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आखिर कब रुकेगा खूबसूरत मणिपुर में भड़कती हिंसा का दौर

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मनोज कुमार

मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है। पूर्वोत्तर में स्थित इस प्राकृतिक सौंदर्य सम्पन्न राज्य में लूट, हत्या और अशांति की स्थिति बनी हुई है। मणिपुर में एक बार फिर हालात बिगड़ गए हैं। हिंसा कई जिलों में देखने को मिली है, सबसे ज्यादा तनाव की स्थिति इम्फाल में चल रही है। स्थिति की गंभीरता को समझते हुए पूर्वी और पश्चिमी इम्फाल के कई इलाकों में तत्काल प्रभाव से कर्फ्यू लगा दिया गया है।

मणिपुर में 1 सितंबर से अब तक 11 लोगों की मौत हो चुकी है, कई जगहों पर आगजनी हुई है,पहली बार आतंकी शरारती तत्वों ने हमले के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर सबको चौंका दिया है। पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा है। आंसू गैस के गोले तक दागे गए हैं। उस स्थिति की वजह से ही छात्रों ने भी सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन किया है, कई इलाकों में बड़ी संख्या में हुजूम सड़कों पर दिखा है। उस भीड़ का पुलिस से भी आमना-सामना हुआ जिसमें कई लोग घायल हुए। आंदोलनकारियों ने राज्यपाल के घर तक को घेरने की कोशिश की, रात के समय टॉर्च मार्च निकाल कर भी विरोध प्रदर्शन हुआ।

मणिपुर में 3 मई 2023 से हिंसा का दौर शुरू हुआ था। लेकिन 16 महीने बाद भी राज्य में शांति बहाल नहीं हुई है। ताजा मामला जिरीबाम जिले का है, जहां शनिवार को हुई ताजा हिंसा में 5 लोगों की मौत हो गई।मणिपुर में हालात की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वहां हिंसा में शामिल दोनों समुदायों के पास अब ऐसे हथियार हैं जिनका इस्तेमाल आमतौर पर युद्ध में किया जाता है।सेना इस कदर मजबूर है कि उन्हें एंटी ड्रोन सिस्टम तैनात करने पड़े हैं। पहाड़ों और घाटियों में लोगों ने बंकर बना रखे हैं। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर 16 महीने बाद भी इस राज्य में हिंसा क्यों नहीं थम रही।

पिछले साल 3 मई को मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में आयोजित ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के बाद भड़की जातीय हिंसा के बाद से मणिपुर में अब तक 200 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नागा और कुकी शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं। इस हिंसा के चलते हजारों की संख्या में लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं।

वैसे तो मणिपुर में पिछले साल मई से ही हालात तनावपूर्ण हैं लेकिन पिछले कुछ महीनों से स्थिति थोड़ी नियंत्रण में थी। अब पुनः हवाई बमबारी, आरपीजी और अत्याधुनिक हथियारों के लिए ड्रोन के इस्तेमाल के बाद हालात और खराब हो गए हैं। ताजा हमले के बाद तलाशी में पुलिस को 7.62 मिमी स्नाइपर राइफल, पिस्तौल, इम्प्रोवाइज्ड लॉन्ग रेंज मोर्टार (पोम्पी), इम्प्रोवाइज्ड शॉर्ट रेंज मोर्टार, ग्रेनेड, हैंड ग्रेनेड समेत तमाम आधुनिक हथियार मिले।

वही, मणिपुर अखंडता पर समन्वय समिति ने एक कड़ा अल्टीमेटम जारी किया है, जिसमें मणिपुर में चल रहे संकट को हल करने के लिए भारतीय सशस्त्र बलों से तत्काल और निर्णायक कार्रवाई की मांग की गई है।

समिति ने स्थिति से निपटने के लिए बलों को पांच दिन की समय सीमा तय की है, जिसमें चेतावनी दी गई है कि कार्रवाई न करने पर लोगों को अपनी आबादी की सुरक्षा के लिए कठोर कदम उठाने पड़ेंगे। समिति ने स्थिति से निपटने के लिए केंद्रीय बलों के तरीके, खासकर कुकी उग्रवादी समूहों से निपटने के उनके तरीके पर गहरा असंतोष व्यक्त किया है।अपने अल्टीमेटम में, समिति ने या तो इन उग्रवादी समूहों पर कड़ी कार्रवाई करने या मणिपुर से केंद्रीय बलों को वापस बुलाने का आह्वान किया है।

