बहुत दिनों बाद एक ढंग का विषय मिला है । इसके लिए धन्यवाद उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का। 52 साल के योगी जी ने विमर्श के लिए ये विषय हालांकि हवा में उछाला है ,लेकिन ये जरूरी विषय है कि -आखिर सत्ता का गुलाम है कौन ? योगी ने आदित्यनाथ ने चंदौली में एक कार्यक्रम में कहा कि कोई योगी या संत सत्ता का गुलाम नहीं हो सकता है. उन्होंने कहा, संत समाज को एकजुट करते हैं। पूरे समाज को एकसाथ जोड़कर संत चलता है।
योगी ने यह बातें अघोराचार्य बाबा कीनाराम की जन्मस्थली पर आयोजित 425 अवतरण समारोह को संबोधित करते हुए कही। योगी से बहुत साल पहले संत कुम्भनदास ने यही बात कही थी। उन्होंने कहा था –
‘ संतन को कहा सीकरी सों काम?
आवत जात पनहियाँ टूटी, बिसरि गयो हरि नाम।।
जिनको मुख देखे दुख उपजत, तिनको करिबे परी सलाम।।
कुभंनदास लाल गिरिधर बिनु, और सबै बेकाम।।
कुम्भनदास किसान थे,संत थे और उस समय के संत थे , जब संत होना कठिन काम था। लेकिन कुम्भनदास के पांच सौ साल बाद संत होना कठिन काम नहीं रह गया। अब संत सींकरी आने-जाने के अभ्यस्त हो चुके हैं। जो सींकरी नहीं जाते उन्हें जेल जाना पड़ता है ,जो सींकरी जाते हैं उन्हें फलरो के तहत जब चाहे तब जमानत मिल जाती है भले ही वे हत्या और बलात्कार के आरोप में सजा काट रहे हों। लेकिन असल सवाल ये है कि क्या आज के संत और योगी सत्ता के गुलाम हैं या नहीं ?
योगी जी यानि बाबा आदित्यनाथ 26 साल से राजनीति में हैं और सत्ता में रहते हुए भी उन्हें 9 साल हो चुके हैं और वे कहते हैं ,गर्व से कहते हैं कि- योगी और संत सत्ता का गुलाम नहीं हो सकता। क्या आप योगी आदित्यनाथ के इस दावे पर यकीन कर सकते हैं ? योगी जी को जिन परिस्थितियों में सत्ता के मयूरपंखी सिंहासन पर बैठाया गया था ,वो आपको याद होगा और जिस तरह से उनके सिंघासन को पिछले पांच साल से अस्थिर करने की कोशिश की जा रही है वो भी आप सबसे छिपा नहीं है। यदि योगी जी सत्ता के गुलाम नहीं है तो बादशाह की जीप के पीछे-पीछे उपने [नंगे पांव ] क्यों दौड़ लगा रहे हैं ? क्या वे सत्ता को ठोकर मारकर गोरखपुर वापस नहीं लौट सकते ?
संतो-महंतों और योगियों को सत्ता में लाने का,सत्ता का गुलाम बनाने का एकमेव श्रेय यदि किसी राजनीतक दल को है तो वो है भारतीय जनता पार्टी। भारतीय जनता पार्टी ने देश में राम राज की स्थापना करने के मकसद से संतों-महंतों को सत्ता का गुलाम बनाने की कोशिश की । कांग्रेस के जमाने में भी संत-महंत सत्ता के साथ चस्पा रहते थे, किन्तु उनकी सत्ता में सीधी भागीदारी नहीं थी। भाजपा ने साध्वी उमा भारती को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया ,केंद्र में मंत्री बनाया। अनेक साध्वियों को विधानसभाओं और लोकसभाओं में भेजा । मंत्रिमंडलों में शामिल किया। इनकी फेहरिस्त बहुत लम्बी है। लेकिन एक योगी आदित्यनाथ को छोड़ सभी को भाजपा ने दूध में पड़ी मख्खी की तरह निकाल भी दिया। अब कोई गौसेवा कर रहा है तो कोई अदालतों के चक्कर काट रहा है।
