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आज पुलिस स्मृति दिवस ,यानी चीन की दगाबाजी को याद करने का भी दिन 

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सीमा पर सैनिक और भीतर पुलिस विश्व के हर देश की एकता ,अखंडता, शांति और संप्रभुता की रक्षा की सजीव प्रतीक होती है। और भारत जैसे देश में तो कानून और शांति व्यवस्था बनाए रखने के मामले में पुलिस का स्थान हर दृष्टिकोण से जनहित में बहुत महत्वपूर्ण है। उसने अपने कर्तव्य पथ से पीछे हटना कभी नहीं सीखा। ….और जब भी उसे इसके लिए अपनी जान की बाजी लगानी पड़ी। उसने लगाई भी अवश्य। वह वह चाहे दुश्मन देश चीन की दगाबाजी के खिलाफ हो या फिर किसी और संदर्भ में।

कुल मिलाकर कर्तव्य के प्रतिनिष्ठा के लिए बलिदान हो जाने का नाम भी है भारतीय पुलिस। जिस दिन को आज पुलिस दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। इस दिन की शुरुआत की वजह भी दगाबाजी से भरे इतिहास वाला चीन ही है।

आज 21 अक्टूबर का दिन उन दस पुलिस वालों को समर्पित है जो 1959 में भारत चीन की सीमा पर देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे। इसीलिए इस दिन भारत में पुलिस में सेवा करने के दौरान शहीद होने वाले कर्मचारियों को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है।

अब अगर चीन की दगाबाजी से भरे इतिहास की चर्चा करें तो उसका धोखे से पीठ पर वार करने का इतिहास लंबा रहा है। वह इस काले इतिहास में अबतक कई अध्याय जोड़ चुका है। चीनियों ने भारत की पीठ में पहली बार छुरा तब घोंपा था जब हम भारतीय हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे में मशगूल थे। इतिहास को भूलने वाले इतिहास बन जाते हैं। मौके-बेमौके यह कहावत हमारे सामने आ जाती है।

इसीलिए आज भारत में मनाया जाने वाला पुलिस दिव चीन के दगाबाजी भरे इतिहास को याद करने का भी निंदनीय दिन है। वह 21 अक्टूबर 1959 का दिन था। जब घातक हथियारों से लैस चीनी सेना की एक टुकड़ी ने घात लगाकर भारत की पेट्रोलिंग टीम पर हमला बोल दिया था। धोखे से किए गए बर्बर हमले में उस दिन केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के 10 जवान लद्दाख के हॉट स्प्रिंग

में शहीद हो गए थे। इसके बाद चीन ने वही इतिहास 5 मई 2020 को भी दोहराया। चीनी सैनिकों ने पेंगोंग झील के पास तैनात भारतीय जवानों पर पीछे से हमला कर दिया। बार्बर की नई मिसाल पेश करने वाले चीनियों के हाथों में उस दिन कंटीले तारों से लपेटे गए डंडे थे। जिनका जमकर मुकाबला करते हुए भारत के 20 शूरवीरों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी इस दौरान इन भारतीय शूरवीरों ने अचानक हुए हमले के बावजूद भी 40 से ज्यादा चीनियों को मार भी गिराया था।

आज भारत के पुलिस स्मृति दिवस के संदर्भ में 21 अक्टूबर 1959 हॉट स्प्रिंग हमले की बात करनी जरूरी है। क्योंकि भारतीय पुलिस स्मृति दिवस मनाने की वजह भी यही दिन है। उसका इतिहासजिस आशय की जानकारी देता है उसके मुताबिक 1953 से ही लेह (लद्दाख) और इसकी अग्रिम चौकियां सीआरपीएफ के हवाले रही थीं। अक्साई चिन का बीहड़ इलाका, दुर्गम क्षेत्र, बंजर पहाड़ों की निजर्नता, बर्फीली हवा में भी हमारे जवान दिन-रात देश की रक्षा में डटे रहते हैं। एक दिन हमारे जवानों को चीनी सैनिकों की बढ़ती हुई गतिविधियों का अहसास हुआ। सीआरपीएफ ने अपने शक-सुबहे को परखने के लिए एक छोटी सी टुकड़ी पेट्रोलिंग पर भेज दी। पेट्रोलिंग पार्टी तिब्बत सीमा की तरफ बढ़ी। उसे क्या पता था कि कोई उसके इंतजार में घात लगाकर बैठा है। सीआरपीएफ जवानों के कदम बढ़ ही रहे थे कि अचानक गोलियों की तड़तड़ाहट से वो सहम गए। चीनी सैनिक ऑटोमैटिक हथियारों से गोलियों की बौछार कर रहे थे। वह भारत-तिब्बत सीमा पर अक्साई चिन में हॉट स्प्रिंग्स का इलाका था। घात लगाकर किए हमले से बचते-बचाते हमारे जवानों ने दुश्मनों से खूब लोहा लिया। इस हमले में 10 सीआरपीएफ जवानों की जान चली गई, लेकिन चीनियों को पीछे हटना पड़ा। कुल मिलाकर यही दिन ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के धुन में मशगूल भारत की पीठ में चीन की तरफ से घोंपा गया पहला छुरा था। दुनिया के इतिहास में दोस्ती का झांसा देकर पीठ में छुरा घोंपने की घटनाओं में यह एक बड़ी मिसाल है। भारत ने इस इतिहास को याद रखने की ठानी । इसलिए हर वर्ष 21 अक्टूबर को ‘पुलिस स्मृति दिवस’ मनाया जाने लगा है। आज भी जब उन बलिदानियों को याद किया जा रहा है तो हर भारतीय का सीना चौड़ा हो रहा है। परिजन बलिदानियों की तस्वीरों पर माल्यार्पण कर रहे हैं। अपनों को खोने का गम क्या होता है, कोई उन्हीं से पूछे। हर भारतीय ऐसे बलिदानियों को और धोखेबाजी वाले चीनी इतिहास को कभी नहीं भूल सकता।

 

प्रस्तुति – सुनील बाजपेई*

(कवि ,गीतकार ,लेखक एवं

वरिष्ठ पत्रकार), कानपुर उत्तर प्रदेश।

 

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