उड़दी-उड़दी
टिकट पाकर भी उड़ा है चैन कई ‘चन्नियों’ का
सियासत नाम की बीमारी भी अजीब है, टिकट-गद्दी वगैराह न मिले तो नेताओं का चैन उड़ा रहता है, टिकट मिल भी जाए तो चैन तब भी नहीं मिलता। अब अपने पंजाब में पंजेवाले कैंप के एक नेताजी की हालत कुछ ऐसी है। जब गद्दी संभाल राज कर रहे थे तो विरोधी ही नहीं अपने ही लोग उनसे पंजा लड़ाने के लिए चेलेंज करते रहते थे। पीछे विजिलेंस-ईडी-फीडी तक लगवा दी थी। नेताजी साइलेंट होकर बैठे थे तो सब ठीक-ठाक रहा। मगर जैसे ही लोकतंत्र के महापर्व में उनकी भी सियासी-उमंगें जागीं तो हंगामा बरप गया। बिरादरी वाले ही पीछे पड़ गए। अब रब-रब करके टिकट मिल गई तो नई विकट समस्या खड़ी है। अपना नाम चैन वाला होने के बावजूद नेताजी का चैन उड़ा हुआ है। खबरची बड़ी खबर उड़ाकर लाया कि नेताजी का चैन दो खास वजह से उड़ा हुआ है। एक तो अपने ही कैंप में टिकट के दावेदार विरोधी-परिवार को भी दूसरी सीट से टिकट मिलने जा रही है। दूसरे उनकी सीट पर भी विरोधी-परिवार एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है कि नेताजी किसी हालत में जीत न पाएं। ऐसे ही कई और केस पंजाब में सामने आ रहे हैं, जहां टिकट पाकर भी कई चन्नियों का चैन उड़ा हुआ है। जीतने की बात रिजल्ट आने पर क्लियर होनी है, अभी तो हराने के लिए ताल ठोक रहे शरारती गुटों ने ऐसे नेताओं का चैन खो रखा है।—-(नदीम अंसारी)
————