योगी आदित्यनाथ के इस कथन से कि संत-महंत सत्ता के गुलाम नहीं होते, मै पूरा इत्तफाक रखता हूँ ,लेकिन उनकी ये बात मोदी युग में सही साबित नहीं होती । वो दौर दूसरा ही था ,जब संत-महंत और योगी सत्ता को लतियाते हुए आगे बढ़ जाते थे। अब तो साधू-संत,महंत और योगी सत्ता के न सिर्फ गुलाम हैं बल्कि सत्ता के चरण-चुंबन में सबसे आगे हैं। जिन्हें सत्ता चाहिए वे दल नहीं देखते,केवल सत्ता देखते है। उत्तर प्रदेश में एक संत हैं प्रमोद कृष्ण। कांग्रसी संत थे ,लेकिन अब भाजपाई संत हैं। हमारे चार शंकराचार्य इसके अपवाद हैं ,लेकिन वे सत्ता के गुलाम न होते हुए भी सत्तानुरागी तो हैं ही। सबकी अपनी-अपनी पसंद है । किसी को कांग्रेस की सत्ता अच्छी लगती है, तो किसी को भाजपा की सत्ता। सत्ता विमुख होकर कोई धर्माचरण नहीं करना चाहता। मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री कि शपथ ग्रहण समरोह बिना संतों-महंतों कि पूरे ही नहीं होते ।
मेरी दृढ मान्यता है कि देश के साधु,संत,महंत और योगी जिस दिन सत्ता की गुलामी करना छोड़ देंगे उस दिन से सत्ता जनता को धर्म की अफीम चटाना बंद कर देगी ,लेकिन दुर्भाग्य ये हो नहीं रहा । हो नहीं सकता। सत्ता होने नहीं दे रही संतों को गुलामी से मुक्त। इसका आगाज , योगी आदित्यनाथ से ही हो सकता है , किन्तु वे भी अब सत्ता से ऐसे चिपके हैं जैसे कोई फेविकोल का जोड़ हो। आदित्यनाथ रो सकते हैं ,अपमानित हो सकते हैं लेकिन सत्ता का त्याग नहीं कर सकते। क्योंकि उन्होंने 9 साल में देख लिया हैकि जगत मिथ्या है और सत्ता ही परम सत्य है। सत्ता का त्याग करना आसान काम नहीं है। सत्ता से या तो राजनीतिक दलों का हाईकमान लतियाता है या फिर जनता। उत्तर प्रदेश में जनता पिछले आम चुनाव में अपने रुख का संकेत दे चुकी है । खुद योगीजी के उत्तर प्रदेश में भाजपा औंधे मुंह गिरी है। लेकिन योगी जी जहाँ थे,वहीं हैं।
योगी जी के दावे को सुनकर हंसी आती है कि संत,मेहनत या योगी सत्ता के गुलाम नहीं होते। योगी जी कहते हैं कि-‘ सिद्धांत विहीन राजनीति मौत का फंदा है। योगी कहते हैं कि जब किसी को सिद्धि या कुछ भी प्राप्त होता है, तो वह उसके मद में किसी को कुछ नहीं समझता है। लेकिन योगी सभी को एकजुट कर आगे बढ़ता है। बात सही भी है । योगी जी उत्तरप्रदेश में पार्टी हाईकमान कि कहने पर केर-बेर कि संग मिलकर सरकार चला रहे हैं। योगी जी जैसी दक्षता उमा भारती में नहीं थी। 65 साल की उमा भारती पांच बार सांसद रहने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर मात्र 9 माह रह पायीं थी । उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपनी पार्टी कि हाईकमान को लतियाया था ,लेकिन योगी आदित्यनाथ आज तक उमा भारती जैसा साहस नहीं जुटा पाए,फलस्वरूप उनकी कुगति हो रही है। वे पूरे संत-महंत और योगी समाज का अपमान करा रहे हैं। वे अपने पूर्वज कुम्भनदास का अपमान करा रहे हैं। योगी जी से सींकरी छूटती ही नहीं।
बहरहाल ये कलिकाल है। कलिकाल में भी,मोदीकाल है। इस काल में संत,महंत ,योगी सबके सब सत्ता कि गुलाम हैं ,जो नहीं हैं वे भी होना चाहते हैं। जो नहीं हो पा रहे हैं वे सत्ता को ,मोदी को कोसते रहते हैं। जो नहीं कोस रहे वे उममीद पाले हुए हैं कि आज नहीं तो कल उन्हें भी सत्ता का सुख मिल सकता है। उम्मीद बड़ी चीज होती है। भक्ति से भी बड़ी। जो सत्ता का गुलाम नहीं है, वो योगी नहीं है । वो संत नहीं है,वो महंत नहीं है। सत्ता सभी को अपना गुलाम बनाना चाहती है। संत,महंत,योगी, भोगी, मीडिया,कार्यपालिका,न्यायपालिका सब सत्ता कि निशाने पर हमेशा से रहे हैं और आज भी है। बल्कि आज पहले से ज्यादा हैं । आप इस बारे में जो सोचते हों वो प्रकट भी करें ,तभी ये विमर्श पूरा हो सकता है।
@ राकेश अचल
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