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मुद्दे की बात : किस करवट बैठेगा चुनावी-ऊंट ?

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जाट-लैंड का ट्रैंड : वोटिंग घटी तो किसी को बहुमत नहीं

बेशक हरियाणा के साथ जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा चुनाव हुए, लेकिन देश की राजनीति में हरियाणा का ज्यादा असर माना है। लिहाजा ऐसे में एक्सपर्ट मतदान निपटने के बाद गुणा-भाग करने में जुटे हैं, ताकि पता चल सके कि हरियाणा में चुनावी-ऊंट आखिर किस करवट बैठेगा यानि नतीजे किसके हक में या खिलाफ आने के आसार है।

गौरतलब है कि इस बार हरियाणा में 2019 के मुकाबले 2.24 फीसदी कम वोटिंग दर्ज हुई। बीती रात चुनाव आयोग के वोटर टर्नआउट एप पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक इस बार प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों पर कुल 66.96% मतदान हुआ। जबकि 2019 में 69.20% लोगों ने वोट डाले थे। हालांकि पोलिंग के फाइनल आंकड़े थोड़े-बहुत अलग हो सकते हैं। इसे लेकर मीडिया रिपोर्ट्स पिछले आंकड़ों को खंगालते अलग तस्वीर पेश कर रही है। दैनिक भास्कर के मुताबिक दस साल से सरकार में भाजपा के प्रति लोगों, खासकर जाटों-दलितों की नाराजगी के बावजूद वोटिंग प्रतिशत नहीं बढ़ने के कई मायने हैं।

गौरतलब है कि साल 2000 से 2024 तक हरियाणा में हुए 5 विधानसभा चुनाव के पोलिंग % से जुड़े आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो एक ट्रेंड दिखा। इन 24 बरसों में दो मर्तबा ऐसा हुआ,  जब वोटिंग में 1% से कम बढ़ोतरी या फिर गिरावट दर्ज की गई। दोनों ही बार राज्य में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनी। उसका फायदा सत्ता में रही पार्टी को मिला। इस बार राज्य का ग्रामीण वोटर खुलकर बीजेपी के खिलाफ बोला। जाटों में तो बीजेपी के प्रति गुस्सा साफ दिखा, लेकिन लगा कि विपक्ष में बैठी कांग्रेस के रणनीतिकार कहीं ना कहीं इस गुस्से का फायदा नहीं उठा सके। एक दशक से सत्ता में बैठी भाजपा के प्रति एंटी-इनकम्बेंसी दिखी, लेकिन वोटिंग % कम रहने से लगा कि बीजेपी के रणनीतिकारों ने मतदान होने तक काफी मैनेज कर लिया।

सूबे में बीते 24 बरस का रिकॉर्ड देखें तो 2000 में 69% वोटिंग हुई और इनेलो को 47 सीटें यानि पूर्ण बहुमत मिला। 2005 के विधानसभा चुनाव में 71.9% वोटिंग हुई, जो 2000 से 2.9% ज्यादा थी। रिजल्ट आए तो कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की। 90 सीटों में से उसने 67 सीटें जीतीं, यानि बहुमत के लिए जरूरी 46 सीटों से 21 सीटें ज्यादा मिलीं। 2009 के विस चुनाव में 72.37% वोटिंग हुई, जो 2004 से सिर्फ 0.4% ज्यादा थी। मतगणना हुई तो कोई पार्टी बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंची। कांग्रेस 40 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी जरूर बनी, लेकिन वह बहुमत से पीछे रही। तब तत्कालीन सीएम भूपेंद्र हुड्‌डा ने सरकार बनाने को कुलदीप बिश्नोई की हजकां के 6 विधायक तोड़ा। हालांकि तब 7 निर्दलीय विधायकों भी हुड्‌डा के समर्थन में थे। 2014 में वोटिंग 4% बढ़ी तो भाजपा सत्ता में आई। इसके 5 साल बाद 2014 में 76.54% वोटिंग हुई, यह 2009 से 4.17% ज्यादा थी। जब नतीजे आए तो बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला। मोदी-लहर में बीजेपी ने 47 सीटें जीती और मनोहर लाल खट्‌टर ने सरकार बनाई। साल 2019 में वोटिंग 8.34% गिरी तो बीजेपी बहुमत से चूकी। तब कुल 68.20% वोटिंग हुई, जो 2014 के मुकाबले 8.34% कम थी। पार्टी महज 40 सीटें जीत पाई। उसने दुष्यंत चौटाला की जजपा के गठबंधन से सरकार बनाई। अब 2024 में 66.96% मतदान हुआ, यह 2019 से 1.24% कम है। नतीजे 8 अक्टूबर को आने हैं, अब देखना होगा कि इस बार भी वोटिंग % गिरने पर किसी को बहुमत ना मिलने का ट्रेंड कायम रहता है या इस बार कोई नया इतिहास बनेगा।

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