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आज की शादियां भी बन गई हैं पैकेज मैरिज 

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आज की शादियां भी बन गई हैं पैकेज मैरिज

 

संजय भुटानी सीनियर जर्नलिस्ट

सभ्यता- संस्कृति, भावनाओं व संवेदनाओं के ऊपर हावी होते धन के प्रभाव ने जहां रिश्तों को खत्म करने का काम किया है, वहीं नए बनने वाले वैवाहिक बंधन पर भी काफी बुरा असर डाला है। यह कहा जा सकता है कि उच्च वर्ग से शुरू हुई दिखावा व पैसों के प्रदर्शन की चाल ने मध्यम वर्ग से होते हुए निचले वर्ग पर भी काफी असर डाल दिया है और इस दिखावे के पीछे सीधे-सीधे धन का प्रभाव है।

 

आज हर रिश्ते- नाते के ऊपर केवल धन हावी हो गया है, इससे जहां रिश्ते टूट रहे हैं और नए रिश्ते बन नहीं रहे यानी की जिस आयु में युवा- युवतियों को विवाह बंधन में बंध जाना चाहिए, धीरे-धीरे यह आयु आगे सरकती जा रही है और इसके साथ-साथ आज जो नई कल्चर विकसित हो रही है, वह है युवाओं और युवतियों द्वारा शादी से मुंह मोड़ना। आज स्थिति ऐसी आ गई है कि अक्सर अभिभावक जब युवा होते अपने पुत्र एवं पुत्री से विवाह की बात करते हैं तो अधिकतर आनाकानी का जवाब मिलता है, जिससे अभिभावकों की परेशानियां दिन-ब-दिन बढ़ रही हैं और इसे वे किसी के साथ साझा करने में भी कतराते हैं कि कहीं उन्हें सामाजिक परेशानियों का सामना न करना पड़े।

 

 

 

आज के युवा वर्ग का शादी के बंधन से दूर भागने का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी कहा जा सकता है कि अधिकतर युवा वर्ग अपने घरों व आसपास के माहौल में यह देख रहे हैं कि अक्सर पति-पत्नी के रिश्ते शादी होने के थोड़े वक्त बाद ही टूटते जा रहे हैं, जिससे युवाओं में डर की स्थिति बनी हुई है कि कहीं उनके साथ भी ऐसा न हो जाए। दूसरा कारण यह भी है कि आज युवक और खासतौर पर युवतियां आर्थिक रूप से सेल्फ डिपेंडेंट हो गए हैं और इसी सेल्फ डिपेंडेंसी के कारण ही युवतियां वर ढूंढते वक्त अपनी चाहत को आगे रखने लगी हैं। खासतौर पर इस मामले में अभिभावकों की नहीं मानी जा रही और न ही उनके अनुभव को समझा जा रहा है।

 

 

कारण यही है कि आज प्राइवेट कंपनियों में जॉब कर रही युवतियों को सैलरी के रूप में मोटी रकम मिलती है। कहा जा सकता है कि पैकेज बढ़ गए हैं। बढ़िया सैलरी के चलते आज रिश्ते करते वक्त युवक- युवतियां पैकेज देखने लगे हैं तो इसलिए आज की शादियां भी एक तरह से पैकेज मैरिज बनकर सामने आ रही हैं, जहां सिर्फ पैकेज को तवज्जो दी जा रही है बाकी बातों को अगली प्राथमिकताओं में रखा जा रहा है। इससे सीधे-सीधे समझा जा सकता है कि जब शादी हुई ही पैकेज के आधार पर है तो वह कितनी लंबी चलेगी और ऐसी शादियों के बाद जब पति या पत्नी की जॉब में कहीं दिक्कत आती है तो दूसरे पक्ष को लगता है कि अब महत्व खत्म हो गया है।

 

जबकि पिछले समय की जो शादियां हैं, उन्हें 7 जन्मों का बंधन कहा जाता था लेकिन अब तो एक जन्म का बंधन ही पूरा चल जाए तो उसे भी बहुत बड़ी बात माना जाने लगा है। अब न अग्नि के फेरों का महत्व रहा, न पंडित जी द्वारा शादी पढ़े जाने का महत्व रहा, न घर- परिवार की इज्जत का महत्व रहा, न सामाजिक ताने -बाने का महत्व रहा दिख रहा है, अगर महत्व है तो सिर्फ खुद की मनमर्जी का। केवल अपने अनुसार खुद के जीवन जीने का। सुनने में आता है कि लाखों रुपए के पैकेज होने के बावजूद भी पति-पत्नी के रिश्तों में कड़वाहट चल रही है, या रिश्ता खत्म हो गया है। जिससे साफ तौर पर समझा जा सकता है कि अगर पैकेज देखकर शादी की जाए और वह शादी कामयाब हो, यह जरूरी नहीं।

 

