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एशिया की सबसे बड़ी री-रोलिंग स्टील इंडस्ट्री मंडी गोबिंदगढ़-खन्ना में कामबंद हड़ताल शुरु

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पीपीसीबी की तकनीकी गलती और गैस कंपनी की मनमानी से सैकड़ों रोलिंग मालिक खफा, हजारों वर्कर होंगे प्रभावित

लुधियाना 11 दिसम्बर। एशिया की सबसे बड़ी री-रोलिंग स्टील इंडस्ट्री पंजाब की ‘लोहा-मंडी’ यानि मंडी गोबिंदगढ़ और खन्ना में है। पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड यानि पीपीसीबी की तकनीकी गलती के चलते अब यह इंडस्ट्री विरोध स्वरुप 11 से 15 दिसंबर तक काम बंद हड़ताल का ऐलान कर चुकी है।

यह हैं विरोध की वजह :

पंजाब स्मॉल स्केल स्टील री-रोलर एसोसिएशन के प्रेसिडेंट राजीव सूद हैप्पी के मुताबिक मंडी गोबिंदगढ़-खन्ना में  लगभग 200 रोलिंग मिले हैं। जिनमें से 80 फीसदी रोलिंग मिले कोयला भटि्टयों की बजाए पीएनजी से लोहा गलाने के सिस्टम में तब्दील हो चुकी हैं। इसके बावजूद यहां वायु प्रदूषण नहीं घटने से पीपीसीबी सवालिया घेरे में है। जिसने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में रोलिंग मिलों का पक्ष रखने की बजाए उनके खिलाफ रिपोर्ट पेश की थी। जिसमें इस इंडस्ट्रियल एरिया में प्रदूषण बढ़ने के लिए केवल रोलिंग मिलों को जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने बताया कि ऑल इंडिया स्टील री-रोलर एसोसिएशन के प्रेसिडेंट विनोद वशिष्ठ की कॉल पर यहां कामबंद हड़ताल का फैसला किया गया है। साथ ही रोष जताया कि जब सारी दुनिया रि-साइक्लिंग पर फोकस कर रही है, ऐसे में यहां री-रोलर मिलों को बंद कराने पर उतारु पीपीसीबी की धक्केशाही व पीएनजी (गैस कंपनी) की मनमानी समझ से परे है।

ऐसे शुरु हुआ था विवाद :  

रोलिंग मिल मालिकों के मुताबिक साल 2019 में नीरज गोयल नामक व्यक्ति ने एनजीटी में मंडी गोबिंदगढ़ में मोटर स्क्रैप गोदामों के विरुद्ध याचिका दायर की थी। इसमें ट्रिब्यूनल ने पीपीसीबी से मोटर जलाने वाला गोदामों पर कार्रवाई संबंधी जवाब मांगा था। तब बोर्ड ने बिना जांच किए जवाब दायर कर दिया था कि रोलिंग मिलों का ईंधन कोयले से पीएनजी में तब्दील करा देंगे। अब रोलिंग मिलें संकट में हैं और अब उन पर सिर्फ पीएनजी को ही बतौर इंधन उपयोग करने का दबाव है। जबकि आईआईटी. दिल्ली की रिपोर्ट के मुताबिक शहर में 67% प्रदूषण सड़क की धूल और वाहनों का है।

नहीं घटा प्रदूषण, पीएनजी के रेट जरुर बढ़े :

रोलिंग मिल मालिकों के अनुसार 2022 में ज्यादातर मिलों ने पीएनजी का उपयोग शुरू कर दिया था, लेकिन शहर का एक्यूआई उतना ही रहा, जितना उससे पिछले वर्षों में रहा और अगले वर्षों में भी रहा। दूसरी तरफ मौके का फायदा उठा मोनोपॉली के चलते पीएनजी कम्पनी ने गैस के दाम 22-23 रुपए से 56 रुपए प्रति किग्रा कर दिए। इससे काफी मिलें बंद हो गई और हजारों लोगों का रोजगार छिन गया। तब कई रोलिंग मिलों को वापस कोयले पर आना पड़ा।

बोर्ड जिम्मेदारी से भी भाग रहा :

अब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड चाहता है कि रोलिंग मिलों में सिर्फ एक ही ईंधन पीएनजी का उपयोग हो। जबकि पीएनजीआरबी.  कानून, 2006 की धारा 11 (ए) के तहत बोर्ड की जिम्मेदारी है कि वह पीएनजी कंपनियों के बीच निष्पक्ष व्यापार और प्रतिस्पर्धा कॉम्पिटिशन को बढ़ावा देकर उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करे। इसके उलट पीपीसीबी ने एनजीटी में गलत बयान दिया और सिर्फ एक ही पीएनजी कम्पनी को रोलिंग मिलों पर थोप रहा है।

मिलें यह चाहती हैं :

रोलिंग मिलों ने पीपीसीबी से मांग की है कि वह मिलों को परेशान कर उसका सख्त विरोध करने पर मजबूर ना करे। साथ ही एनजीटी में नया बयान देकर अपनी गलती सुधार ले। इसका प्रावधान भी कानून में है, क्योंकि मिलों में सरकार द्वारा बताए प्रदूषण रोधी उपकरण लगे हैं। जो तय मानक से कम ही प्रदूषण पैदा करती हैं।

दो साल पहले भी हड़ताल की थी :

गैस कम्पनी द्वारा पीएनजी गैस की कीमतों में की वृद्धि के खिलाफ करीब दो साल पहले भी रोलिंग मिलों ने दिन की टोकन हड़ताल की थी। तब खन्ना और मंडी गोबिंदगढ़ की 150 के करीब गैस आधारित रोलिंग मिलें बंद रही थीं। हड़ताल के चलते पहले दिन 12000 टन प्रोडक्शन का लॉस हुआ था। जबकि इस इंडस्ट्री से जुड़े 15 हजार लोग प्रभावित हुए थे। इन रोलिंग मिलों से लगभग 500 ट्रक रोजाना सभी राज्यों में लोहे के भर कर जाते हैं, जो खाली खड़ी रहेंगे। मिलों में काम करने वाले लगभग 20 हजार वर्कर खाली बैठ जाएंगे। जबकि लोहे का ढुलाई करने वाले 20 हजार दिहाड़ी मजदूर बेकार बैठेंगे।

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