मुद्दे की बात : ट्रंप रोक पाएंगे भारत, पाक, चीन में परमाणु-होड़ ?

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अमेरिकी राष्ट्रपति पहले भी सहमति बनाने में रहे थे नाकाम

दक्षिण एशिया इस समय दुनिया के उन कुछ इलाक़ों में है, जहां परमाणु हथियारों की संख्या हर साल बढ़ रही है। यहां परमाणु शक्ति-संपन्न तीन देशों में से एक चीन के बारे में यह राय है कि उसकी परमाणु शक्ति तेज़ी से बढ़ रही है। इससे चिंतित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मुताबिक वह दोबारा रूस और चीन के साथ परमाणु हथियारों को कम करने पर बातचीत शुरू करेंगे। इस योजना में पाकिस्तान और भारत समेत दूसरे देशों भी शामिल कर सकते हैं। रूस और अमेरिका के पास दुनिया में सबसे अधिक परमाणु हथियार हैं, लेकिन अगले 5 साल में चीन इसी स्तर पर पहुंच जाएगा। ट्रंप अपने पहले कार्यकाल में चीन से परमाणु हथियार योजना पर बातचीत में नाकाम रहे थे। तब दोनों देश इससे संबंधित समझौते पर बात कर रहे थे। बाइडन प्रशासन आने के बाद रूस ने उसमें शामिल होने से इंकार कर दिया था।

बीजिंग में चीन, रूस और ईरान के नेताओं की एक मुलाकात होने वाली थी, जिसमें चीनी विदेश मंत्रालय के अनुसार ईरानी ‘परमाणु समस्या’ पर बातचीत होनी थी। उन्होंने कहा कि रोनाल्ड रीगन ने भी परमाणु हथियारों की संख्या कम करने को गोर्बाचेव से बात की थी। ट्रंप के मुताबिक परमाणु हथियार बहुत महंगे होते हैं, इसलिए उन्हें छोड़ देना एक बड़ी योजना हो सकती थी। स्वीडन के थिंक टैंक ‘सीपरी’ की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार नौ परमाणु हथियार संपन्न देशों- अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ़्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान, उत्तरी कोरिया और इसराइल अपने परमाणु हथियारों के भंडार को लगातार आधुनिक बना रहे हैं। इन नौ देशों के पास कुल मिलाकर परमाणु हथियारों की संख्या कम होकर लगभग 12 हज़ार 121 हो गई है, जो 2023 में 12 हज़ार 512 थी। भारत के पास 172 जबकि पाकिस्तान के पास 170 परमाणु वॉरहेड हैं। पाकिस्तान, भारत का मुक़ाबला करने को परमाणु हथियार तैयार कर रहा है। जबकि भारत का ध्यान लंबी दूरी तक मार करने वाले हथियारों की तैनाती पर है, जो चीन को भी निशाना बना सकते हैं। दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी परमाणु शक्ति चीन के पास परमाणु हथियारों की संख्या 22 फ़ीसदी इज़ाफ़े के साथ 410 वॉरहेड से बढ़कर 500 हो गई है। रूस और अमेरिका के पास दुनिया के कुल परमाणु हथियारों का 90 फ़ीसदी भंडार है। दोनों ने ढाई हज़ार पुराने परमाणु हथियार अपने भंडार में से निकाल दिए। 1986 में दुनिया भर में परमाणु हथियारों की संख्या 70 हज़ार थी, जो अब कम हुई है, लेकिन अब भी 12 हज़ार से अधिक है।

साल 1991 में दक्षिण अफ़्रीका वह पहला देश बना, जिसने स्वैच्छिक तौर पर अपना परमाणु कार्यक्रम ख़त्म किया। सोवियत यूनियन टूटने पर यूक्रेन, बेलारूस और क़ज़ाख़स्तान ने अपने परमाणु कार्यक्रम रोक दिए थे। इसके बदले उन्हें अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, चीन और रूस की ओर से सुरक्षा की गारंटी दी गई थी। 2017 में लगा कि दुनिया परमाणु हथियारों से मुक्ति के नजदीक आ गई, जब 100 से अधिक देशों ने संयुक्त राष्ट्र के समझौते पर हस्ताक्षर किए। बड़े देशों अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस और रूस ने इस समझौते का बायकॉट किया। चीनी का स्टैंड है कि पहले रूस और अमेरिका पहल करें।

आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन से जुड़े परमाणु हथियार मामले के विशेषज्ञ डेरिल जी कैंबेल के मुताबिक ट्रंप के लिए परमाणु हथियारों पर रूस से बातचीत करना हमेशा मुश्किल काम होता है। सबसे अच्छा होगा कि पुतिन और ट्रंप परमाणु हथियारों की सीमा बनाने पर सहमति जताएं। ऑस्ट्रेलिया स्ट्रैटेजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट से जुड़ी परमाणु मामलों की विशेषज्ञ राजेश्वरी राजगोपालन के मुताबिक दक्षिण एशिया में फ़िलहाल परमाणु हथियारों की कमी लाना और उनकी सीमा बांधना मुश्किल लगता है। भारत ‘नो फ़र्स्ट यूज़’ परमाणु सिद्धांत पर विश्वास रखता है, लेकिन 1998 से उसकी परमाणु नीति चीन को मद्देनज़र रखकर बनाई गई। दिल्ली में रक्षा मामलों के विश्लेषक राहुल बेदी को नहीं लगता कि ट्रंप का ऐलान भारत और पाकिस्तान को परमाणु हथियारों की कमी के लिए राज़ी कर पाएगा। 1998 में परमाणु हथियारों के परीक्षण के बाद भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चीन का हवाला दिया था, हालांकि उस समय पाकिस्तान भी अपनी परमाणु क्षमता बना रहा था। अगर चीन ने अपने परमाणु कार्यक्रम को विस्तार दिया तो भारत को भी इसका जवाब देना पड़ेगा, हू-ब-हू मुक़ाबला असंभव है। भारत की प्रतिक्रिया रोकने को चीन की परमाणु योजन की रफ़्तार को रोकना अमेरिका के लिए बहुत मुश्किल होगा। इस्लामाबाद में परमाणु मामलों के विशेषज्ञ सैयद मो. अली इस बात पर सहमति जताते हैं, मगर इसके बारे में अलग कारण बताते हैं।

पाकिस्तान समझता है कि भारत का रक्षा बजट उसकी तुलना में कई गुना अधिक है। क्षेत्रीय शांति, राष्ट्रीय सुरक्षा और हमले के ख़तरे को कम करने की ज़रूरत की वजह से इस प्रस्ताव पर पाकिस्तान की रज़ामंदी की संभावना कम दिखती है।

पाकिस्तान समझता है कि उसके परमाणु हथियार क्षेत्र में, विशेष कर भारत के ख़िलाफ़, किसी तरह के आक्रमण को रोकने के लिए हैं। हालांकि वह भारत के ख़िलाफ़ परमाणु हथियारों की दौड़ में शामिल नहीं है। पाकिस्तान ने अपने परमाणु हथियारों को बनाने में यही सतर्कता बरती है और उसे अपनी आर्थिक चुनौतियों का भी अंदाज़ा है, इसलिए पाकिस्तान बड़े पैमाने पर परमाणु हथियार नहीं बना रहा।

पाकिस्तान को असल ख़तरा भारत से है और चीन की ओर से अपने परमाणु संसाधनों को विस्तार देने के बावजूद इसमें बदलाव नहीं आया है। मसलन, अमेरिका ने भारत को एफ़-35 की पेशकश की है, जिससे यह राय बनती है कि अमेरिका का मक़सद हथियारों में कमी लाना नहीं, बल्कि अपनी रक्षा आमदनी में इज़ाफ़ा है। पाकिस्तान में हाल के वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘क़त्ल की रात’ जैसे बयानों पर भी चिंता पाई जाती है। चीन और भारत एक दूसरे को ऐसी धमकियां नहीं देते तो ऐसे में पाकिस्तान के नीति निर्धारकों के लिए इस बात पर विश्वास करना मुश्किल होता है कि भारत को केवल चीन का ख़तरा है या उसका परमाणु कार्यक्रम केवल चीन का असर कम करने के लिए है।

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