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मुद्दे की बात : बाजारों में धीमा-जहर खिला मारने का ‘खेल’ आखिर कब रुकेगा ?

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बाजारु जहरीले खाने से फिर मौत, सैकड़ों बीमार

देशभर में आम से लेकर खास आदमी के सिर पर जानलेवा खतरे की तलवार लटकी है। मंगलवार की सुबह केरल के  त्रिशूर इलाके में होटल से खरीदा जहरीला खाना खाने से गंभीर बीमार एक महिला की मौत हो गई। जबकि करीब पौने दो सौ लोग उसी होटल से खरीदे भोजन को खाकर अस्पताल पहुंच गए। लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के दौरान यह दुखद खबर सामने आई। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा, आम चुनाव शुरु होने से पहले पंजाब के शाही शहर पटियाला में एक मासूम बच्ची ने अपने बर्थडे पर बाजार से खरीदा जहरीला केक खाकर दम तोड़ दिया था। इसी शहर में एक और बच्चा दुकान से ली एक्सापयरी डेट वाली चॉकेलट खाने से गंभीर बीमार हो गया था।

उसके बाद चुनावी-शोर में एक और ऐसी ही बडी दुखद खबर दबकर रह गई। मुंबई में बाजार से खरीदी नॉनवेज डिश खाकर 18 साल के लड़के की फूड-प्वाइज्निंग से मौत हो गई थी। अब केरल में त्रिशूर-हादसा बड़ी त्रासदी के रुप में सामने आया है। विडंबना ही कहेंगे, चुनावी-मैदान में ताल ठोकने वाले तमाम सत्ताधारी और विपक्षी राजनेताओं ने इस गंभीर समस्या की तरफ से आंखें फेर रखी हैं। यह भी कह सकते हैं कि वे किसी भी उस शख्स की मौत पर तो जमकर हो-हल्ला मचाने को राजी हैं, जिससे वोट रुपी कमाई होती हो। पंजाब, फिर महाराष्ट्र और अब केरल तक बेकसूर बच्ची, युवक और महिला की जहरीले खाने से मौत के मामलों से राजनेताओं को कोई सरोकार नहीं है।

दरअसल प्रदूषित पानी, भोजन या जहरीली शराब पीकर लोगों के मरने की खबरें देश के तमाम हिस्सों में आए दिन सामने आती रहती हैं। शासन-प्रशासन के लिए शायद ये सब रुटीन मैटर हो चुका है। हां, इतना जरुर है कि जब बड़ा हादसा हो जाता है और जनता ही हंगामा खड़ा कर देती है तो शासन-प्रशासन को सोते से जागना पड़ता है। फिर वही रुटीन-एक्शन, जिसके नाम पर कड़े कदम उठाने वाले बयान, थोड़ी कानूनी-कार्रवाई की रस्म-अदायगी, फिर जनता का गुस्सा ठंड पड़ते ही सब कुछ ठंडे बस्ते में चला जाता है।

अब गौर फरमाएं, त्रिशूर-कांड को लेकर स्थानीय प्रशासन ने क्या कुछ किया। बस होटल सील कर दिया, यह भी माना कि कच्चे अंडों से बनी डिशेज खाने से ही सैकड़ों लोगों को फूड प्वाइज्निंग हुई और महिला की मौत हो गई। हालांकि सेहत महकमा मौके पर ठोस सबूत जुटाने के मामले में नाकाम ही रहा। अब जरा थोड़ा पीछे चलते हैं, पटियाला में केक खाने से बच्ची की मौत के बाद शासन-प्रशासन जागा जरुर था। चंद दिनों तक पंजाब के प्रमुख शहरों में कंफेक्शनरी की दुकानों  पर फूड सैंप्लिंग की गई। फिर चुनावी-शोर में सब कुछ दबकर रह गया। इसे विडंबना ही कहेंगे कि शासन-प्रशासन फिर से तभी जागेगा, जब भविष्य में ऐसा कोई बड़ा हादसा होगा। समाज के हर वर्ग का इस मामले में चिंतित होना लाजिमी है। बाकायदा पैसा देकर खाने-पीने की चीजें खरीदने वाले भी जब सुरक्षित नहीं तो सरकारी की मुफ्त खाद्य-योजनाओं पर भला क्या भरोसा किया जाए। देश की जनता को जहरीले, सड़े-गले खाद्य और पेय पदार्थ खिलाकर मारने वाले क्या बेकसूर लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार नहीं ? क्या ऐसी मौतों को गैर-इरादतन हत्या की श्रेणी में रखकर कड़ी कानूनी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए ? इस मामले में शासन-प्रशासन जिस तरह कुंभकर्णी नींद सोया है तो क्या जनता इसे लेकर भी अब न्यायपालिका से ही आस रखे ? फिर इस लोकतांत्रिक देश में जनता द्वारा चुनी सरकारों को सर्वोच्च अधिकार आखिर किस लिए हासिल हैं ?

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