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टूटेगी परंपरा या भाजपा रचेगी इतिहास , हरियाणा में हार से बनेगा नकारात्मक नेरेटिव

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हरियाना/यूटर्न/20 सितंबर: हरियाणा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की कोशिश है कि परंपरा न टूटे, इतिहास कायम हो। परंपरा केंद्र व राज्य में एक ही दल अथवा गठबंधन की सरकार बनने की। इतिहास लगातार तीसरी बार राज्य की सत्ता पर काबिज होने का। यदि कामयाब होती है तो भाजपा के लिए हरियाणा अन्य राज्यों के चुनावी रण का प्रस्थान बिंदु सिद्ध होगा। लोकसभा चुनाव के बाद सबसे पहले हरियाणा में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में वह विफल हुई तो यह नेरेटिव बनेगा कि देश में पार्टी का ग्राफ गिरने लगा है। इसलिए भाजपा के लिए हरियाणा एक कुरुक्षेत्र है जो उसे करो या मरो का संदेश दे रहा है। इस रण में चुनौती दुश्मनों से ही नहीं, अपनों से भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुरुक्षेत्र में अपनी पहली चुनावी जनसभा में यह जिक्र किया कि हरियाणा के लोग तो 50 साल से उसी की सरकार बनाते आ रहे हैं, जिसकी केंद्र में होती है। इस बार भी ऐसा करिश्मा हो जाए, इसके लिए पार्टी पूरी ताकत लगा रही है, लेकिन एंटी इंकम्बेंसी और किसान, पहलवान व जवान का जो मुद्दा चल गया है, वह उसे खुलकर खेलने से रोक रहा है। वह रक्षात्मक है। साढ़े नौ साल के शासन के बाद मनोहर लाल को चुनाव से केवल छह माह पहले सीएम पद से हटाने के बाद उन्हें अब पीएम मोदी व गृह मंत्री अमित शाह की रैलियों से दूर रखा गया। प्रचार पोस्टरो-बैनरों से वह नदारद हैं। भाषणों में उनका नाम तक नहीं लिया जा रहा। शीर्ष नेतृत्व को शायद यह लगता है कि भाजपा से ज्यादा विरोध मनोहर लाल का है। लोकसभा चुनाव में पहले ही दस में से पांच सीटें भाजपा गंवा चुकी है। ऐसा नहीं है कि एक दशक में कुछ ऐसे कार्य नहीं हुए जिनका उल्लेख प्रचार के दौरान न किया जा सके। नौकरियों में भ्रष्टाचार खत्म करने और चार के बजाय 24 फसलों पर एमएसपी लागू करने की बात भाजपा कह रही है लेकिन उसका प्रभाव कितना है, कहा नहीं जा सकता। केवल 56 दिन काम करने का मौका मिलने की दुहाई देने वाले मुखयमंत्री नायब सिंह सैनी ने प्रापर्टी आईडी व परिवार पहचान पत्र को लेकर लोगों का गुस्सा कम करने के लिए शिविर भी लगाए थे, फिर भी लोगों की शिकायतें इतनी हैं कि भाजपा इन्हें भुना नहीं पा रही है। किसानों व पहलवानों के आंदोलन का असर इस बार भाजपा को परेशान कर रहा है। गृह मंत्री अमित शाह ने हरियाणा के किसानों व खिलाडिय़ों की प्रशंसा करते हुए उन्हे धाकड़ बताया और दोनों वर्गों के लिए सरकार के फैसलों को भी सामने रखा। अग्निवीर के मुद्दे ने लोकसभा चुनाव में नुकसान पहुंचाया था, इसलिए भाजपा ने अब अपने संकल्पपत्र में वादा किया है कि हर अग्निवीर को सरकारी नौकरी दी जाएगी। भाजपा को बाहर से ही नहीं, भीतर से भी हमले झेलने पड़ रहे हैं। टिकटों को लेकर पार्टी में नाराजगी बढ़ी है। किसी दबाव में न आते हुए 15 विधायकों-मंत्रियों के टिकट काटने, मुखयमंत्री नायब सैनी समेत सात के विधानसभा क्षेत्र बदलने और 40 नए चेहरे उतारने का नतीजा हुआ कि अब 23 बागी भी मैदान में उतरे हैं। कई जगह वह पार्टी प्रत्याशियों का सिरदर्द बढ़ाएंगे।
बहुकोणीय मुकाबला करवाने की जुगत
अभी तक भाजपा व कांग्रेस में सीधी टक्कर है। क्षेत्रीय दल जजपा, इनेलो अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। आप की स्थिति मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की नहीं है। बसपा चंद सीटों तक सिमटी है। भाजपा किसी से गठबंधन में नहीं है, लेकिन सिरसा में उसने अपने प्रत्याशी को हरियाणा लोकहित पार्टी (हलोपा) के उंमीदवार गोपाल कांडा के समर्थन में बैठा दिया है। माना जा रहा है कि भाजपा चाहेगी कि उसकी कमजोर मानी जाने वाली सीटों पर बहुकोणीय मुकाबला हो, ताकि उसके खिलाफ, जो वोट कांग्रेस को जाना है, वह बंट जाए।
चुनाव बाद गठबंधन के संकेत
हलोपा के गोपाल कांडा ने एक चैनल से बातचीत में कहा कि उनकी पार्टी, इनेलो व बसपा के समर्थन से तीसरी बार भाजपा सरकार बनेगी। इसकी काफी चर्चा है कि त्रिशंकु विस की स्थिति में भाजपा इन दलों संग सरकार बनाने की कोशिश में रहेगी।
अब तक तीन बार ही सत्ता में आई है भाजपा
हरियाणा में हुए 13 विधानसभा चुनावों में केवल तीन ही बार भाजपा सत्ता में आई है। 2014 में मोदी लहर में 47 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। 2019 में 40 सीटें लेने के बाद जननायक जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाई। उससे पूर्व 1996 में हरियाणा विकास पार्टी ने भाजपा के साथ गठबंधन की सरकार बनाई थी। 1977 में जनता पार्टी की सरकार में भाजपा का पूर्ववर्ती संगठन जनसंघ भी शामिल था।
ओबीसी वोटबैंक पर जोर
हरियाणा में जाट (22 प्रतिशत), दलित (21 प्रतिशत), ओबीसी (30 प्रतिशत) वोटबैंक को निर्णायक माना जाता है। जाट वोट परंपरागत रूप से भाजपा के खिलाफ माने जाते रहे हैं और इस बार किसान व पहलवान आंदोलनों के असर से भाजपा को और नुकसान हो सकता है। इसलिए भाजपा का जोर ओबीसी मतदाताओं पर है। नायब सिंह सैनी खुद ओबीसी हैं। कांग्रेस ने हुड्डा व सैलजा दोनों की सीएम पद के लिए दावेदारी खुली रखी है, इसलिए हुड्डा के प्रभाव से जाट मतदाता और सैलजा की वजह से दलित वोट बैंक में ज्यादा हिस्सा झटकने की कोशिश उसकी है।
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