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मुद्दे की बात : संविधान बचाओ बनाम आपातकाल आखिर क्या ?

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विपक्ष के रणनीतिक-जाल में उलझ गई है भाजपा

आम चुनावों के बाद 18वीं लोकसभा गठित होने पर राजनीतिक हलचल लगातार जारी है। नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने वाले दूसरे नेता हो गए। गौरतलब है कि बीजेपी को भले ही अपने बलबूते पूरा बहुमत नहीं मिला, लेकिन सहयोगी दलों के साथ एनडीए गठबंधन को बहुमत से 21 सीटें ज्यादा मिलीं। नतीजतन मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार बन गई। इसके बाद तमाम आशंकाओं को दरकिनार कर सरकार ने बीजेपी सांसद ओम बिड़ाला को दूसरी बार भी स्पीकर बनवा लिया।

वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री के अनुसार सबसे काबिलेजिक्र पहलू यह है कि इस सबके साथ ही सत्ता पक्ष और विपक्ष ने भावी राजनीति की नई इबारत भी लिख दी है। जो भारतीय संविधान को लेकर आरोपों प्रत्यारोपों की लड़ाई बनकर सामने आ रही है। दरअसल लोकसभा चुनावों में विपक्षी इंडिया गठबंधन और खासकर कांग्रेस ने बीजेपी के 400 पार के नारे को संविधान बदलने के खतरे से जोड़कर संविधान की हिफाजत करने को जबर्दस्त चुनावी मुद्दा बनाया था। परिणामस्वरुप चुनावों में बीजेपी को 63 सीटें गंवानी पड़ीं। इस आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पूरी बीजेपी राहुल गांधी और कांग्रेस के इस हमले का कारगर जवाब नहीं दे सकी।

खैर विपक्ष यहीं नहीं रुका, उसने नई लोकसभा में अपने तेवर बरकरार रखे। सांसदों के शपथग्रहण के दौरान कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन के ज़्यादातर सांसदों ने संविधान की छोटी प्रति हाथ में लेकर जय संविधान का नारा लगाकर यह साफ़ कर दिया। साथ ही खुला संदेश दे दिया कि संविधान का मुद्दा सिर्फ चुनावों तक नहीं था, ये आगे भी जारी रहेगा। कुल मिलाकर विपक्ष के इन तेवरों ने बीजेपी की परेशानी और बढ़ा दी।

लोकसभा चुनावों के बाद होने वाले महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड, जम्मू कश्मीर दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनाव होने हैं। बीजेपी की चिंता यही है कि अगर इन चुनावों में भी संविधान का मुद्दा चल गया और दलितों आदिवासियों, अति पिछड़ों ने इंडिया गठबंधन की तरफ रुख हो सकता है। ऐसी सूरत में बीजेपी को इन सभी राज्यों में जबर्दस्त नुकसान हो सकता है। सियासी-जानकारों की नजर में विपक्ष के संविधान- मुद्दे की काट के लिए बीजेपी ने आपातकाल के उन दिनों की यादें आगे कर दी हैं, जब 19 महीनों के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देश में लोकतंत्र पर ताला लगा दिया था। तब राजनीतिक बंदियों से देश की जेलें भर गईं थीं।

इस मुद्दे को बीजेपी ने संसद में उठा दिया। आपातकाल का मुद्दा इस सत्र में तब उठा, जब स्पीकर ओम बिड़ला ने सदन में आपातकाल की निंदा की। बाकी कसर प्रधानमंत्री ही नहीं, राष्ट्रपति ने पूरी कर दी। उन्होंने भी आपातकाल के मुद्दे पर राजनीतिक-भाषा में नकारात्मक लहजे में प्रतिक्रिया व्यक्त की तो विपक्ष ही नहीं, आम जनता ने भी इसे लेकर आलोचनात्मक राय जाहिर की। अब यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि संविधान बनाम आपातकाल के मुद्दे पर जारी विवाद आने वाले विधानसभा चुनाव में किसको फायदा या नुकसान पहुंचाएगा।

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