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इस ‘ लिंचिंग ‘ पर भी बोलना पड़ेगा आपको

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अक्सर मेरे तमाम मित्र मुझसे हिंसा और बलात्कार की हर वारदात पर लिखने की अपेक्षा रखते है। अधिकांश अंधभक्तों की अपेक्षा होती है कि कोई लेखक हो,विपक्ष का नेता हो वो सबसे पहले हिन्दुओं पर बोले,बंगाल पर बोले लेकिन उत्तरप्रदेश या डबल इंजिन की सरकार वाले किसी सूबे के बारे में न बोले। लेकिन हमारी कोशिश होती है कि जहां बोलना जरूरी है ,कम से कम वहां जरूर बोला जाये। मिसाल के तौर पर आज हमें हरियाणा में हुई लिंचिंग की ताजा वारदात पर बोलना पड़ रहा है ,क्योंकि हम जानते हैं कि इस वारदात को लेकर कोई सत्तारूढ़ दल शायद ही बोले।

हरियाणाके चरखी दादरी में गोरक्षक समूह की दरिंदगी सामने आई है। यहां एक शख्‍स की गोमांस खाने के शक में पीट-पीटकर हत्‍या कर दी गई। इस तरह की वारदात को अंग्रेजी वाले लिंचिंग कहते हैं। इस घटना के कुछ वीडियो सामने आए हैं, जिसमें गोरक्षक दल के युवक दो लोगों के साथ बेरहमी से मारपीट करते नजर आ रहे हैं। इस दौरान कुछ लोग हस्‍तक्षेप भी करते हैं, लेकिन गोरक्षक किसी की नहीं सुनते।

यह लोमहर्षक वारदात 27 अगस्‍त की है, जिसमें एक शख्‍स की मौत हो गई तो दूसरा गंभीर रूप से घायल है.। पुलिस पूरे एक महीना इस वारदात पर पर्दा डाले रही। हालाँकि पुलिस ने बाद में इस मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया है. साथ ही दो किशोरों को भी पकड़ा गया है.

पुलिस के मुताबिक, चरखी दादरी जिले के बाढड़ा में कुछ युवकों ने गोमांस बनाकर खाने और बेचने के आरोप में कबाड़ बेचने वाले एक प्रवासी मजदूर की डंडों से पीट-पीटकर हत्‍या कर दी। युवक की पहचान 26 साल के साबिर मलिक के रूप में की गई है। साबिर बाढड़ा में झुग्गी झोपड़ी बनाकर रह रहा था। परिजनों का आरोप है कि कबाड़ बेचने का बहाना बनाकर उन्‍हें बुलाया गया और फिर इस वारदात को अंजाम दिया गया। हरियाणा के संवेदनशील मुख्यमंत्री मुख्‍यमंत्री नायब सैनी ने चरखी दादरी की घटना की निंदा की है। उन्‍होंने कहा कि इस प्रकार की बातें ठीक नहीं है। गौ माता की सुरक्षा के लिए हमने कानून बनाया है। लेकिन उन्होंने बड़ी ही मासूमियत से ये भी कह दिया कि गांव के लोगों को जब पता लगता है कि ऐसा हो रहा है तो उन्हें कौन रोक सकता है ? यानि ऐसी वारदातों को सरकार का परोक्ष रूप से संरक्षण है !

धुले में रहने वाले 72 वर्षीय बुजुर्ग अशरफ अली सय्यद हुसैन खुश नसीब थे जो उनकी जान बच गयी। वे अपनी बेटी से मिलने के लिए जलगांव से कल्याण जाने के लिए धुले सीएसएमटी एक्सप्रेस में सवार थे। उन्हें भी लोगों ने बीफ ले जाने के संदेह में धुन दिया। गनीमत है कि उनकी जान बच गयी। इस मामले में ठाणे जीआरपी में एफआईआर दर्ज करने के लिए रेलवे के पुलिस कमिश्नर ने आदेश दिए थे, जिसके बाद आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। पुलिस की मानें तो धुले एक्सप्रेस ट्रेन में पहले सीट को लेकर लड़ाई हुई और फिर उन पर बीफ लेकर यात्रा करने का आरोप लगाकर पिटाई की गई। इस मामले में पुलिस ने दो आरोपियों की पहचान कर ली है, जो धुले के रहने वाले हैं. पुलिस की टीम उनकी तलाश करने धुले भेजी गई है।

