मुद्दे की बात : भारत के बांग्लादेश की निर्यात-सुविधा बंद करने से क्या होगा असर ?

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माहिरों की राय, यह सुविधा बंद होने से बांग्लादेश को लगेगा झटका, उसे तलाशने होंगे विकल्प

इस साल आठ अप्रैल को भारत ने बांग्लादेश के साथ अपने आर्थिक संबंधों से जुड़ा एक बड़ा फ़ैसला किया था। साल 2020 में भारत ने बांग्लादेश को उसके निर्यात किए जा रहे सामान के लिए ‘ट्रांसशिपमेंट’ की सुविधा दी थी। जिसके तहत भारत के हवाई अड्डों और बंदरगाहों से हो रहे निर्यात में भारत के सामान के अलावा बांग्लादेश के निर्यात को भी जगह दी गई थी।

इसी आठ अप्रैल को भारत ने इसी सुविधा को एक सर्कुलर के ज़रिए वापस ले लिया। यह फ़ैसला ऐसे समय लिया गया, जब हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार प्रोफे़सर मो. यूनुस से मिले थे।सर्कुलर जारी करने के बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इस फ़ैसले को लेकर कहा कि इस सुविधा के कारण पिछले कुछ समय में हमारे हवाई अड्डों और बंदरगाहों पर काफ़ी दिक़्क़तें पैदा हो रही थीं। लॉजिस्टिक्स में देरी और उच्च लागत के कारण हमारे अपने निर्यात में बाधा आ रही थी और बैकलॉग भी बन रहा था। इसलिए यह सुविधा वापस ले ली गई। हालांकि भारत से होकर नेपाल और भूटान को जाने वाले बांग्लादेश के निर्यात पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। बांग्लादेश सरकार के कॉमर्स सलाहकार शेख़ बशीरुद्दीन ने भारत के फ़ैसले को ‘अचानक’ लिया फ़ैसला बताते कहा कि इससे बांग्लादेश के व्यापार पर कोई असर नहीं पड़ेगा। साथ ही उम्मीद जताई कि व्यापारियों और सरकार को होने वाली तकलीफ़ से देश जल्दी उबर जाएगा।

यहां यह भी समझना ज़रूरी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ़ के बारे में लिए गए निर्णयों के बाद दोनों देशों के निर्यातकों में चिंता बढ़ी है। फ़िलहाल ट्रंप ने रेसिप्रोकल टैरिफ़ लागू करने की तारीख़ 90 दिनों के लिए आगे बढ़ा दी है। हालांकि, सभी देशों से अमेरिका में हो रहे आयात पर दस प्रतिशत टैरिफ़ तो लगा दिए गए हैं। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक साल 2023-24 में दोनों देशों के बीच 14 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था। इसमें बांग्लादेश ने भारत को 1.97 अरब डॉलर का सामान निर्यात किया। यह साफ़ नहीं है कि भारत और बांग्लादेश एक-दूसरे से ट्रांसशिपमेंट के मामले में कितना कमाते हैं। बीबीसी के मुताबिक ट्रांसशिपमेंट निशुल्क सेवा नहीं होती है। एयरपोर्ट और बंदरगाहों पर लगने वाले शुल्क और टैक्स का भुगतान निर्यात करने वाले देश या फिर निर्यात करने वाली कंपनियां करती हैं। इस फ़ैसले के अलग-अलग पहलुओं को समझने के लिए बीबीसी द्वारा भारत और बांग्लादेश में कई विशेषज्ञों से बात की गई। जिसके मुताबिक भारत के पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश का सबसे बड़ा निर्यात रेडीमेड गारमेंट है।

