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मुद्दे की बात : मानसून में बढ़ते कुदरती कहर से आखिर कब डरेंगे हम ?

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कुदरत से खिलवाड़ बनाम बढ़ता मानसूनी कहर

सर्दी, गर्मी और बरसात, यह तो कुदरती-चक्र है। सदियों से यह चक्र घूम रहा है। हालांकि पिछली सदी से तो मानसूनी-बारिश साल-दर-साल कहर बनती जा रही है। आखिर ऐसा क्यों ? इसका वाजिब जवाब पर्यावरणविद बार-बार चेतावनी के साथ देते रहे हैं। उनके मुताबिक दरअसल हम जैसा कुदरत को देते हैं, वैसा ही वो हमें लौटाती है। मतलब साफ है कि कुदरत से खिलवाड़ इंसानी फितरत बन चुका है और फिर जवाब में कुदरत हर बार पहले से ज्यादा कहर बरपाते हुए तबाही मचा देती है।

बुनियादी ढांचे की मजबूती में दुबई की मिसाल दी जाती है। वहां बीते दिनों बेमौसमी-बरसात ने जमकर तबाही मचाई थी। अब हमारे देश की राजधानी दिल्ली में मानसूनी कहर बरपा है। दिल्ली-एनसीआर में वीरवार-शुक्रवार को भारी बारिश की वजह से सड़कों पर बाढ़ जैसे हालात बने। छोटे-बड़े तमाम वाहन डूब गए। सड़कों पर नाव चलीं और कई इलाकों में ट्रैफिक प्रभावित हुआ। यशोभूमि द्वारका सैक्टर 25 मेट्रो स्टेशन के एंट्री और एग्जिट गेट बंद करने पड़े। हद ये कि एयरपोर्ट की छत ही गिर गई।

आईएमडी के मुताबिक दरअसल दिल्ली में वीरवार सुबह से लेकर शुक्रवार सुबह तक यानि 24 घंटे में 228 एमएम बारिश हो गई। यहां 88 साल बाद जून महीने में एक दिन में सबसे ज्यादा बारिश हुई। इसके पहले जून, 1936 में 24 घंटे में 235.5 मिमी बारिश दर्ज की गई थी। जाहिर है 88 साल पहले की तबाही आजाद मुल्क की सरकारें भूल गईं, जबकि कुदरत से खिलवाड़ का खेल तेज होता गया। अब कहर बरपा तो सोचने की नौबत आ गई है कि यह कहर आगे और बढ़ेगा, जिससे निपटने को एहतियाती इंतजाम पहले से ही करने होंगे।

उधर, कुदरत के साथ सबसे खतरनाक खिलवाड़ तो पहाड़ी सूबों में जारी है। उत्तराखंड उसका अंजाम भुगता चुका है। इस बार देवभूमि हिमाचल प्रदेश में ही देव-प्रकोप हो गया।  पिछले साल वहां 24 फीसदी बारिश ज्यादा होने से 500 लोग मरे थे और 15 हजार बेघर हो गए थे। करीब 12 हजार करोड़ की संपत्ति बर्बाद हो गई थी। इस बार भी वीरवार की रात मानसूनी-कहर से शिमला और आसपास के इलाकों में तबाही मची। लैंड-स्लाइडिंग से वाहन क्षतिग्रस्त हुए, मलबे से रास्ते ठप हो गए। कुल मिलाकर पहाड़ी-सूबे तो खतरे के मुहाने पर बैठे हैं, मगर वहां धड़ल्ले से पहाड़ों का सीना चीरकर विकास के नाम पर तबाही का सामान तैयार किया जा रहा है। अगर हम देशवासी अब भी नहीं जगे तो कोई शक नहीं महाप्रलय आने पर ही हमारी केंद्र और राज्यों की सरकारें जगेंगी।

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