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बिहार में शराबबंदी की सच्चाई

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कुमार कृष्णन

 

पूर्णिया सांसद पप्पू यादव जब रूपौली प्रखंड मुख्यालय में औचक निरीक्षण करने पहुंचे तो वहां का प्रधान लिपिक शराब के नशे में धुत्त था। तब सांसद ने पुलिस को सूचना देकर उसे गिरफ्तार करवाया।इस घटनाक्रम से यह खुलासा तो हो ही गया है कि बिहार में शराबबंदी जरूर कर दी लेकिन बिहार में शराब की अवैध बिक्री चालू है।

सांसद के आने की भनक सुनकर मौके से प्रखंड विकास पदाधिकारी और अंचलाधिकारी के साथ ही अधिकतर कार्यालय कर्मी गायब हो गए। लेकिन,अंचल में तैनात प्रधान लिपिक आनंदकांत ठाकुर शराब के नशे में धुत्त अपने कक्ष कुर्सी पर डटे रहे। जैसे ही सांसद प्रधान लिपिक के पास पहुंचे शराब की दुर्गंध सूंघ भौचक रह गए। इससे सहज ही अंदाजा लगाया लगाया जा सकता है कि बिहार में सुशासन की गाडी़ कैसे हांकी जा रही है।बिना देर किए ही सांसद ने प्रधान लिपिक से बात करने के बजाय सीधे रूपौली थानेदार को फोन लगा कर मौके पर बुलाया। इसके बाद थानेदार उदय कुमार प्रधान लिपिक को गिरफ्तार कर साथ लेकर चले गए। थानेदार उदय कुमार ने बताया कि प्रधान लिपिक को धमदाहा भेज कर ब्रेथएनलाइजर से जांच करवायी गयी। इसमें नशे की पुष्टि हुई।बिहार में हाल के कुछ दिनों में कई संदिग्ध मौतें हुईं हैं जो ये बताती हैं कि बिहार में कागजों पर शराबबंदी लागू है लेकिन हकीकत इन दावों से जुदा है।सीतामढ़ी में 3 लोगों की संदिग्ध मौत से सवाल उठने लगे हैं।इसी बीच समस्तीपुर में भी 3 लोगों की संदिग्ध मौत हो गई।कटिहार और वैशाली में भी दो-दो लोगों की संदिग्ध मौतों ने सरकार के दावे पर सवाल खड़े कर दिए।इसी बीच सरकार अब शराबबंदी की सक्सेस को आंकने के लिए तीसरा सर्वे करा रही है।

रांची की एक संस्था को बिहार में शराबबंदी की रिपोर्ट तैयार करने के लिए दी गई है। जीविका की मदद भी ली जा रही है। पहली दो रिपोर्ट में शराबबंदी को बिहार में सफल बताया गया।तीसरी रिपोर्ट में भी शराबबंदी के पक्ष में संकेत मिलने की बात मिल रही है, लेकिन इसके बावजूद प्रशांत किशोर से लेकर सहयोगी जीतनराम मांझी और विरोधी आरजेडी तक सवाल खडे़ कर रहे हैं।

केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने तो यहां तक कह डाला कि बिहार के थानों में दारोगा, एसपी, जज, कलेक्टर शराब पी रहे हैं लेकिन उन्हें कोई गिरफ्तार करने वाला नहीं है,वहीं मेहनत मजदूरी करने वाले मजदूर को पाव भर शराब पीने पर गिरफ्तार कर जेल भेजा जा रहा है बड़े शराब तस्करों की गिरफ्तारी नहीं की जा रही है लेकिन छोटे पीने वाले को तुरंत गिरफ्तार किया जा रहा है।

शराब और नशे के क्या दुष्परिणाम होते हैं यह हम पंजाब को देख कर समझ सकते हैं। एक अध्ययन के अनुसार शराब की लत में काफी बढ़ोतरी हुई। आज हर आठ में से एक व्यक्ति में शराब की लत पाई जा रही है। शराब ने न सिर्फ भारत बल्कि वैश्विक स्तर पर अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। चिकित्सकों और समाजविज्ञानियों का दावा है कि दुनिया में 14 करोड़ लोग अवसाद से प्रभावित हैं और वे शराब की वजह से होने वाली बीमारियों से जूझ रहे हैं।

