आज ईद पर विशेष : जंग-ए-बद्र से हुई थी ईद-उल-फितर की शुरुआत
– पैगम्बर मोहम्मद और उनके घोर विरोधी अबू जहल के बीच हुई थी जंग-ए-बद्र
– इतिहास में पहली बार पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की अगवाई में जंग-ए-बद्र में हुई थी मुसलमानों की जीत
सुनील बाजपेई
कानपुर 10 April । आज जो ईद का पवित्र त्यौहार मनाया जा रहा है उसकी शुरुवात जंग-ए-बद्र के बाद हुई थी। यह जंग-ए-बद्र पैगम्बर मोहम्मद साहब और उनके घोर विरोधी अबू जहल की सेना के बीच हुई थी।
इस भीषण हुई जंग में उस समय पैगम्बर मोहम्मद के पास महज केवल 313 अनुयायी थे, जबकि उनके प्रबल विरोधी अबू जहल के पास बड़ी सेना, घुड़सवार, हाथी, घोड़े सब कुछ थे ,लेकिन इसके बावजूद भी पैगम्बर मोहम्मद साहब और उनके अनुयायी जंग जीतने में कामयाब हुए थे।
पैगंबर मुहम्मद साहब के नेतृत्व में लड़ी गई जंग-ए-बद्र में इतिहास में पहली बार मुसलमानों को विजय मिली थी।
बताते हैं कि यह जंग जिस जगह जंग लड़ी गई थी, वहां बद्र नाम का एक कुआं था। कुएं के नाम पर ही जंग को जंग-ए-बद्र कहा गया। बाद में मुसलमान लोगों ने जीत के जश्न को ईद के रूप में मनाया। जीत की ख़ुशी में लोगों में मीठे पकवान भी बांटे गए। इसी वजह से इसे मीठी ईद भी कहा जाता है।
चूंकि जंग-ए-बद्र की शुरुआत रमजान के पहले दिन से हुई थी। इस दौरान पैगंबर मुहम्मद साहब और उनके अनुयायी रोजा थे और जिस दिन जंग खत्म हुई थी ,उसी दिन ईद भी मनाई गई थी।
ईद जो कि लोगों को भाईचारे का पैगाम देती है। इस दिन जरूरतमंद लोगों को ईदी और फितरा (दान) देने की परंपरा है, ताकि हर कोई ईद की खुशियां मना सके। ईद की नमाज के बाद परिवार वालों को फितरा दिया जाता है, जिसमें 2 किलो ऐसी चीज दी जाती है, जिसका प्रयोग प्रतिदिन खाने में किया जा सके। इसमें गेंहूं, चावल, दाल, आटा कुछ भी हो सकता है। इसे मीठी ईद भी कहते हैं, क्योंकि रोजों के बाद ईद-उल-फित्र पर जिस पहली चीज का सेवन किया जाता है, वह मीठी होनी चाहिए। वैसे मिठाइयों के लेन-देन, सेवइयों और शीर खुर्मा के कारण भी इसे मीठी ईद कहा जाता है।