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पर्युषण पर विशेष : झूमता उत्सव है पयुर्षण, आत्मिक सुख एवं शुद्धि का पर्व है पर्युषण

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क्षमा जीवन की साधना है, क्षमा अभिनय  नहीं, वास्तव में यह तो एक उपासना है

लुधियाना/यूटर्न/30 अगस्त। मानव जीवन में पर्वों का विशेष महत्व है। पर्व तो हमारे प्रकाश पुंज हैं ,क्योंकि ये जीवन की नीरसता रूपी अंधकार को दूर कर सरसता का खुशहाली का नव नव सुगंधों का सौगातों का प्रकाश भर देते हैं। ऐसे ही जैन धर्म में पर्वाधिराज ‘पर्युषण’ का  विशेष महत्व है। पर्युषण का सामान्य अर्थ है आत्मकल्याण परन्तु ‘पर्युषण’ शब्द के कई विशिष्ट अर्थ हैं, जिनका प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष सम्बन्ध सर्वकल्याण से ही है।

पर्युषण महापर्व एक ऐसा पावनकारी पर्व है, जिसके आगमन से मानव की सुप्त शक्तियां जागृत हो जाती है। वर्ष भर कुछ भी ना करने वाले भी इस पर्व की प्रेरणा से पावनता को ग्रहण करते हैं। हर जैन परिवार इस पर्व के आगमन से प्रफुल्लताओं से भर जाता है। पर्वाधिराज पर्युषण की सुंदरतम किरणें आत्मा के अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान का उजाला हमारे जीवन में फैलाती है। विनय बिना विद्या और सुगंध बिना पुष्प की शोभा नहीं होती, वैसे ही पर्युषण पर्व की सुंदरतम साधना, आराधना, उल्लास के बिना नहीं होती।

इस पर्वराज की आराधना करने के लिये सुदूर के मित्र, स्वधर्मी, बंधु और अध्यात्म से जुड़े सभीजन एकत्रित होते हैं। इस पर्व में आठ दिन तक कोई फल, मिठाई या बाहरी व्यंजनों का प्रयोग नहीं किया जाता है। घर में ही सादे पानी का सेवन किया जाता है। एक ही नगर के निवासी भी धार्मिक स्थानों, स्थानकों, उपाश्रयों व मंदिरों में एक साथ मिलते हैं। साधु साध्वियों के व्याख्यान सुनते हैं, प्रतिक्रमण और सामायिक करते है। पर्वाधिराज के आगमन से शुभ भावों का हमारे मन में संचार होता है। अनंत काल के भूलों को सुधारने, गुणों की वृद्धि करने और बुराई को समाप्त करने के लिए यह मंगल पवित्र पर्व है।

जिस प्रकार पूनम और अमावस्या के दिन दरिया में जोरों का ज्वार आता है, अन्य दिनों में इतना नहीं आता, वैसे ही इन दिनों में तप, त्याग में अधिक उत्साह आता है। इसलिए इन दिनों की महत्वत्ता अधिक होती है। इन दिनों में सामान्य दिनों के मुकाबले दान, शील, तप, भाव की विविध आराधना जोर-शोर से होती है तथा आध्यात्मिक रस, शांत रस तथा करुणा रस की निर्मल वर्षा होती है। पर्युषण साधक को आत्मबल प्रदान करता है, जिससे साधक समस्त भयों से मुक्त हो जाता है|

यह हमारी आत्मा की कालिमा को धोने का काम करता है। विकृति का विनाश और विशुद्धि का विकास इस पर्व का ध्येय है। भगवान ने इस पर्व की महिमा बताते हुए कहा है कि जैसे मंत्रों में परमेष्टी मंत्र, दान में अभयदान, व्रत में ब्रह्मचर्य, गुण में विनय श्रेष्ठ है, वैसे ही सभी पर्वों में पर्युषण सब से श्रेष्ठ हैं।

इस पर्व के आगमन से सभी तरफ खुशियां छा जाती हैं। खिलता गुलाब जैसे आपने मधभरी सुवास चारों और प्रसारित करता है। वैसे ही धर्म रूपी सुवास को फैलाता यह पर्व हमारे आंगन में आ गया है। इस पर्व के आने से हृदय में मैत्री भाव तथा अहिंसा का पवित्र झरना बहता है। अनादि काल के मोह और वासना के संस्कार दूर कर धर्म की सुगंध प्रसारित करता है। पर्युषण के अंतिम दिन शाम के समय सांवत्सरिक प्रतिक्रमण होता है। जिस में सभी जैन संबंधी चौरासी लाख योनी जीवों से क्षमा याचना करते हैं। इस पर्व की आराधना हमें अंतरमन के आंगन में क्षमा के अशोक पल्लव बांधकर, आराधना की विविध रंगोली सजाकर तथा तप त्याग का दीपक जलाकर मनाना चाहिए। जिससे आत्मा के कोने-कोने में जगमग प्रकाश फैल जाए।

पर्युषण पर्व एक आत्मा को शुद्ध करने, तपस्या और ध्यान के माध्यम से आत्मिक उन्नति प्राप्त करने का समय है। इस पर्व के माध्यम से जैन धर्मावलंबी अपने जीवन में अहिंसा, दया, और क्षमा के सिद्धांतों को और अधिक सुदृढ़ करते हैं। यह पर्व हमें जीवन के गहरे अर्थों को समझने और अपने आत्मा को शुद्ध करने की प्रेरणा देता है। इस वर्ष, पर्युषण पर्व 31 अगस्त से 7 सितंबर तक मनाया जाएगा। यह समय है, जब हम अपने भीतर की बुराइयों से ऊपर उठकर आत्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति की दिशा में कदम बढ़ाएं। इस पर्व का संदेश हमें यह सिखाता है कि सच्ची शांति और खुशी हमारे भीतर है। इसे प्राप्त करने के लिए हमें अपनी आत्मा को शुद्ध करना होगा और अपने जीवन को सही मार्ग पर ले जाना होगा।–

 

(सौजन्य से : कोमल कुमार जैन, चेयरमैन, ड्यूक फैशंस-इंडिया लिमिटेड, लुधियाना और एफसीपी, जीतो-जैन इंटरनेशनल ट्रेड आर्गेनाइजेशन)

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