आज पूरी दुनिया में हेपेटाइटिस और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां बढ़ती जा रही है। भारत जैसे विकासशील देश ही नहीं विकसित अमेरिका और यूरोपीय देश भी इसकी चपेट में हैं। यह बात सही है कि किसी बीमारी का कोई एक कारण नहीं होता है, कई चीजों के एक साथ होने से कोई बीमारी होती है। लेकिन कुछ मूल कारण होते हैं जिससे ये रोग जन्मते हैं। कैंसर के मूल में जहां तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट और गुटखा का सेवन है वहीं लीवर संबंधी बीमारियों का कारण अत्यधिक शराब सेवन है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकड़ों के अनुसार अल्कोहल की बढ़ती खपत सिर्फ रोग ही नहीं बल्कि कई अन्य समस्याओं का भी कारण है। शराब की वजह से दो सौ प्रकार के रोग होते हैं तो शराब पीकर वाहन चलाने से वैश्विक स्तर पर दुर्घटनाओं में मौतों की बाढ़ आ गई है। शराब के नशे में धुत होकर हत्या,बलात्कार और लूट की घटनाओं को हम दिन-प्रतिदिन देख-सुन रहे हैं। शराब पीने वालों में हम भारतीय भी पीछे नहीं हैं। एक आंकड़े के मुताबिक आज भारत के कुल वयस्क लोगों का तीस प्रतिशत शराब पी रहा है जो 2030 तक पचास फीसदी होने का अनुमान है। और एक दूसरे आंकड़े के अनुसार देश में प्रतिवर्ष लीवर के 10 लाख नए मरीज आ रहे हैं। ऐसे में सिर्फ इलाज के दम पर लीवर को ठीक नहीं किया जा सकता है।

नशे को भारतीय समाज में कभी भी अच्छा नहीं माना गया। हमारे देश के महापुरुषों ने समय-समय पर शराब और नशे के खिलाफ जागरुकता अभियान चलाया। महर्षि दयानंद से लेकर अधिकांश समाज सुधारकों ने शराब और नशे को धर्म, जीवन औऱ समाज के लिए अनुपयोगी बताया। यहां तक कि आजादी की लड़ाई में शराबबंदी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और कांग्रेस कार्यकर्ताओं का एक महत्वपूर्ण काम था।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी शराब के बहुत ज्यादा खिलाफ थे। बापू कहते थे कि अंग्रेजों का देश से जाना जितना जरूरी है उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण देश में पूर्ण शराबबंदी है। गांधी जी कहा करते थे यदि मुझे 48 घंटे की भी हुकूमत दे दी जाए तो मैं एक साथ बिना मुआवजा दिए शराब की सारी दुकाने बंद करा दूंगा। उनका कहना था कि शराब शरीर और आत्मा दोनों को मार देती है। देश की आजादी के पहले कांग्रेस पार्टी का जो सदस्यता फॉर्म भरा जाता था उसमें शराब का सेवन न करने का प्रण लेना पड़ता था। उस दौरान व्यक्तिगत तौर पर कोई कांग्रेस नेता भले ही शराब का सेवन करता रहा हो,लेकिन वह शराब के पक्ष में नहीं था। 1956 में संसद के दोनों सदनों में पूर्ण शराबबंदी पर बहस हुई। देश में शराबबंदी की मांग को लेकर जस्टिस टेकचंद के नेतृत्व में एक कमेटी बनी। लेकिन आज तक शराबबंदी नहीं हो सकी।

शराबबंदी के पीछे सरकार का राजस्व कम होने का डर कम और सरकार में बैठे आबकारी लॉबी और उसके समर्थक विधायक-सांसदों का निजी घाटा अधिक है। यह देश की राजनीति का नैतिक पतन नहीं तो औऱ क्या है? हर दल के ढेर सारे सांसद- विधायक शराब व्यवसाय से जुड़े हैं और शराब माफियाओं से चंदा और मदद लेते हैं। राजनैतिक पार्टियों को भी शराब माफियाओं से चंदा मिलता है।

अफसोस की बात यह है कि आज तक देश में कोई भी सरकार शराबबंदी पर गंभीर नहीं रही। सांसद-विधायक-मंत्री जिस संविधान की शपथ लेते हैं उसके धारा-47 में बहुत साफ लिखा है कि नशीले पदार्थों पर रोकथाम सरकार की जिम्मेदारी है। संविधान की धारा 51 (ए) में भी कहा गया है कि आजादी की लड़ाई के जो मूल्य हैं उसे हमें संरक्षित करना है। हमारी आजादी की लड़ाई गांधी जी के नेतृत्व में लड़ी गई। गांधी के आंदोलन का एक बहुत बड़ा हिस्सा शराबबंदी थी।

बिहार में पूर्ण शराबबंदी अप्रैल 2016 में लागू कर दी गई थी, लेकिन इसके बावजूद जहरीली शराब से मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है। सख्ती के बाद भी यह धंधा पूरी तरह बंद नहीं हुआ है। शराबबंदी के बावजूद बिहार में शराब उपलब्ध है। यह बात दीगर है कि लोगों को दो या तीन गुनी कीमत चुकानी पड़ती है, चाहे शराब देशी हो या विदेशी। बिहार में शराब के सेवन पर रोक है,इसके दुष्परिणाम को बताने में समाजसेवी और अन्य लोग विफल रहे हैं।

वैसे, नीतीश कुमार के निर्णय के कारण ही राज्य में पंचायत स्तर तक शराब की दुकानें खुल गई थीं। यही वजह रही कि 2005 से 2015 के बीच बिहार में शराब दुकानों की संख्या दोगुनी हो गई थी।