एक आंकड़े के मुताबिक़, बांग्लादेश के पास निर्यात से होने वाली कुल आय का 83 प्रतिशत हिस्सा रेडीमेड गारमेंट से आता है। जानकारों के मुताबिक भारत के फ़ैसले के बाद बांग्लादेश से हवाई जहाज़ों में भेजे जा रहे निर्यात के सामान पर अब ख़र्च बढ़ जाएगा। रुबाना हक़ ‘बांग्लादेश गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन’ के पूर्व अध्यक्ष हैं। उनके मुताबिक कुछ सीमित हवाई शिपमेंट को अगर आप छोड़ दें तो भारत से रेडीमेड कपड़ों का ट्रांसशिपमेंट बहुत कम होता है। इसलिए हम पर इस फ़ैसले का उतना असर नहीं होगा, लेकिन हवाई लागत बढ़ जाएगी। डॉ. सलीम रेहन ढाका यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र पढ़ाते हैं। उनके मुताबिक 2020 में हुई इस पहल का उद्देश्य बांग्लादेश से होने वाले व्यापार की प्रक्रिया को बेहतर और आसान कर क़ीमतें कम करना था। इससे विशेष रूप से बांग्लादेश के रेडीमेड गारमेंट क्षेत्र को फ़ायदा पहुंचा। उन्होंने कहा कि हमें पूरी उम्मीद है कि भारत पुनर्विचार करेगा। उनके मुताबिक, अब बांग्लादेश को अपने बंदरगाहों का विस्तार कर अन्य पड़ोसी देशों के साथ समझौते पर काम करना होगा। बंगाल की खाड़ी के माध्यम से कनेक्टिविटी को मज़बूत कर क्षेत्रीय शिपिंग लाइनों में निवेश करना होगा, ताकि निर्यात को बढ़ावा मिले। हालांकि इन विकल्पों से नतीजे मिलने में समय और अधिक निवेश लगेगा।

क्या बांग्लादेश इस मुद्दे को औपचारिक रूप से विश्व व्यापार संगठन में उठाएगा और भारत का रुख़ इस पर क्या होगा, ये बातें अभी साफ़ नहीं हैं। बांग्लादेश के पूर्व राजदूत हुमायूं कबीर मानते हैं कि दरअसल 2010 में बांग्लादेश ने भारत को अपने उत्तर-पूर्वी राज्यों के साथ-साथ नेपाल और भूटान तक को ट्रांसशिपमेंट की सुविधा पेश की थी, मुझे नहीं पता कि आगे क्या होगा। हालांकि बात यह है कि भारत के इस क़दम ने बांग्लादेश को अब एक बहाना दे दिया है। वहीं, भारत के विदेश मंत्रालय के मुताबिक, दोनों देशों ने साल 2023 में बांग्लादेश के चटगांव और मोंगला बंदरगाहों के उपयोग के लिए समझौते किए थे। इस समझौते के तहत भारत को अपने उत्तर पूर्वी राज्यों तक कार्गो पहुंचाने में बांग्लादेश के इन बंदरगाहों की सेवाओं का लाभ उठाने की अनुमति मिली थी।

2012-13 में, बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार इकोनॉमिक कॉरिडोर पर बातचीत हुई थी। कहा तो यह भी जा रहा है कि भारत के निर्णय के पीछे प्रोफ़ेसर यूनुस का वह बयान है, जो उन्होंने हाल ही में चीन में दिया था। अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक, प्रोफ़ेसर यूनुस ने चीन में कहा था कि भारत के पूर्वी हिस्से में स्थित सात राज्य, भारत का एक ‘लैंडलॉक्ड’ क्षेत्र है, उनके पास समुद्र तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है। हम इस पूरे क्षेत्र के लिए समुद्र के एकमात्र संरक्षक हैं। इसलिए, यहां चीनी अर्थव्यवस्था का एक विस्तार भी हो सकता है। उनके इस बयान की भारत में काफ़ी चर्चा हुई। बयान की निंदा असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी की थी।

प्रोफ़ेसर यूनुस ने आर्थिक संभावनाओं के बारे में बात की थी। जबकि भारत में इसे सुरक्षा के दृष्टिकोण से देखा जा रहा है। बीबीसी की खोज-रिपोर्ट के मनुताबिक अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ऑफ़ इंडिया’ ने भी बांग्लादेश के निर्यातों को दी जा रही सहूलियतों पर सवाल खड़े किए थे। पिछले साल उन्होंने बांग्लादेश के निर्यातों को दिल्ली हवाई अड्डे से तीसरे देशों में भेजे जाने की अनुमति को रद करने की भी मांग भी की थी। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के अजय श्रीवास्तव के मुताबिक भारत और बांग्लादेश के बीच दक्षिण एशियाई फ्री ट्रेड एग्रीमेंट या एफटीए है, लेकिन व्यापार संबंध समान और पारस्परिक नहीं हैं। बांग्लादेश के निर्यात पर भारत में शुल्क नहीं लगता, लेकिन हमारे अधिकांश निर्यात पर वहां शुल्क लगता है। भारत, एक बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते, अपने पड़ोसियों को कई ऐसे लाभ प्रदान करता है, जिन्हें एकतरफ़ा कहा जा सकता है। इनसे कई निर्यातक लंबे नाराज़ भी हैं। लगता है कि भारत के इस क़दम से बांग्लादेश के अमेरिका और यूरोप के निर्यात विशेष रूप से प्रभावित होंगे।

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