मुद्दे की बात : नेपाल में राजशाही के समर्थक हैं योगी !

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शुरु से नेपाल को हिंदू राष्ट्र मान संघ ने किया राजतंत्र का समर्थन

नेपाल से लेकर भारत समेत कई देशों में एक बड़ी अहम चर्चा हो रही है। दरअसल नेपाल में इन दिनों राजतंत्र के समर्थन में लोग सड़कों पर उतर रहे हैं। राजतंत्र के समर्थन करने वाले लोग नेपाल में राजशाही और हिन्दू राष्ट्र की बहाली की मांग कर रहे हैं। वहीं दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के लोकतांत्रिक-तरीके से चुने गए सीएम योगी आदित्यनाथ नेपाल में राज-तंत्र के समर्थक के तौर पर चर्चा में हैं।

गत दिनों पोखरा से काठमांडू के त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर ज्ञानेंद्र शाह पहुंचे तो हज़ारों की संख्या में लोग उनकी अगवानी में खड़े थे। नेपाल के पत्रकारों का कहना है कि एयरपोर्ट के मुख्य गेट पर ज्ञानेंद्र के कम से कम 10 हज़ार समर्थक रहे होंगे। भीड़ नारा लगा रही थी, नारायणहिटी ख़ाली करो, हमारे राजा आ रहे हैं। दरअसल नारायणहिटी नेपाल का रॉयल पैलेस है, जहां राजा रहते थे। ज्ञानेंद्र बीर बिक्रम शाह नेपाल में लोकतंत्र आने के बाद से इस तरह सार्वजनिक रूप से ना के बराबर दिखते थे। हालांकि पिछले कुछ महीनों से काफ़ी सक्रिय दिख रहे हैं, चर्चा है कि नेपाल में लोग सरकार से काफ़ी निराश हैं और इसी से राजतंत्र के समर्थकों को मौक़ा मिला है। नेपाल में कुछ भी होता है तो भारत पर सबकी नज़र रहती है। काठमांडू में ज्ञानेंद्र के स्वागत में आई भीड़ में से एक शख़्स ज्ञानेंद्र के साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीर लेकर खड़ा था। योगी की तस्वीर दिखने के बाद से नेपाल में बहस शुरू हो गई है कि क्या इस आंदोलन का भारत से भी संबंध है ? नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) की केंद्रीय समिति के सदस्य विष्णु रिजाल ने ज्ञानेंद्र और योगी की उस तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा है कि यह 1950 का दौर नहीं है, जब भारतीय दूतावास में शरण लेने दिल्ली पहुंचे त्रिभुवन शाह को भारत ने फिर से राजगद्दी पर बैठा दिया था। बेहतर होगा कि जन-आंदोलन के बाद राजशाही से बेदख़ल हुए ज्ञानेंद्र फिर से राजगद्दी के लिए लार ना टपकाएं।

रिजाल ने तंज किया जिस योगी की तस्वीर को लेकर प्रदर्शन किया गया, उस सीएम ने ही ज्ञानेंद्र को कुंभ में हिस्सा लेने के लिए तक नहीं बुलाया। ऐसा तब है, जब ज्ञानेंद्र ख़ुद को हिन्दू हृदय सम्राट कहते हैं। योगी की तस्वीर का हवाला देकर विष्णु रिजाल कह रहे हैं कि ज्ञानेंद्र राजा बनने के लिए ‘विदेशियों की दलाली कर रहे हैं। रविंद्र मिश्र राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के सीनियर उपाध्यक्ष हैं, जिसको ज्ञानेंद्र का समर्थन हासिल है। मिश्र राजशाही वापस लाने के आंदोलन में शामिल हैं। उनसे पूछा गया कि ज्ञानेंद्र के साथ योगी की तस्वीर कैसे आ गई और इसके क्या मायने हैं ? इस पर मिश्र कहते हैं कि देखिए लाखों की भीड़ में कौन किसकी तस्वीर लेकर आया, इसे हम सुनिश्चित नहीं कर सकते हैं। सिर्फ़ एक व्यक्ति योगी आदित्यनाथ का पोस्टर लेकर खड़ा था।

