शुक्रवार, 26 सितंबर 2025
शिरोमणी श्री स्वामी
सत्यानन्द जी महाराज
की असीम कृपा से
पूज्य भक्त श्री हंसराज जी महाराज (बड़े पिता जी) के आशीर्वाद से पूज्य श्री कृष्ण जी महाराज (पिता जी) एवं पूज्य माँ रेखा जी महाराज की अध्यक्षता में ऋषि नगर लुधियाना में चल रहे राज्यस्तरीय “रामायण-ज्ञान-यज्ञ” के चौथे दिन की सभा में पूजनीय श्री कृष्ण जी महाराज (पिता जी) ने उपस्थित साधको के लिये सुख एवं समृद्धि की कामना की।
पूज्य पिता जी महाराज ने कहा रामायण का परायण चल रहा है। महान पर्व के दिन हैं। उत्सव के दिन हैं। इन दिनों कोई भी शुभ कार्य राम का नाम ले कर देना चाहिए। कोई वहम, भ्रम नहीं करना चाहिए।
वैसे तो हर घड़ी पावन होती है। इन दिनों हर और रामायण का पाठ होता है इस लिए इन दिनों विशेष कृपा वाली तिरंगे चलती हैं।
इन दिनों हमें वहम नही करना, क्रोध नही करना, भय नही करना, चिंता नहीं करनी। हमारी लाज तो प्रभु के हाथ है फिर हमें किस बात की चिंता। महाराज से यही प्रार्थना करनी है, अब तक जो निभाया है, आगे भी निभा देना।
पूज्य पिता जी महाराज ने कहा कि लोग पूछते है कि बुरे समय की क्या निशानी होती है? बुरे समय की निशानी है, फिरे मस्तक बदले वाणी। दिमाग सही गलत का अंतर करना बंद कर देता है और शत्रु मित्र लगने लग जातें है। अपने पराये लगने लगते हैं। मनुष्य सोचता रहता है, ऐसा होगा, वैसा होगा, होने का समय भी आ जाता है, पर होता वही है जो प्रभु चाहतें हैं। उस मालिक के मन में क्या है कोई नही जानता। जब बुरा समय आने वाला हो तो बोल बिगड़ जाते हैं और मस्तक फिर जाता है। जब अनहोनी होने वाली होती है, तो हृदय का कोना कोना हिलने लगता है। दिल घबराने लग जाता है। जब मनुष्य एक पाप कर लेता है तो वह रुकता नही और पाप करता चला जाता है। जब व्यक्ति का पतन होने आता है तो वह पानी वत नीचे गिरता चला जाता है। पानी पर्वतों जब निकलता है तो कितना मीठा होता है पर जब वह नीचे गिरता है तो अंत में खारा हो जाता है। दांत, केश और नाखून जब अपना स्थान तज देते हैं तो मनहूस हो जाते हैं।
पिता जी महाराज ने कहा
रानी राजा दशरथ को वचनो में बांध कर अपने दो वर एक में भरत लो राज्य और दूसरे में राम को चौदह वर्ष का बनवास मांग कर राजा को अपनी बात मानने को विवश कर देती है। दशरथ उसे कहते हैं कि यदि राम वन में चले जाएगा तो उस की बिना मैं मर जाऊंगा। परंतु रानी अपनी बात पर अड़ी रहती है। अंत में विवश हो कर राजा दशरथ सचिव सुमंत्र को भेज राम जी को अपने पास बुलाते हैं। राम जी माता पिता के पास आ पिता को रोता देख घबरा जाते हैं और माँ कैकयी से इस का कारण पूछते हैं तो माँ अपने दोनों वर, भरत को राज्य और राम को चौदह वर्ष का वनवास का बताती है। राम जी माता पिता की आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं। राजा रानी से विदा हो कर राघव जी वन जाने से पहले माता कौशल्या को मिलने उन का आशीर्वाद लेने उन के महल में आते हैं। माता राघव जी को देख प्रसन्न हो कर उन्हें अपने गले लगा लेती हैं। राघव जी माता को चौदह वर्ष के बनवास का बताते है। माँ यह सुन अचेत हो जाती है। राम जी उन्हें तुरंत उठा कर समझा के शांत बनाते है।