राज़नीति या स्वार्थ के बिना सच्ची समाजसेवा का दीप ज़लाने वाले सिंधी सेवादारी मंडल के संस्थापक प्रणेता को प्रणाम-22वीं पुण्यतिथि 7 अगस्त 2024 पर विशेष
वैश्विक स्तरपर निस्वार्थ,बिना राजनीतिक लाभ के,शुद्ध समाज सेवा में समर्पित सामाजिक संस्थाओं,मंडलों समितियों की आज़ के युग में सख़्त ज़रूरत है-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर दुनियां के क़रीब हर देश में एक ट्रेंड सी चल पड़ी है कि,अगर मैं यह सेवा करूंगा तो मुझे क्या मिलेगा?आज व्यक्ति विशेष से लेकर अनेकों समाजों की पंचायतें, संस्थाएं,संगठन, राजनीतिक विचारधाराओं में बट सी गई है, उनमें हर पंचायत संगठन संस्था समिति की कोशिश रहती है कि समाज को उस राजनीतिक संगठन पार्टी की विचारधारा से जोड़कर उनका मुख अध्यक्ष पार्षद विधायक या सांसद बने। परंतु अगर हम कुछ दशक पीछे जाएं तो हमें ऐसे कई कर्मठ जीवन पर्यंत मानवीय या सामाजिक सेवाओं में समर्पित मनीषी जीव मिलेंगे जिनके राजनीतिक पार्टी या विचारधारा तो क्या अपने परिवार से भी अधिक प्यारी अपनी मानवीय या सामाजिक सेवा सर्वोपर थी,वह अपने दम पर पहचाने जाते थे किसी राजनीतिक पार्टी के विचारधारा के दम पर नहीं! ऐसे महामानव तो राष्ट्रीय स्तर पर बहुत हैं, परंतु हमारी छोटी राइस सिटी गोंदिया नगरी में भी ऐसे अनेकों समर्पित सेवादारी सेवक हैं जिनमें काका चोइथराम की गलानी सनमुखदास जी भावनानी घुमणमल जी संतानी इत्यादि अनेक सेवक जिनमें किसी को किसी राजनीतिक पार्टी से कोई मतलब नहीं था केवल अपने समाज की सेवा में समर्पित थे।आज हम यह चर्चा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि ऐसे ही एक पूर्ण समाज सेवक,सेवा में समर्पित सिंधी सेवादारी मंडल के संस्थापक प्रणेता रहे स्वर्गीय सनमुखदास ईंधनदास जी भावनानी जिन्हें उस्ताद के नाम से भी जाना जाता था, की 22वीं पुण्यतिथि 7 अगस्त 2024 को है,जब उन्हें परिवार समाज मंडल सहित सभी बहुत याद करते हैं इस उपलक्ष में आज हम समाज सेवा, सेवाओं की क्वालिटी पर बारीकी से चर्चा करेंगे,चूंकि मैं अपनी पैनी निगाहों की नजरों से अपनी राइस सिटी गोंदिया की एक सामाजिक संस्थाओं में देखा हूं कि, एक ही व्यक्ति अनेक पंचायतों समितियों संस्थाओं संगठनों की कार्यकारिणी में है। अभी-अभी गठित एक शीर्ष संस्था व मंडल में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो अनेक संगठनों पंचायत से जुड़े हैं। यानें मेरा मानना है कि वह व्यक्ति शायद एक संगठन पंचायत का काम ठीक से कर नहीं पा रहा है पर दूसरी पंचायत मंडलों समितियों में भी कार्यकारणी में देखा जा रहा है कुछ एक राजनीतिक पार्टी से जुड़े हैं,तो एक राजनीतिक पार्टी पदाधिकारी भी है,जो रेखांकित करने वाली बात है। ऐसा लगता है अपनी वाहवाही के लिए सिर्फ नंबर गेम करना है कि, मैं इतनी संस्थाओं में पदों पर हूं। अन्य दो-तीन युवाओं साथियों को जो छोड़ा गया है उनको नगर परिषद चुनाव में उतारने की अंदरखाने तैयारी भी शायद चल रही है जो रेखांकित करने वाली बात है। यानें देखा जाए तो आजकल की आधुनिक समाज सेवा में कुछ व्यक्तियों का एक समूह ही है,जो सभी सामाजिक संस्थाओं सेवा समितियों में है बस अपने-अपने आदमी घुमा फिरा कर अलग अलग संस्थाओं समितियों मंडलों की कार्यकारिणी में बिठाकर अपनी कालर टाइट करने में लगे हुए हैं, उनके बिग बॉस का शायद नाम सबको पता होगा जो पर्दे के पीछे सभी संगठनो और संस्थाओं पर नियंत्रण रखते हैं,जो सोचनीय बात है।