हमारे परम पूज्य पोप फ्रांसिस के स्वर्गवास से एक ऐसे युग का अंत हो गया है, जो विनम्रता, दया और सुसमाचार के प्रति अटूट समर्पण से परिपूर्ण था। हमारी कैथोलिक-ईसाई समुदाय की ओर से इस महान आत्मा के निधन पर गहरा शोक है, जिन्होंने पूरे विश्व में असंख्य लोगों के जीवन को छुआ।
अपने पोंटिफिकेट की शुरुआत से ही पोप फ्रांसिस ने ना केवल अपने सरल जीवनशैली से, बल्कि अपनी गहरी करुणा से भी सभी को प्रभावित किया। उन्होंने हमेशा चर्च से आग्रह किया कि वह समाज के हाशिये पर खड़े लोगों तक पहुंचे, गरीबों, पीड़ितों और उपेक्षितों को अपनाए। सामाजिक न्याय, पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी और धार्मिक संवाद पर उनके संदेश मसीह के जीवन और शिक्षाओं पर आधारित थे।
पोप ने हमें सिखाया कि चर्च कोई किला नहीं है, बल्कि एक मैदानी अस्पताल है. जहां घावों को सहलाया जाता है, बोझ हल्के किए जाते हैं और आशा को पुनर्जीवित किया जाता है। उन्होंने ईश्वर की दया के बारे में कोमलता से बात की और यह याद दिलाया कि कोई भी मोक्ष से परे नहीं है। विभाजन और अनिश्चितता के इस समय में, उनकी आवाज़ एकता, शांति और साहस की थी।
उनकी विनम्रता, चाहे वह विलासिता से इंकार हो या संवाद के लिए खुलापन, उनने ना केवल कैथोलिकों को, बल्कि सभी धर्मों और पृष्ठभूमियों के लोगों को प्रेरित किया। उन्होंने हमेशा अनुग्रह के साथ नेतृत्व किया और स्वयं से आगे मसीह के प्रेम की ओर इंगित किया। जब हम उनके निधन पर शोक मनाते हैं, हम उनके सेवा से परिपूर्ण अद्भुत जीवन का उत्सव भी मनाते हैं। पोप फ्रांसिस ने कभी प्रशंसा के लिए नहीं, बल्कि परमेश्वर के राज्य के लिए जीवन जिया। उनकी आत्मा को अनंत शांति मिले और उनका आदर्श हमें सत्य, प्रेम और न्याय के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता रहे।
—-(आलेख : अल्बर्ट दुआ, अध्यक्ष, क्रिश्चियन यूनाइटेड फेडरेशन और वेरेन दुआ, उपाध्यक्ष यूओएन कैथोलिक सोसाइटी)