वहीं दूसरी ओर केवल पैकेज को महत्व न देते हुए घर – परिवार को, पढ़ाई- लिखाई को और खासतौर पर परिवार के संस्कारों को रिश्ता करते वक्त आगे रखा जाएगा तो निश्चित रूप से रिश्ता जरुर चलेगा। हम देख सकते हैं कि पुराने समय में जो शादियां हुईं, उन रिश्तों में आज तक भी मिठास है लेकिन आज का युवा वर्ग पढ़- लिखने के बाद भी इन बातों को गौण करता जा रहा है। उनकी नई सोच उनके खुद के लिए मुसीबत बनती जा रही है। होना यह चाहिए था कि बड़ी पढ़ाई- लिखाई और बड़ी कमाई के बाद रिश्ते अच्छे चलते और परिवारों में एक- दूसरे को समझने की शक्ति ज्यादा पनपती लेकिन हो इसके विपरीत रहा है। क्योंकि रिश्तों की नींव बिल्कुल खोखली होती जा रही है। रिश्ता बनाते वक्त अगर नींव में सिर्फ पैसा ही डाला जाएगा तो यह सच्चाई सामने है कि पैसा किसी काम नहीं आ रहा।

अभी शादी होती नहीं कि थोड़ा समय बीतते ही सुनने को मिलता है कि पति-पत्नी ने अलग जीवन जीने का रास्ता अपना लिया है। ऐसे लोगों की संख्या दिन- प्रतिदिन बढ़ रही है और आज अदालतों की ओर देखें तो मेट्रिमोनियल केसिज की संख्या दिन- प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अदालतों में अधिकतर युवक- युवतियों को ऐसे मामलों को लेकर लगातार धक्के खाते हुए देखा जा सकता है। अभी पिछले दिनों एक शादीशुदा युवक द्वारा सुसाइड का मामला पूरे देश में चर्चित हो रहा है और लोग तरह-तरह की बातें कर रहे हैं व इसी केस में उस युवती के ऊपर भी हर और से उंगलियां उठाई जा रही हैं। आज यह बात उभर कर सामने आ रही है कि जहां पहले वैवाहिक मामलों में युवक और उसके परिजनों को दोषी माना जाता था लेकिन अब अधिकतर मामलों में युवतियों पर भी उंगलियां उठने लगी हैं और कई मामलों में तो इनके परिवारजन भी दोषी साबित हो रहे हैं क्योंकि पुराने वक्त में जहां मां-बाप अपनी पुत्री को ससुराल में भेजने के बाद यह मान लेते थे कि अब पुत्री का घर ससुराल है लेकिन आज के वक्त में कहीं न कहीं युवती के परिवारजन भी अपनी पुत्री की शादी करने के बाद भी ससुराल के हर मामले में अपनी दखल चाहते हैं। यह कारण भी घरों के उजड़ने का साबित हो रहा है।

 

 

इस मामले में मोबाइल कल्चर ने भी अपना पूरा योगदान दे रखा है। यह भी देखने में सामने आता है कि खासतौर पर कई बार माताएं अपनी पुत्री की शादी करने के बाद भी या पुत्री अपने ससुराल में जाने के बाद एक- दूसरे का मोह नहीं छोड़ पाते और इसी मोह के चलते ससुराल की हर छोटी – बड़ी बात मायके में शेयर होती है। इसी शेयरिंग मोड के चलते ही कई बातें तिल का ताड़ बन जाती हैं। इसी के साथ वर्तमान समय में कम होते संयम के चलते ऐसा बुरा वातावरण बनने में देर नहीं लगती और रिश्ते अलग मोड़ ले लेते हैं।

युवा वर्ग को चाहिए कि वे वर्तमान युग में शादी करने से घबराएं नहीं, शादी तो प्रकृति की देन है और शास्त्रों में भी गृहस्थ जीवन को उत्तम जीवन माना गया है। अच्छे रिश्ते के लिए करना यह होगा कि युवक और युवती रिश्ता करते वक्त सबसे पहले संस्कारों को आगे रखें, परिवारों को आगे रखें और प्रदर्शन व पैसों को पहली प्राथमिकता न बनाएं। शादी होने पर आपस में समर्पण की भावना को विकसित करें। पैसा हो,क्योंकि पैसों के बिना भी गृहस्थी चलाना संभव नहीं है लेकिन आज देखने में यह आ रहा है कि पैसा भरपूर होने के बावजूद भी गृहस्थी टूट रही है। इसका मतलब यह हुआ कि पैसा ही जरूरी नहीं। पैसों के साथ अन्य बातों की समझ भी जरूरी है। युवा वर्ग को चाहिए कि वे इस विवाह बंधन को लेकर अपने माता-पिता से हर बात शेयर करें और इस पूरी कहानी के दौरान उनके अनुभवों को जरूर आगे रखें। क्योंकि अभिभावकों को जो उम्र का अनुभव है, वह अवश्य काम आता है। कमी आई है तो अभिभावकों की बात न मानने के कारण भी आई है।

 

परिवार को चलाना कोई बहुत बड़ा मुश्किल काम नहीं है। मुश्किल इस चीज की आन पड़ी है कि एक- दूसरे पर विश्वास खत्म होता जा रहा है। अगर आज के युवा और युवतियां केवल संयम को अपने साथ बांध ले तो यह कहा जा सकता है कि उनके रिश्तों में पूरे जीवन कभी कमी नहीं आएगी और वह बढ़िया गृहस्थ जीवन जीते हुए अपनी आने वाली पीढ़ी को भी संस्कारित कर सकते हैं।

फोटो संलग्न : संजय भुटानी।

sanjaybhutanihansi@gmail.com

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