इसलिए हमें आज ज़रूरत है, दशकों पुराने सच्चे सेवादारियों से कुछ प्रेरणा लेने की, उनसे सीखने की, उनके विचारों से प्रेरणा लेने की,जो बिना किसी पद लालच या राजनीति के स्वच्छ विचारधारा से केवल सामाजिक सेवा तक अपनी सोच सीमित रखते थे, उन्हें राजनीतिक लाभ या पद नाम शोहरत की कोई सोच नहीं थी। आज किसी ग्रुप में कोई अच्छी जानकारी वाला आर्टिकल पोस्ट करता है,तो गरिमां की बात करने वालों को अपने अंदरझांकने की ज़रूरत है, क्योंकि वह जब एक उंगली उठाकर अन्य को गरिमां की बात सिखाते हैं तो उनको देखना चाहिए कि तीन उंगलियां उनके ही तरफ उठ रही है।चूंकि राजनीति या स्वार्थ के बिना सच्ची समाज सेवा का दीप जलाने वाले सिंधी सेवादारी मंडल के प्रणेता श्री सनमुखदास जी भावनानी जिन्हें उस्ताद के नाम से भी जाना जाता था की 22वीं पुण्यतिथि 7 अगस्त 2024 को है,इसलिए आज हम इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, एक ज़माना था जब बिना किसी स्वार्थ या राजनीतिक विचारधारा के सेवाएं होती थी… लेकिन आज..? वैश्विक स्तरपर निस्वार्थ बिना राजनीतिक लाभों के, शुद्ध समाज सेवा में समर्पितसामाजिक संस्थाओं समितियों, मंडलों की आज के युग में सख़्त जरूरत है।
साथियों बात अगर हम किसी भी क्षेत्र में निस्वार्थ सेवा के गुणों की शुरुआत की करें तो, मेरा मानना है कि वह बड़े बुजुर्गों से फ्लो होती है। स्वर्गीय सनमुखदास जी को भी इनकी प्रेरणा प्रख्यात समाजसेवी काका चोइथराम जी गलानी से मिली और फिर उनके ही सानिध्य में उन्होंने एकअनोखा सेवा कार्य शुरू किया जिसमें समाज के किसी जीव की अगर मृत्यु हो जाती है तो उनकी जानकारी सभी समाज बंधुओं को उनके घर घर में जाकर देना कि उनकी मृत्यु हुई है एवं उनका अंतिम संस्कार इतने बजे है। दूर दृष्टि से दूर के लोगों को टेलीफोन द्वारा इसकी सूचना भी दी जाती थी, प्राथमिक स्तरपर उन्होंने अकेले कार्य शुरू किया फिर काका चोइथराम जी से मिलकर कुछ समाजसेवियों को साथ लेकर पूरे शहर के समाज में शुरुआत की सूचना निशुल्क सेवा भाव से पहुंचाते थे। स्वाभाविक रूप से यदि हम कोई सेवा इतनी विशालता से करते हैं, तो हमारे खिलाफ चार विरोधी भी खड़े हो जाते हैं, जिसमें हमें अपनी सेवाओं का दायरा बढ़ाने में प्रोत्साहन मिलता है, इसी वाक्यात के साथ उन्होंने सिंधी सेंट्रल पंचायत के अध्यक्ष पद का नामांकन भरा तो स्वाभाविक रूप से कुछ लोगों के रोंगटे खड़े हो गए क्योंकि एक गरीब जो अगर तन मन से सेवा करता है तो अच्छे अच्छे उसके साथ खड़े हो जाते हैं परंतु यहां कुछ विपरीत हुआ कि वह सिर्फ 66 वोटों से चुनाव हार गए थे क्योंकि