मुझे लगता है कि राजा का एजेंडा इतना लोकप्रिय हो रहा है कि इसे नुक़सान पहुंचाने के लिए सरकार अलग-अलग हथकंडे अपना रही है। सरकार से लोगों का मोहभंग हो रहा है और लोग राजतंत्र के समर्थन में आ रहे हैं। ख़ास करके नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियों का सबसे बड़ा पाखंड यही है कि ये सरकार में होती हैं तो भारत के साथ होती हैं। सत्ता से बाहर रहने पर भारत को गालियां देती हैं। नेपाल में 2008 में 239 साल पुरानी राजशाही व्यवस्था ख़त्म कर लोकतंत्र आया था। जो अभी 17 साल का हुआ है और 11 सरकारें बदल चुकी हैं। नेपाल के लोकतंत्र को लेकर कई लोग टिप्पणी करते हैं कि यहां के नेता सत्ता के लिए जोड़-तोड़ करने में बहुत जल्दी माहिर हो गए।

भारत में नेपाल के राजदूत रहे दीप कुमार उपाध्याय कहते हैं कि असल मुद्दा यह है कि लोकतंत्र नेपाल में लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहा है। अगर नेपाल की राजनीतिक पार्टियां सचेत नहीं हुईं तो राजतंत्र को लेकर लोगों का आकर्षण और बढ़ेगा। हालांकि अभी तो स्थिति नियंत्रण में है, लेकिन हालात बेकाबू हो सकते हैं। नेपाल की राजनीति भारत से प्रभावित होती रही है। नेपाल में कई लोग कहते मिल जाते हैं कि यहां की राजनीति काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास से चलती है। नेपाल की राजशाही व्यवस्था से भारत की दक्षिणपंथी राजनीति का अच्छा संबंध रहा है। साल 1964 में नेपाल के राजा महेंद्र को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने नागपुर में मकर संक्रांति की रैली को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया था।

इस आमंत्रण को किंग महेंद्र ने स्वीकार किया था। तब उनके रुख़ से भारत की तत्कालीन कांग्रेस सरकार काफ़ी असहज थी। आरएसएस नेपाल को राम राज्य की मिसाल के तौर पर देखता था जो मुस्लिम शासकों के हमले से ‘अशुद्ध’ नहीं हुआ था। आरएसएस के सपने में नेपाल अखंड भारत का हिस्सा रहा है। प्रशांत झा नेपाल से हैं, जो हिन्दुस्तान टाइम्स के अमेरिका में संवाददाता हैं। उन्होंने अपनी किताब ‘बैटल्स ऑफ़ द न्यू रिपब्लिक में लिखा कि राजा वीरेंद्र पंचायती व्यवस्था के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन का सामना कर रहे थे. तभी विश्व हिन्दू परिषद ने काठमांडू में राजा वीरेंद्र के समर्थन में लामबंदी की थी और उन्हें विश्व हिन्दू सम्राट घोषित किया था। शाही क़त्लेआम के बाद राजा ज्ञानेंद्र को भी वीएचपी ने यही उपाधि दी थी। नेपाल के शाह वंश का गोरखपुर के गोरखनाथ मठ से ऐतिहासिक संबंध रहा है। गोरखनाथ मंदिर की नेपाल में कई संपत्तियां हैं। योगी आदित्यनाथ नेपाल के सेक्युलर राष्ट्र बनने के फ़ैसले से ख़ुश नहीं थे। 2006 में योगी आदित्यनाथ का कहना था कि केवल नेहरू भारत को समझते थे। नेहरू को पता था कि नेपाल में राजशाही ज़रूरी है, इसीलिए राणाशाही के बाद किंग को सत्ता में बैठाया था.

नेपाल में भारत के राजदूत रहे रंजीत राय ने अपनी किताब ‘काठमांडू डीलेमा रीसेटिंग इंडिया-नेपाल टाइज़’ में लिखा कि पंचायती व्यवस्था में तुलसी गिरी नेपाल के पहले प्रधानमंत्री थे और वह आरएसएस के मेंबर थे। उनके समय में भारत के हिन्दूवादी संगठनों और नेपाल के रॉयल पैलेस के बीच गहरे संबंध बने थे।

नेपाल में राजतंत्र के समर्थन में आंदोलन को भारत किस रूप में लेगा ? इस पर डेनमार्क में नेपाल के राजदूत रहे विजयकांत कर्ण के मुताबिक मुझे नहीं लगता है कि भारत नेपाल में राजतंत्र से जुड़े किसी आंदोलन का समर्थन करेगा। ज्ञानेंद्र कई बार दिल्ली जा चुके हैं, लेकिन उनसे कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुलाक़ात नहीं की। ज्ञानेंद्र ने पीएम मोदी से मिलने की कई बार कोशिश की, हांलाकि उनकी मुलाक़ात उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से ज़रूर होती है।

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