वाल्मीकिीय रामायण एक अद्भुत ग्रन्थ है , इसकी रचना-शैली बड़ी रोचक, सुन्दर, चमत्कारिक और मनोरंजक है। – संत अश्वनी बेदी जी

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लुधियाना ,, 26 सितम्बर–

श्री राम शरणम् , श्री राम पार्क में चल रहे श्री रामायण ज्ञान यज्ञ में संत अश्वनी बेदी जी ने कहा कि पूज्य स्वामी सत्यानन्द जी महाराज का कथन है कि
वाल्मीकिीय रामायण एक अद्भुत ग्रन्थ है। इसकी रचना-शैली बड़ी रोचक, सुन्दर, अलंकृत, चमत्कारिक और मनोरंजक है। कवि की काव्य-कला बहुत ही सरला, सरसा, सारगर्भभा, भावपूर्णा और प्रभावशाली है। वाल्मीकि कवि जिस सुगमता से प्रत्येक विषय का बड़े विस्तार से वर्णन करता है, छोटी से छोटी घटना को दृष्टि-गोचर रखता है और विषय के प्रत्येक अंग को, अंशों को और रहस्य को प्रकट कर दिखाता है, यह जहाँ कवि की उच्च कविता-कला का परिचायक चिन्ह है वहाँ यह भी स्वतः सिद्ध कर देता है कि आदि कवि की मातृभाषा भी संस्कृत ही थी क्योंकि वाल्मीकिीय रामायण बोलचाल की भाषा में ही रची गई प्रतीत होती है। बोलचाल की भाषा के बिना इतना सरल, इतना विशद और इतना सर्वांगपूर्ण वर्णन किया जाना, कदापि, सम्भव नहीं हो सकता। उस काल के आर्य लोग तथा प्रायः भारतवासी संस्कृत भाषा में वार्तालाप किया करते थे। आर्य लोग देव भी कहे जाते थे इसीलिए उनकी भाषा का नाम देववाणी प्रसिद्ध हुआ था। वाल्मीकिीय रामायण की भाषा, ब्राह्मण ग्रन्थों तथा उपनिषदों की भाषा से मिलती है और पुरानी है परन्तु है अतीव मधुर, मृदुल, मंजुल, मार्जित और मनोगामा।

वाल्मीकीय रामायण का प्रभाव भारत वासिओं के जियानों पर, आचारों पर, विचारों पर, कर्मों पर, व्रतों पर, नियमों पर और कल्पनाओं तक पर बड़ा गहरा अंकित, आज तक, स्पष्ट दिखाई देता है। हिन्दुओं के सम्मुख, पितृ पूजन के, बन्धु भावना के, यति सती धर्म के, तप त्याग के, लोक सेवा के, समाज संगठन के, जन संग्रह के, जाति देश हित के, न्याय के और सर्वोत्तम शासन के, आदर्श स्वरूप श्री राम ही माने जाते हैं। हिन्दुओं के समीप, धर्म कर्म के एवं सब शभ के परम पावन प्रतीक, रामायण वर्णित श्री रामचन्द्र जी ही हैं। बाहर से आये अन्यदेशीय संस्कारों को उपेक्षित करके, यदि हिन्दु भावों को, हिन्दु धर्म को तथा हिन्दु संस्कृति को देखा जाय तो वाल्मीकीय रामायण वर्णित पवित्र पात्रों के पुन्यस्वरूप कर्तव्य कर्म ही उनका जीवन बने हुए प्रतीत होंगे।

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