एक विशेष समूह जो आज भी सक्रिय है, एक ऐसे व्यक्ति के साथ खड़ा हो गया जो 25 वर्षों के बाद गोंदिया वापस लौटा था स्वाभाविक रूप से उसके वर्तमान सेवा कार्य नगण्य रूप थे,परंतु सनमुखदास जी ने सेवा कार्य नहीं छोड़ा बल्कि एक संगठन सिंधी सेवादारी मंडल की स्थापना की जिसका काम किसी की मृत्यु हो जाने पर उसकी सूचनाएं पूरे समाज तक पहुंचाना और उसका पूरा क्रियाकर्म उसके परिवार के साथ मिलकर कराना इस संस्था का मुख्य उद्देश्य था, जिसमें स्व काका चोइथराम गलानी,स्व भी बुधरमल चुगवानी, स्व गामनदास पर्यानी स्व गुलाबराय छतानी स्व आरके साइकिल,धर्मदास चावला, कमल लालवानी इत्यादि अनेक सेवादारों से मिलकर उत्साह पूर्वक सफलताओं की बुलंदियों तक पहुंचाया पर, होनी को कौन टाल सकता है,7 अगस्त 2002 को वह काल के ग्रास में समा गए। उसके कुछ वर्षों बाद उनके अनेक सेवादारी सहयोगी भी काल के ग्रास में समा गए। परंतु सिंधी सेवादारी मंडल आज भी उसी जोश और सेवाओं के साथ अपनी सेवाएं युवा सेवादारियों के साथ उसी सेवा समर्पित भाव के साथ जारी रखे हुए है जिसकी चर्चा हम एक आर्टिकल में कर चुके हैं,जो समाज के सामने एक मिसाल है, इसका संचालन आज के युवा साथी कर रहे हैं।
साथियों उस्ताद के भजन कीर्तन के भाव की करें तो कुछ मंदिरों आश्रम विशेष रूप से भाई किशनचंद् जी के टिकाणे में भजन कीर्तन करते थे परंतु विशेषता यह थी कि उन्होंने वहां से कभी भी एक रुपया भी नहीं उठाया। कीर्तन के दौरान उनके साज़ों पर जो भी पैसे आते थे वह आश्रम या मंदिर की दान पेटी में डाल देते थे। विशेष यह कि अपनी कोई भेटा भी नहीं लेते थे उनके साथ साज़ भी निशुल्क बजाते थे। बड़े बुजुर्गों का कहना है कि किसी भी परिवार खानदान की जो अच्छाई या बुराई है होती है वह आगे की पीढ़ियों में भी झलकती है, यह हम अपनी आंखों से देख रहे हैं कि उनके भजन और कीर्तन की स्तुति उनके पोते निखिल भावनानी में समाई है जो मात्र 4 वर्ष की उम्र से ही बिना किसी तकनीकी रूप से सीखने के गॉड गिफ्टेड के रूप में उनको मिली है। हारमोनियम से लेकर ढोलक तक अच्छे से से बजा लेते हैं। शब्द कीर्तन भजन करते हुए देखा जा सकता है जो आज भी अपनी सेवाएं देते हैं। उनके अपने पैतृक गुरु के सत्संग घर हरे माधव दरबार में उनकी सेवाएं को देखा जा सकता है। वहां अपने पैतृक धरोहर कि,एक रुपया भी नहीं उठाना है सभी दान पेटी में डालना है वाली प्रथा को कायम रखे हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विशेषण करें तो हम पाएंगे कि एक ज़माना था जब बिना किसी स्वार्थ या राजनीतिक विचारधारा के सेवाएं होती थी…लेकिन आज….?राज़नीति या स्वार्थ के बिना सच्ची समाज सेवा का दीप जलाने वाले सिंधी सेवादारी मंडल के संस्थापक प्रणेता को प्रणाम 22वीं पुण्यतिथि 7 अगस्त 2024 पर विशेष।वैश्विक स्तरपर निस्वार्थ बिना राजनीतिक लाभ के,शुद्ध समाज सेवा में समर्पित सामाजिक संस्थाओं मंडलों समितियों की आज़ के युग में सख़्त ज़रूरत है।
*-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र*