चीन ने पाकिस्तान में कर रखा है भारी निवेश, भारत से भी संबंधों में बना रखा संतुलन
पाकिस्तान और पीओके में भारत के हमले के बाद दोनों देशों के बीच हालात बहुत ही तनावपूर्ण हैं। इस घटनाक्रम पर दुनिया के कई देशों की प्रतिक्रिया आईं, इनमें चीन भी शामिल है। चीनी विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में भारत के हवाई हमले को ‘अफ़सोसजनक’ बताया है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि वे मौजूदा हालात को लेकर ‘चिंतित’ हैं।
इसे लेकर देश-दुनिया के मीडिया समेत बीबीसी ने भी खास रिपोर्ट पेश की। जिसके मुताबिक चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा, भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे के पड़ोसी हैं और हमेशा रहेंगे। वे दोनों चीन के पड़ोसी भी हैं, चीन सभी तरह के आतंकवाद का विरोध करता है। मंत्रालय के प्रवक्ता ने दोनों देशों से शांत रहकर संयम बरतने और ऐसी कार्रवाइयों से बचने की अपील की है, जो स्थिति को और जटिल बना सकती हैं। विशेषज्ञों को लगता है कि चीन कभी भी यह नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान अस्थिर हो, जिससे उसके करोड़ों का निवेश बेकार हो जाए।
गौरतलब है कि पाकिस्तान में चीन ने 2005 से 2024 के बीच करीब 68 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया। इसके अलावा चीन, पाकिस्तान में चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर और बेल्ट एंड रोड के तहत एक बड़ा निवेश कर रहा है।
ऐसे में चीन नहीं चाहेगा कि मध्य एशिया को सड़क से जोड़ने का उसका सपना अधूरा रह जाए। चीनी मामलों के जानकार प्रोफ़ेसर डॉ. तिलक झा भी इस बात से पूरी तरह से सहमत हैं। उनके मुताबिक इस क्षेत्र में अगर तनाव बढ़ा तो इसका सीधा असर चीन के निवेश पर पड़ेगा। चीन कभी नहीं चाहेगा कि ऐसा कुछ हो, जिससे उसके हित प्रभावित हों। चीन और पाकिस्तान के बीच राजनयिक संबंध तो 1951 में शुरू हो गए थे। दोनों के बीच कई दशकों से रक्षा सहयोग और राजनयिक संबंध हैं। आर्थिक दृष्टि से भी पाकिस्तान की चीन पर निर्भरता बढ़ी है। चीन ने पाकिस्तान को हथियारों की सप्लाई तो की लेकिन भारत के ख़िलाफ़ किसी युद्ध में सीधे साथ देने नहीं आया। पश्चिमी देशों से जब भारत की नज़दीकी बढ़ी तो पाकिस्तान का झुकाव चीन की ओर हुआ।
क़र्ज़ से लेकर एफ़एटीएफ़ की सख़्त कार्रवाइयों से बचने के मौक़ों पर चीन ने पाकिस्तान की मदद की। हालांकि भारत के साथ संबंधों में भी चीन ने संतुलन क़ायम रखा। जेएनयू में चाइना स्टडीज़ के प्रोफेसर आर.वरा. प्रसाद कहते हैं, चीन, भारत-पाक के बीच कभी भी युद्ध की स्थिति नहीं चाहेगा। वह कहते हैं कि इस समय चीन का टैरिफ़ को लेकर अमेरिका से एक अलग स्तर पर तनाव चल रहा है। चीन यह ज़रूर चाहेगा कि अभी भारत के साथ उसके संबंध बेहतर रहें। चीन यूं भी अपने हितों की तरफ़ ज़्यादा झुकाव रखता है और किसी विवाद में नहीं उलझना चाहता। इस समय चीन, पाकिस्तान और भारत से सटे शिनजियांग प्रांत में विकास चाहता है। भारत पहले ही इसका विरोध कर रहा है। ऐसे में वह कतई नहीं चाहेगा कि विरोध का स्तर और बढ़े। चीन इस समय पाकिस्तान का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और आयात का सबसे बड़ा स्रोत है। दोनों के बीच 2024 में द्विपक्षीय व्यापार 23.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया।
जब आप किसी देश के साथ इतने बड़े स्तर पर व्यापार करते हैं तो स्वाभाविक है कि आप चाहते हैं कि वहां के हालात बेहतर रहें. जिससे आर्थिक हित साधे जा सकें। पाकिस्तान में तो पहले ही से ही चीन के नागरिकों की सुरक्षा का संकट है। अगर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है तो उसकी तमाम परियोजनाएं ही ख़तरे में आ जाएंगी। अब चीन और पाकिस्तान ना केवल संयुक्त सैनिक अभ्यास करते हैं, बल्कि पाकिस्तान बड़े पैमाने पर चीन से आधुनिक हथियार ख़रीदता है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच वर्षों के दौरान पाकिस्तान में हथियारों के आयात का 81 फ़ीसदी हिस्सा चीन से हुआ।
पिछले पांच वर्षों में पाकिस्तान के पास आए पांच में से चार हथियार चीनी हैं। चीन ने पाकिस्तान को पीएल-15 मिसाइलें दी हैं। पीएल-15 और एसडी-10 जैसी मिसाइलें चीन की आधुनिक बीवीआर तकनीक से बनी हैं। ये मिसाइलें जहाज़ों को लंबी दूरी से हवा में नष्ट करने की क्षमता रखती हैं।
पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान की पूर्व राजनयिक तसनीम असलम ने चीन के रवैया को लेकर कहा था कि चीन को पाकिस्तान के ज़रिए खाड़ी के देशों तक पहुंच मिलती है.
चीन इस क्षेत्र का बड़ा देश है, जिसके दोनों प्रतिद्वंद्वी देशों के साथ व्यापारिक संबंध हैं। यह चीन के हित में है कि क्षेत्र में शांति व्यवस्था क़ायम रहे, चीन को अपने आर्थिक हितों की सुरक्षा चाहिए।
दोनों देशों में शांति ही चीन के विकास में मदद करेगी अन्यथा परियोजनाएं पूर्ण होने के बाद भी अगर सुरक्षा का संकट और अस्थिरता के हालात बने रहे तो फिर उस परियोजना का व्यापारिक लाभ चीन कैसे उठा पाएगा ? इस समय ग्वादर पोर्ट बनकर तैयार है, लेकिन चीन इसका लाभ तभी उठा पाएगा जब शांति होगी। चीन हमेशा ही दोनों पक्षों से संयम बरतने को कहता है। यहां भी चीन यही कर रहा है, उसकी मजबूरी यह भी है कि वह अमेरिका के साथ व्यापारिक युद्ध में फंसा हुआ है, इसलिए वह भारत के साथ नया मोर्चा नहीं खोलना चाहता।
वहीं, भारत चीन का एक बड़ा व्यापारिक भागीदार है, इसलिए वह भारत के साथ मज़बूत संबंध रखना चाहता है। आतंकवाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई में भारत भी दुनिया से इसराइल जैसा समर्थन चाहता है। हालांकि चीन, भारत के कूटनीतिक प्रभाव को कम कर देता है, क्योंकि कूटनीतिक मोर्चे पर वह पाकिस्तान का साथ देता है। ये सभी देश प्रतिद्वंदी होने के साथ ही पड़ोसी भी हैं। ऐसे में अगर क्षेत्र में कोई अस्थिरता होती है तो नुक़सान सभी को ही होगा।
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