 

सबसे अहम सवाल ये है कि आखिर मणिपुर में हिंसा थम क्यों नहीं रही है? इसके कई कारण हैं।आसान भाषा में समझें तो ये पूरी लड़ाई दो जातीय समूह कुकी और मैतई के बीच की है। ज्यादार मैतई समुदाय के लोग घाटी में रहते हैं और वहीं कुकी समुदाय के लोग पहाड़ों पर रहते हैं।हिंसा के बाद तो इन दोनों समुदायों का एक-दूसरे के स्थानों पर जाना बिलकुल बंद सा है।यही अलगाव हिंसा न थमने का एक बड़ा कारण भी है। दरअसल मणिपुर में तीन समुदाय सक्रिय हैं इसमें दो पहाड़ों पर बसे हैं तो एक घाटी में रहता है। मैतेई हिंदू समुदाय है और 53 फीसदी के करीब है जो घाटी में रहता है। वहीं दो और समुदाय हैं- नागा और कुकी, ये दोनों ही आदिवासी समाज से आते हैं और पहाड़ों में बसे हुए हैं। अब मणिपुर का एक कानून है, जो कहता है कि मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में रह सकते हैं और उन्हें पहाड़ी क्षेत्र में जमीन खरीदने का कोई अधिकार नहीं होगा। ये समुदाय चाहता जरूर है कि इसे अनुसूचित जाति का दर्जा मिले, लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है।

सवाल ये भी है कि आखिर दोनों ही समुदायों के पास इतनी बड़ी संख्या में हथियार कहां से आए। जिन हथियारों का हिंसा में इस्तेमाल हो रहा है वो आमतौर पर युद्ध में इस्तेमाल किए जाते हैं या फिर जवानों द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं। दरअसल, मणिपुर में तैनात सेना के जवानों समेत कई थानों में पिछले दिनों हथियार की लूट की खबर सामने आई थी। अधिकारियों ने कहा था कि भारी मात्रा में आधुनिक हथियारों की लूट हुई है।हिंसा को रोकने के लिए मणिपुर में सैनिक, अर्धसैनिक और पुलिस बल की तैनाती हजारों की संख्या में है,लेकिन वे भी इस हिंसा को रोकने में बेबस दिखे । इसका कारण आपसी समन्वय की कमी कहा जा सकता है। पिछले दिनों देखा गया था कि लोगों ने भी जवानों की तैनाती पर नाराजगी जाहिर की थी।वहीं, राज्य की पुलिस भी खेमों में बंटी नजर आ रही है।

दोनों जातियों की अलग-अलग लोकेशन होने के चलते पूरा इलाका एक सरहद में बदल गया है। रिपोर्ट के अनुसार, दोनों ने अपने लिए सेफ बंकर बना लिए हैं।भारी मात्रा में हथियार दोनों के पास ही मौजूद हैं।जिससे जब मौका मिलता है तब वो एक-दूसरे पर हमला करते हैं और फिर बंकर में छिप जाते हैं। घाटी और पहाड़ी होने के चलते उन्हें रोक पाना भी मुश्किल हैं।

भारत की आर्थिक व सार्वभौमिक उन्नति से परेशान कुछ विदेशी ताकतें भारत में अंदरूनी अस्थिरता का वातावरण बनाने के लिए सक्रिय रहती है। यह सीमापार से हथियारों की खेप व आर्थिक मदद भेज कर नफरत और विवाद को बढ़ाने के लिए काम करती हैं। तमाम कोशिशों के बाद भी मणिपुर में शांति क्यों नहीं हो रही है? राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार क्या कर रही है? सरकार को बढ़ती नफरत और तनाव को खत्म करने के लिए तत्काल सटीक और प्रभावी कदम उठाने चाहिए।मणिपुर की हिंसा सरकार के लिए भी साख पर बट्टा बनी है। (विभूति फीचर्स)

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