शराबबंदी से पहले बिहार में शराब की करीब छह हजार दुकानें थीं और सरकार को इससे करीब डेढ़ हजार करोड़ रुपये का राजस्व आता था। अप्रैल,2016 को बिहार देश का ऐसा पांचवां राज्य बन गया, जहां शराब के सेवन और जमा करने पर प्रतिबंध लग गया।

अगर शहर और गांव के परिप्रेक्ष्य में देखें तो बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 15.8 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 14 प्रतिशत लोग शराब पीते हैं। बिहार में झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश एवं नेपाल से शराब की बड़ी खेप तस्करी कर लाई जाती है।

दरअसल, शराब व्यापारियों के सिंडिकेट को सरकार तोड़ नहीं पा रही है। आज तक किसी बड़ी मछली को नहीं पकड़ा जा सका है।

हालांकि लैंसेट रीज़नल हेल्थ साउथईस्ट एशिया जर्नल में प्रकाशित नए शोध के अनुसार, वर्ष 2016 में बिहार में शराब प्रतिबंध से दैनिक और साप्ताहिक खपत के 2.4 मिलियन मामलों तथा अंतरंग साथी के विरुद्ध हिंसा के 2.1 मिलियन मामलों को नियंत्रित किया गया।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि 2015 में महिलाओं की मांग पर हमने 2016 में शराबबंदी लागू की। इसको लेकर हम लोगों ने वचन दिया, विधानसभा और विधान परिषद में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित हुआ।सबने शराब नहीं पीने का संकल्प लिया। जितने सरकारी अधिकारी, कर्मचारी हैं, सभी लोगों ने इसका संकल्प लिया, इसके लिये निरंतर अभियान चलता रहता है।बिहार में शराब बंदी को लेकर दो सर्वे हो चुके है। 2018 में पहली बार नीतीश सरकार ने सर्वे कराया था।जिसमें एक करोड़ 64 लाख लोगों ने शराब पीना छोड़ दिया है। 2023 में चाणक्य लॉ विश्वविद्यालय और अनुग्रह नारायण सिन्हा इंस्टिट्यूट के साथ सर्वे कराया जिसमें एक करोड़ 82 लाख लोगों के शराब पीना छोड़ने की जानकारी मिली।बिहार में 99% महिलाएं और 93% पुरुष शराबबंदी के पक्ष में है।

2018 में सर्वे रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि पूरे देश में 1 वर्ष में 30 लाख लोगों की मृत्यु हुई इसमें 5.3% मौत शराब पीने से हुई। 20 से 39 आयु वर्ग के लोगों में 13.5% लोगों की मृत्यु शराब पीने के कारण होती है।आत्महत्या के जितने मामले आते हैं उनमें 18% आत्महत्या शराब पीने के कारण होती है।शराब पीकर गाड़ी चलाने से 27% सड़क दुर्घटनाएं होती है । शराब पीने से 200 प्रकार की गंभीर बीमारियां भी होती है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है की खानपान, शिक्षा और रहन-सहन में सुधार आया है।लोग 10000 करोड़ रुपए शराब पर खर्च कर रहे थे।शराब बंदी लागू होने के बाद यह पैसा कई क्षेत्रों में लग रहा है सब्जी, फल, दूध की बिक्री बढ़ी है। इससे सरकार का राजस्व भी बढ़ा है।

पिछले साल शराबबंदी कानून में संशोधन किया गया और उसके बाद से शराब पीने वाले सिर्फ 5% को ही जेल भेजा गया। 127000 लोगों की गिरफ्तारी हुई, जिसमें से 52% को जुर्माना देकर छोड़ दिया गया है। 2016 से अब तक 1522 अभियुक्तों को सजा दिलाई गई है।अवैध शराब के कारोबार को रोकने के लिए बिहार के अलावा दूसरे राज्यों से भी बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां की जा रही है।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि शराबबंदी के कारण एक अलग अवैध आय का स्रोत विकसित हुआ है। शराब का अवैध कारोबार करने वालों ने समानांतर अर्थव्यवस्था कायम कर ली है। एक शराब दुकान में काम करने वाले मुलाजिम राजकुमार की बात से इसे समझा जा सकता है। वह कहते हैं, ‘‘अब मेरी आर्थिक स्थिति ठीक हो गई है। मैं एक हफ्ते में किसी भी ब्रांड की 50 बोतलें बेचता हूं और एक बोतल पर 300 रुपये की कमाई करता हूं। बिहार में 50 हजार करोड़ की शराब की खपत होती है, बड़े माफिया, पुलिस-पदाधिकारी शराबबंदी के बाद माला-माल हो रहे हैं। शराब का व्यापार खूब फल-फूल रहा है।

‘सुशासन बाबू’ के नाम से पहचाने जाने वाले और मुख्यमंत्री की गद्दी पर सबसे अधिक समय तक बैठने वाले नीतीश कुमार के शासन की एक सच्चाई यह भी है कि उन्होंने शराबबंदी अब से करीब आठ वर्ष पूर्व लागू की थी पर आज भी उनके पूर्ण शराबबंदी वाले राज्य में धड़ल्ले से शराब मिल रही है।

 

( कुमार कृष्णन –विनायक फीचर्स)

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