ट्रंप का आर्थिक हथियार “50 पर्सेंट टैरिफ” बनाम मोदी का “प्लान 40”

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केंद्र सरकार ने प्रभावित सेक्टरों की पहचान की है व उनके लिए क्रेडिट सपोर्ट, टैक्स रिबेट और एक्सपोर्ट सब्सिडी जैसी राहत योजनाएँ तैयार की जा रही हैं।

अमेरिका नें भारत के लिए एक दरवाजा बंद किया है तो भारत नें 40 और दरवाजे खोलकर अपने लिए नए रास्ते बनानें क़ी तुरंत रणनीति बनानी शुरू कर दी है- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र

गोंदिया-वैश्विक व्यापार जगत को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर हिला दिया है। उनके नए टैरिफ़ आदेशों ने भारत समेत कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं के सामने चुनौती खड़ी कर दी है। ट्रम्प का सीधा संदेश यही है कि अमेरिकी बाज़ार को अब विदेशी उत्पादों से बचाया जाएगा और ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत हर उस देश पर शुल्क लगाया जाएगा, जो अमेरिकी कंपनियों के लिए प्रतिस्पर्धा खड़ी करता है।यह विषय बेहद अहम और गहन है क्योंकि इसमें भारत-अमेरिका के बीच चल रहे टैरिफ युद्ध, मोदी सरकार की रणनीति, आत्मनिर्भर भारत का आत्मविश्वास और अमेरिका की वीज़ा नीति के प्रभाव सब कुछ शामिल है।इस कदम से भारत के आईटी सेक्टर, फ़ार्मा, मैन्युफैक्चरिंग और निर्यातक वर्ग पर दबाव बढ़ गया है। ऐसे समय में भारतीय प्रधानमंत्री ने जो रणनीति तैयार की है,उसे मीडिया और नीति- विश्लेषकों ने “प्लान 40” का नाम दिया है।यह योजना केवल अमेरिका की टैरिफ़ चुनौती का जवाब नहीं बल्कि भारत की वैश्विक स्थिति को मज़बूत करने का खाका भी है।वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में इस समय ट्रंप का “50 पर्सेंट टैरिफ”और मोदी का “प्लान 40”सबसे चर्चित विषय बन चुका है। 27 अगस्त 2025 से अमेरिका ने भारत पर 50 पर्सेंट का टैरिफ लागू कर दिया है, जिसका सीधा असर भारतीय टेक्सटाइल,फार्मा,ऑटोकंपोनेंट्स और आईटी सर्विसेज़ सेक्टर पर पड़ा है।अमेरिकीराष्ट्रपति ने यह कदम अचानक नहीं उठाया बल्कि पिछले कई महीनों से वे लगातार भारत को चेतावनी दे रहे थे कि अगर भारत अमेरिकी हितों की अनदेखी करेगा तो उसे आर्थिक हथियार का सामना करना पड़ेगा। ट्रंप प्रशासन का मानना है कि भारत को सबक सिखाना आवश्यक है क्योंकि भारत ने रूस के साथ तेल व्यापार जारी रखा और साथ ही यूरोप तथा एशिया में नए बाज़ार खोजकर अमेरिकी दबाव की अनदेखी की।मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं कि इस टैरिफ का सबसे अधिक असर उन इंडस्ट्रीज़ पर पड़ा है जिनका बड़ा हिस्सा अमेरिकी बाजार पर निर्भर है। टेक्सटाइल और गारमेंट्स उद्योग,जो अपने निर्यात का लगभग 30 पर्सेंट अमेरिका भेजते हैं, अब मुश्किल में हैं। इसी तरह भारतीय फार्मा इंडस्ट्री, जो जेनेरिक दवाइयों का सबसे बड़ा सप्लायर है,उसे भी झटका लगा है।भारतीय आईटीकंपनियां और सॉफ्टवेयर इंजीनियर लंबे समय से अमेरिका में सेवाओं के क्षेत्र में नेतृत्व करते रहे हैं, लेकिन टैरिफ और वीज़ा नीतियों ने उनके भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। ऑटो और इंजीनियरिंग गुड्स सेक्टर भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
साथियों बात अगर हम प्लान 40 को समझने की करें तो, भारत ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए तुरंत रणनीति बनानी शुरू कर दी है। केंद्र सरकार ने प्रभावित सेक्टरों की पहचान की है और उनके लिए क्रेडिट सपोर्ट, टैक्स रिबेट और एक्सपोर्ट सब्सिडी जैसी राहत योजनाएँ तैयार की जा रही हैं। टेक्सटाइल उद्योग के लिए यूरोप, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में नए ग्राहकों की तलाश की जा रही है। फार्मा इंडस्ट्री को रूस, मध्य एशिया और अफ्रीकी देशों में स्वास्थ्य मिशनों के जरिए नए बाजार उपलब्ध कराए जा रहे हैं। आईटी सेक्टर के लिए एशियाई देशों, गल्फ और यूरोप में डिजिटल सेवाओं का विस्तार किया जा रहा है।वहीं ऑटो सेक्टर को “मेक इन इंडिया” और घरेलू ईवी पॉलिसी के जरिए घरेलू बिक्री और उत्पादन बढ़ाने का अवसर दिया जा रहा है।सरकार का स्पष्ट संदेश है कि भारत किसी एकदेश पर निर्भर नहीं रहेगा और निर्यात का दायरा कई गुना विस्तारित किया जाएगा। इस पूरी रणनीति को “प्लान 40” कहा जा रहा हैसरकार का यह प्लान भारत को 40 देशों के साथ नए व्यापारिक गठबंधन औरसमझौते कराने पर आधारित है। इसके अंतर्गत यूरोपियन यूनियन के साथ एफटीए की रफ्तार तेज़ की जा रही है। खाड़ी देशों,विशेषकर यूएई और सऊदी अरब के साथ ऊर्जा और तकनीकी समझौते किए जा रहे हैं।अफ्रीकी महाद्वीप में हेल्थकेयर, फार्मा और टेक्सटाइल मार्केट पर कब्ज़ा जमाने की योजना है। लैटिन अमेरिका और कैरिबियन देशों में ऑटो पार्ट्स और इंजीनियरिंग गुड्स का निर्यात बढ़ाया जाएगा। साथ ही रूस और चीन के साथ ऊर्जा और रक्षा व्यापार को और मजबूत किया जाएगा। यानी अमेरिका अगर भारत के लिए दरवाजे बंद करता है तो भारत 40 और दरवाजे खोलकर अपने लिए नए रास्ते बनाएगा।
