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मुद्दे की बात : आखिर द‍िल्‍ली में क्यों खत्म नहीं हो रहा ‘वनवास’ भाजपा का ?

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केजरीवाल की एंट्री के बाद बिगड़े भारतीय जनता पार्टी के सियासी-समीकरण

इन ढाई दशक में देश में काफी कुछ बदल गया। केंद्र में लगातार तीसरी बार पीएम नरेंद्र मोदी सरकार बनाने में कामयाब रहे। कभी देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस अब क्षेत्रीय दलों के सहारे है। एक नई पार्टी का उदय हुआ और देखते ही देखते दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो गई। वो भी धमाकेदार अंदाज में। इन 27 सालों में अगर कुछ नहीं बदला तो वो है दिल्ली, जहां बीजेपी की फिर ‘ताजपोशी’ नहीं हो पा रही है।

इसे लेकर तमाम मीडिया रिपोर्ट्स के साथ ही नवभारत टाइम्स की ग्राउंड रिपोर्ट के मुताबिक अब हालात बदले हुए हैं। दरअसल बीजेपी दिल्ली में लोकसभा चुनावों में जीत की हैट्रिक लगा चुकी है। गौरतलब है कि साल 2014, 2019 और अब 2024 में दिल्ली वालों ने सातों सीटें भारतीय जनता पार्टी की झोली में डाल दी थीं। फिर आखिर क्यों दिल्ली में विधानसभा चुनाव की बात आती है तो दिल्लीवालों का दिल छोटा हो जाता है ? यहां बताते चलें कि जब 41 साल बाद जब 1993 में दिल्ली की जनता को अपना मुख्यमंत्री चुनने का अधिकार मिला तो उन्होंने बीजेपी पर ही भरोसा जताया। मगर उसके बाद से बीजेपी का ‘वनवास’ खत्म ही नहीं हुआ है। लंबे इंतजार के बाद 1993 में जब दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए तो जनता ने बीजेपी को दिल खोलकर वोट दिए। तबब 70 में से 49 सीटें जीतकर बीजेपी ने शान से सरकार बनाई। मदन लाल खुराना दिल्ली की पहली विधानसभा में मुख्यमंत्री बने।

हालांकि 1996 में केंद्र में बीजेपी की सरकार पर जैन हवाला कांड के आरोप लगे। इसके छींटे खुराना तक भी आए। संकट बढ़ता देखकर खुराना ने इस्तीफा दे दिया और साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया। मगर साहिब सिंह वर्मा के कार्यकाल वाली सरकार महंगाई को रोकने में नाकामयाब रही। जनता में असंतोष साफ दिखने लगा था। बीजेपी ने 1998 में एक बार फिर से सीएम बदलने का फैसला लिया और इस बार दिल्ली को सुषमा स्वराज के रूप में पहली महिला मुख्यमंत्री मिलीं। मगर तब तक अगले चुनाव का समय नजदीक आ चुका था।

साल 1998 में बीजेपी जो एक बार सत्ता से बाहर हुई तो अब तक वापसी नहीं कर पाई है। कांग्रेस ने शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया और पार्टी ने 52 सीटें जीतीं। सुषमा स्वराज के नेतृत्व में बीजेपी 49 सीटों से 15 सीटों पर आ गई। साल 2003 और 2008 में जनता ने कांग्रेस पर ही भरोसा जताया। इसके बाद दिल्ली के सियासी रण में एक नए चेहरे की एंट्री हो गई, वो नाम था अरविंद केजरीवाल।

कॉमनवेल्थ घोटाले समेत भ्रष्टाचार के कई आरोप केंद्र में कांग्रेस सरकार पर लगने लगे। इसकी आंच शीला दीक्षित सरकार तक भी पहुंच गई। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में 15 साल से राज कर रहीं शीला दीक्षित अपनी सीट भी नहीं बचा सकीं। केजरीवाल के नेतृत्व में एक नई पार्टी ने 28 सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया। बीजेपी ने 31 सीटें जीती और बहुमत से महज 5 सीट दूर रह गई। फिर दिल्ली की राजनीति में कुछ ऐसा हुआ, जिसकी कल्पना नहीं की गई थी। कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को सरकार बनाने के लिए समर्थन दे दिया। हालांकि यह अनूठा गठबंधन दो साल ही चला, लेकिन बीजेपी के हाथों से एक बार कुर्सी फिसल गई। साल 2015 और 2020 में पूरे देश में मोदी लहर होने के बावजूद आम आदमी पार्टी यहां एकतरफा

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