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा के मुताबिक सरकार एक राय बनाकर युद्ध में गई थी, लेकिन एक राय बना युद्ध से नहीं निकली। ये बात सच है कि विपक्ष को सीज़फ़ायर के बारे में पहले से जानकारी नहीं दी गई।अब विपक्ष को जल्द भरोसे में लेकर बताना चाहिए कि संघर्ष विराम क्यों हुआ और इसके चलने की संभावना कितनी है।

उधर, ट्रंप अपने चुनावी अभियान में रूस-यूक्रेन और ग़ज़ा-इसराइल जंग को बंद कराने की बात करते रहे थे। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने इस दिशा में कोशिश ज़रूर की, लेकिन सफल नहीं हुए। जानकारों के मुताबिक अब उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच सीज़फ़ायर का दावा कर दुनिया भर में एक संदेश देने की कोशिश की है। अमेरिका ने तो भारत के प्रधानमंत्री मोदी का नाम लिया, लेकिन भारत ने अब तक अमेरिका का ज़िक्र नहीं किया। भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने भी दोनों देशों के बीच सीजफायर पर बनी सहमति की ही जानकारी दी। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी अमेरिका का नाम लिए बग़ैर संघर्ष विराम की जानकारी दी। माहिरों के मुताबिक भारत हमेशा द्विपक्षीय वार्ता का पक्षधर रहा, इसलिए वह अमेरिका का नाम नहीं ले रहा। भारत अभी यह नहीं दिखाना चाहता है कि किसी तीसरे देश के कारण युद्धविराम हुआ है। ऐसे में कांग्रेस ने  लिखा कि तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने निक्सन से कहा था कि हमारी रीढ़ की हड्डी मजबूत है, सभी अत्याचारों से लड़ने के लिए हमारे पास पर्याप्त इच्छाशक्ति और संसाधन हैं। बीजेपी नेता अमित मालवीय ने कांग्रेस सांसद शशि थरूर के इस मुद्दे पर दिए बयान पर तीखी प्रतिक्रिया भी जताई, लेकिन बाकी पार्टी नेता बयानबाजी से बचते नजर आ रहे हैं।

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