चीन को इस मुद्दे पर तीखा पलटवार करना चाहिए, एक्सपर्ट्स की राय
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के हर ट्रेडिंग पार्टनर पर टैरिफ लगाने का एलान किया। इस दौरान उन्होंने चीन के लिए कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया। घोषणा के बाद ट्रंप ने कहा किस चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मैं बहुत इज्जत करता हूं, लेकिन वह अमेरिका का बेहद फ़ायदा उठा रहे हैं।
ट्रंप ने एक चार्ट दिखाते कहा कि जिन देशों ने अमेरिकी वस्तुओं के बिजनेस में मुश्किलें खड़ी की हैं, वो इस तरह से हैं। अगर आप देखें चीन 67 फीसदी के साथ पहले नंबर पर है। इसे लेकर बीबीसी समेत दुनिया भर के मीडिया ने प्रतिक्रिया जताई है। जिसके मुताबिक ट्रंप ने कहा कि हम रेसिप्रोकल टैरिफ में छूट दे रहे हैं और 34 फीसदी टैरिफ ही लगा रहे हैं। हालांकि चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने इसे ‘एकतरफा धमकी’ करार देते कहा कि वह अपने हितों की रक्षा को कदम उठाएगा। चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने ट्रंप पर कारोबार को एक सामान्य ‘टिट फॉर टैट’ के खेल में बदलने का आरोप लगाया। हालांकि एक्सपर्ट्स का मानना है चीन के पास निराश होने की काफी वजहें हैं। उनमें से एक यह ऐलान है, जिसमें चीन की वस्तुओं पर 20 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगा है।
जब ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में चीन पर टैरिफ लगाए थे तो चीन ने बचने को एक रास्ता निकाला था। हालांकि कंबोडिया, वियतनाम और लाओस सहित अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों पर भारी टैरिफ लगाकर ट्रंप ने वो रास्ता बंद कर दिया है। जिन 10 देशों पर सबसे ज्यादा टैरिफ लगे, उनमें पांच एशियाई देश शामिल हैं। एक हफ्ते से भी कम समय में टैरिफ बढ़कर 54 फीसदी हो जाएंगे। हालांकि कार, स्टील और एल्युमीनियम जैसे उत्पादों पर टैरिफ कम होगा। चीन को तो ट्रंप की वजह से बिजनेस से जुड़ी अन्य मुश्किलों का सामना भी करना पड़ रहा है। पहले ट्रंप ने चीन से आने वाले कम मूल्य के पार्सल के प्रावधान को समाप्त करने के लिए एक कार्यकारी आदेश पर साइन किए थे। इस प्रावधान से चीन के शीन और टेमू जैसे ई कॉमर्स प्लेटफॉर्म अमेरिका में 800 डॉलर की कीमत के पैकेज बिना किसी टैक्स के भेज पाते थे। कस्टम डेटा के मुताबिक इस प्रावधान के तहत बीते वित्त वर्ष में 1.4 अरब डॉलर के पैकेज चीन से अमेरिका पहुंचे। प्रावधान हटने की वजह से चीन की कुछ कंपनियों को कस्टमर्स से अतिरिक्त चार्ज लेना होगा। ऐसे में अमेरिका में उ वस्तुओं की मांग कम हो सकती है।
हीनरीच फाउंडेशन से जुड़ीं डेबरा एम्स कहती हैं कि अगर चीन को पलटवार करना होगा, वो चुपचाप बैठकर ये सब होते हुए नहीं देख सकता। वियतनाम और अन्य देशों को अमेरिका की बिजनेस नीति से नुकसान पहुंच सकती है। ये कोई बदला नहीं, लेकिन टैरिफ के जरिए रणनीतिक नियंत्रण है। कंबोडिया और लाओस इस क्षेत्र के सबसे गरीब देश हैं, वो चीन की सप्लाई चेन पर निर्भर करते हैं। हाई टैरिफ की वजह से इन देशों पर बुरा असर पड़ सकता है। वियतनाम चीन का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है। ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान जब चीन और अमेरिका के बीच तनाव था, तब वियतनाम को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा था। ट्रंप ने साल 2018 में चीन पर टैरिफ लगाए थे। इसकी वजह से बिजनेस करने वालों ने इस बात पर विचार किया कि प्रोडक्ट कहां बनाए जाएं और उन्होंने वियतनाम को चुना। चीनी कंपनियां वियतनाम चली गईं, इसलिए वियतनाम से अमेरिका में किए जाने वाले आयात में बढ़ोतरी दर्ज हुई। एक्सपर्ट्स के मुताबिक चीन से जुड़ने की वजह से वियतनाम को निशाना बनाया गया है। नए आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका वियतनाम का सबसे बड़ा निर्यात बाजार बना हुआ है। वहीं चीन, वियतनाम को सबसे ज़्यादा सामान सप्लाई करने वाला देश बन गया है। इतना ही नहीं चीन, वियतनाम के कुल आयात में एक तिहाई से अधिक का योगदान देता है।
वियतनाम में पिछले साल जो नए निवेश हुए, उनमें से हर तीन में एक के पीछे चीन की कंपनी ही थी। चीन में डिमांड एक दिक्कत बन गई। ट्रंप के पिछले कार्यकाल के दौरान चीन की कंपनियों ने अपने प्लांट चीन से दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में शिफ़्ट किए, लेकिन अब ये दरवाजा भी बंद हो गया। हालांकि ट्रंप के टैरिफ का असर अमेरिका की उन कंपनियों पर भी पड़ेगा, जो अपने प्रोडक्ट दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में बनाते हैं। मसलन, अमेरिका की बड़ी कंपनियों एपल, इंटेल और नाइकी पर भी इसका असर पड़ेगा, क्योंकि इनकी अधिकतर फैक्ट्री वियतनाम में ही हैं।
वियतनाम में अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स के सर्वे में पाया गया कि वहां अधिकांश अमेरिकी निर्माताओं को आशंका है कि अगर टैरिफ लगाया गया तो वे अपने कर्मचारियों की छंटनी कर देंगे। सवाल ये है कि चीन के पास टैरिफ का जवाब देने का क्या रास्ता है, क्योंकि इनके लागू होने में कुछ ही दिन का वक्त है। माहिरों की मानें तो चीन टैरिफ पर मजबूती से पलटवार कर सकता है। वो ऐसे कदम उठा सकता है, जिससे अमेरिकी कंपनियों के लिए चीन में काम करना मुश्किल हो जाए। हालांकि चीन की अर्थव्यवस्था पहले ही चुनौतियों का सामना कर रही है और उसके सामने आगे का रास्ता बेहद मुश्किल है। अन्य क्षेत्रों में निर्यात करने से वहां औद्योगिकीकरण ख़त्म होने का ख़तरा है। वहां के राजनेता इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। इसका मतलब है कि चीन को अंत में घरेलू मांग को बढ़ावा देना होगा।
यह टैरिफ चीन को उन अन्य एशियाई देशों के साथ गठजोड़ बनाने के लिए भी प्रेरित कर सकते हैं, जो टैरिफ का सामना कर रहे हैं। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व सदस्य वांग वेयाओ के मुताबिक इस मुश्किल वक्त में एशियाई देशों को एकजुट होकर काम करने की जरूरत है। अंत में अमेरिका का प्रभाव खत्म हो जाएगा और वो अकेला महसूस करेगा। ऐसी कुछ चर्चा भी चल रही हैं. कि चीन, दक्षिण कोरिया और जापान ने पांच साल में पहली बार अर्थव्यवस्था से जुड़ी बात की हैं। वो फ्री ट्रेड एग्रीमेंट की बात को लेकर तेजी दिखा रहे हैं। हालांकि इसका प्रस्ताव 10 साल पहले रखा गया था। नए टैरिफ से उन्हें ऐसा करने के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन मिल सकता है। हालांकि कुछ समय के लिए चीन को दिक्कतों का तब तक सामना करना पड़ सकता है, जब तक अमेरिका के साथ बातचीत आगे नहीं बढ़ेगी। अंत में चीन और अमेरिका बातचीत की ओर ही आगे बढ़ेंगे और इस तरह का रास्ता निकालने की कोशिश करेंगे, जिसमें समझौता हो पाए। ऐसा जल्द हो ये मुमकिन नहीं है। हालात सुधरने से पहले और ज्यादा खराब होंगे।
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