साथियों बात अगर हम वर्तमान परिस्थितियों को हमारे मिशन आत्मनिर्भर भारत के प्रभाव की करें तो,भारत का आत्मविश्वास इस बार पहले से कहीं अधिक है क्योंकि 2019 के बाद से भारत ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के जरिए अपनी इंडस्ट्रीज़ को मजबूत किया है। उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाओं को लागू किया गया, एमएसएमई सेक्टर को प्रोत्साहन मिला और स्टार्टअप्स को बढ़ावा दिया गया। सरकार का मानना है कि टैरिफ हमें चुनौती ज़रूर देंगे लेकिन यही चुनौती हमें स्वदेशी उत्पादन और नए बाजार पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर भी प्रदान करेगी।पीएम ने हाल ही में अपने संबोधन में कहा कि भारत किसी के टैरिफ से नहीं डरता, हम आत्मनिर्भर हैं और दुनियाँ को भारत पर निर्भर रहना होगा।
साथियों बात अगर हम अमेरिका की एच1बी वीज़ा नीति को भी सख्त करने की योजना की करें तो अमेरिका ने केवल टैरिफ लगाकर ही भारत को चुनौती नहीं दी बल्कि उसने वैकल्पिक प्लान के तहत एच 1बी वीज़ा नीति को भी सख्त करने की योजना बनाई है। नई शर्तों के अनुसार अब केवल वही लोग एच1बी वीज़ा प्राप्त कर सकेंगे जो अमेरिका में कम से कम 50 लाख डॉलर का निवेश करेंगे। इसका सीधा असर भारतीय आईटी इंजीनियरों, छात्रों और पेशेवरों पर पड़ेगा। भारत से हर साल लाखों युवा अमेरिका जाते हैं लेकिन अब उनके लिए यह रास्ता लगभग बंद हो गया है। हालांकि इस संबंध में मेरा मानना है कि अमेरिका यूं ही एच1बी वीजा नहीं देता वह भारतीय उच्च टैलेंट को आकर्षित करने के लिए एच1बी वीजा शुरू किया है हम जानते हैं कि भारतीय टैलेंट की अमेरिका में बहुत खास जरूरत है। मेरा तर्क है कि वहां टैलेंट की कमी है और इसलिए उच्चस्तर क़े टैलेंट की सबसे अधिक जरूरत है,एक रिपोर्ट के अनुसार एच1बी वीज़ा वाले हाईस्किल्ड भारतीय होते हैं, अमेरिकन कर्मचारियों से कहीं ज्यादा सैलरी एच1बी वीजा वालों को मिलती है,वहां एच1बी वीजा वालों को एवरेज 108000 अमेरिकन डॉलर मिलते हैं,लेकिन अमेरिकी निवासियों को 45760 अमेरिकन डॉलर मिलते हैं,अगर हाईस्किल्ड टैलेंट की जरूरत अमेरिका को नहीं होती तो क्यों इतनी ज्यादा सैलरी देकर वे भारतीयों को बुलाते? लेकिन अब निवेश की शर्त स्पष्ट रूप से यह दिखाती है कि यह भारत पर राजनीतिक दबाव बनाने की रणनीति है।
साथियों बात अगर हम इन कदमों से भारत- अमेरिका रिश्तों पर गहरा असर पढ़ने की करें तो,पहले से ही रूस-भारतसंबंधों को लेकर अमेरिका असहज था, और अब टैरिफ व वीज़ा पॉलिसी ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है।भारत ने अमेरिका पर निर्भरता घटाने का ऐलान किया है, वहीं अमेरिका ने भारतीय कंपनियों पर टैरिफ और वीज़ा का बोझ डाल दिया है। इसके जवाब में भारत ने 40 देशों के साथ नए व्यापारिक गठबंधन शुरू किए हैं। साफ है कि आने वाले समय में भारत- अमेरिका रिश्ते सहयोग और टकराव के मिश्रण से गुजरेंगे। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि आज का भारत 1991 वाला भारत नहीं है। उस समय भारत आईएमफ पर निर्भर था लेकिन आज भारत दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। ट्रंप का 50 पर्सेंट टैरिफ भारत को चुनौती देगा लेकिन भारत ने “प्लान 40” के जरिए यह संदेश दिया है कि भारत झुकेगा नहीं बल्कि विकल्प तलाशेगा। अमेरिका चाहे एच1बी वीज़ा सख्त करे या टैरिफ बढ़ाए, भारत आत्मनिर्भरता और वैश्विक साझेदारी के जरिए आगे बढ़ेगा। यह पूरा घटनाक्रम यह साबित करता है कि वैश्विक राजनीति अब केवल ताक़तवर देशों के इर्द-गिर्द नहीं घूमती बल्कि भारत जैसे उभरते देशों की रणनीति भी भविष्य तय करती है।

*-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र *

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