दोनों ही मुल्कों को कारोबारी और कूटनीतिक नजरिए से एक दूसरे की जरुरत
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर 30 दिसंबर को क़तर की आधिकारिक यात्रा के लिए रवाना हुए। वह एक जनवरी तक वहां रहेंगे। भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक उनकी क़तर के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री शेख़ मोहम्मद बिन अब्दुल रहमान अल थानी से मुलाकात तय है।
मंत्रालय की ओर से जारी बयान के मुताबिक यात्रा का मकसद द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना है। साल 2024 में यह चौथी बार है, जब जयशंकर क़तर गए हैं। इससे पहले वे फरवरी, जून और दिसंबर में वहां गए थे। इसके अलावा क़तर को अपना ‘दूसरा घर‘ बताने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस देश की तीन बार यात्रा कर चुके हैं। सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2015 , 2016 और 2024 में क़तर की यात्रा की। उनकी क़तर के अमीर तमीम बिन हमद अल थानी से मुलाक़ात हुई। इसके अलावा सितंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा और दिसंबर 2023 में दुबई में हुए जलवायु सम्मेलन में भी दोनों नेताओं की मुलाक़ात हुई थी।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि क़तर को केंद्र की सत्तारूढ़ बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतनी तवज्जो क्यों दे रहे हैं ? क़तर भारत के लिए कितना अहम है ? अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद यूरोप से लेकर मध्य पूर्व तक अनिश्चितता के दौर से गुजर रहे हैं। ट्रंप किस मामले में कब और क्या रुख़ अख्तियार कर लें, कहा नहीं जा सकता।
इस मामले में बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक इंडियन काउंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफेयर्स से जुड़े सीनियर फ़ेलो डॉ. फ़ज़्जुर्रहमान का मानना है कि ट्रंप, ईरान पर नए प्रतिबंध लगा सकते हैं। ट्रंप के आने के बाद अस्थिरता का माहौल है, ऐसे में भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को लेकर चिंतित है। इस स्थिति में भारत, क़तर को एक सुरक्षित और मजबूत देश के तौर पर देख उससे द्विपक्षीय संबंध मजबूत कर रहा है।
भारत के वैश्विक लिक्विफाइड प्राकृतिक गैस का करीब 50 प्रतिशत और एलपीजी का करीब 30 प्रतिशत हिस्सा अकेले क़तर से आयात होता है। इसी फरवरी में दोनों देशों ने अगले 20 सालों के लिए एक अहम समझौता किया था। समझौते के तहत भारत, क़तर से 2048 तक लिक्विफाइड नेचुरल गैस खरीदेगा।
क़तर की यूएई, सऊदी अरब, ईरान, तुर्की, अमेरिका और इसराइल से लेकर हमास तक के साथ अच्छे रिश्ते हैं। ऐसे में बिना किसी रुकावट के भारत क़तर के साथ आमने-सामने डील कर सकता है। अगर भारत रूस के साथ कोई डील करता है तो उसे अमेरिका और यूक्रेन का ध्यान रखना होगा, लेकिन क़तर के संबंध में ऐसा नहीं है। वह बिना ईरान और सऊदी अरब की फिक्र किए अपने हितों को ध्यान में रखकर क़तर के साथ आगे बढ़ सकता है।
दरअसल क़तर एक सॉफ्ट पावर है, मध्यस्त के तौर पर उसका नाम चर्चा में रहता है। जब हमास और इसराइल की बात आई तो क़तर की मदद ली गई, क्योंकि उसकी सुनी जाती है और इसका फायदा भारत भी अंतर्राष्ट्रीय मामलों में उठा सकता है। भारत और क़तर के बीच साल 2023-24 में 14.04 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के मुताबिक इस दौरान भारत ने 1.70 अरब डॉलर मूल्य का सामान क़तर को निर्यात किया। वहीं भारत का इस दौरान 12.34 अरब डॉलर मूल्य का आयात रहा।
क़तर भारत को एलएनजी, एलपीजी, एथिलीन, प्रोपलीन, अमोनिया, यूरिया, केमिकल्स, प्लास्टिक और अल्यूमिनियम जैसी चीजें बेचता है। वहीं भारत से वह अनाज, तांबा, लोहा, स्टील, फल आदि खरीदता है।
क़तर जैसे खाड़ी देश हजारों करोड़ रुपये टूरिज्म, स्पोर्ट्स और एजुकेशन सेक्टर में खर्च कर रहे हैं और इस स्थिति में भारत उनके लिए एक बहुत बड़ा बाजार है। इसलिए सिर्फ क़तर भारत की जरूरत नहीं है, बल्कि क़तर को भी भारत चाहिए। क़तर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के मुताबिक, वहां 15 हजार से अधिक बड़ी और छोटी भारतीय कंपनियां काम कर रही हैं। इनमें लार्सन एंड टुब्रो, वोल्टास, शापूरजी पालोनजी, विप्रो, टीसीएस और महिंद्रा जैसे बड़ी कंपनियों के नाम भी हैं। क़तर फाइनेंशियल सेंटर के मुताबिक भारतीय कंपनियों ने क़तर में 450 मिलियन अमेरिका डॉलर निवेश किए हुए हैं. भारतीय रुपयों में यह रकम करीब 3900 करोड़ रुपये है. वहीं क़तर इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी ने बड़े पैमाने पर भारतीय कंपनियों में हजारों करोड़ रुपये का निवेश किया हुआ है।
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