एक ही मिजाज की ये दो वारदातें इस बात को प्रमाणित करतीं है कि समाज में सियासत ने नफरत के जो बीज दस साल पहले बोये थे वे अब फलने-फूलने लगे हैं। अल्पसंख्यकों को बहुसंख्य समाज अपना दुश्मन नंबर एक समझने लगा है। अल्पसंख्यक क्या खाएं, क्या पहने, कहाँ जाएँ या न जाएँ ये सब सियासत तय करना चाहती है। असम में विधानसभा में सौ साल से विधानसभा में नमाज के लिए दिया जाने वाला ब्रेक भी असम की सरकार ने बंद कर दिया। ये सरकार की और से की गयी भावनात्मक लिंचिंग नहीं तो और क्या है ? लेकिन इन तमाम मुद्दों पर वो भाजपा मौन है जो कोलकाता में एक महिला चिकित्सक की हत्या और बलात्कार के मामले को लेकर सिर पर आसमान उठाये हुए है। यानि भाजपा के लिए लिंचिंग कोई मुद्दा नहीं है। अल्पसंख्यकों कोई सुरक्षा कोई मुद्दा नहीं है। मणिपुर की हिंसा कोई मुद्दा नहीं है ,लेकिन यदि मुद्दा है तो कोलकाता में महलाओं की सुरक्षा।

देश में महिला सुरक्षा को लेकर जो रुख बंगाल को लेकर है वो उत्तरप्रदेश,हरियाणा,महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में होने वाली वारदातों को लेकर क्यों नहीं है ? प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि , ‘न्याय में देरी को खत्म करने के लिए बीते एक दशक में कई स्तर पर काम हुए हैं। पिछले 10 वर्षों में देश ने न्यायिक बुनियादी ढांचा के विकास के लिए लगभग 8 हजार करोड़ रुपए खर्च किए हैं। मोदी जी का दावा है कि पिछले 25 साल में जितनी राशि न्यायिक बुनियादी ढांचा पर खर्च की गई, उसका 75 प्रतिशत पिछले 10 वर्षों में ही हुआ है। वे हरियाणा की लिंचिंग पर कुछ न बोलते हुए कहते हैं कि महिलाओं के खिलाफ अत्याचार, बच्चों की सुरक्षा, समाज की गंभीर चिंता है। देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई कठोर कानून बने हैं, लेकिन हमें इसे और सक्रिय करने की जरूरत है। महिला अत्याचार से जुड़े मामलों में जितनी तेजी से फैसले आएंगे, आधी आबादी को सुरक्षा का उतना ही बड़ा भरोसा मिलेगा।

प्रधानमंत्री जी कभी झूठ नहीं बोलते । वे जो कह रहे हैं वो सोलह आना सच होगा ही, उनकी पार्टी की सरकारों ने तो बुलडोजर संहिता लागू कर अदालतों का काम भी सरकारों को करने की छूट दे दी है। भाजपा शासित राज्यों में तो अदालतों कि फैसले आने से पहले ही सरकार आरोपियों कि घर-मकान,दुकाने, जमींदोज कर देतीं हैं ,लेकिन महिलाओं,बच्चों और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हैं की रुकने का नाम ही नहीं ले रहे। यानि बुलडोजर संहिता भी नाकाम हो गयी। आने वाले दिनों में क्या होगा ,ये कहना कठिन है। अभी तो जान के लाले पड़े हुए हैं।

@ राकेश अचल

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